16 March, 2013

जब दोस्त ने दोस्त की बीवी से लिया बदला

जौनपुर का खुशबू अपहरण हत्याकाण्ड
प्रतीक चित्र
उस दिन सुबह के आठ बज चुके थे जौनपुर जनपद के सिकरारा थाना प्रभारी राजकुमार सिंह रोजाना की अपेक्षा उस दिन कुछ पहले ही तैयार होकर अपने कार्यालय आ गये थे। श्री सिंह ड्यूटी पर जाने वाले सिपाहियों के नामों का अवलोकन कर रहे थे इसी बीच थाना परिसर में एक अधेड़ महिला हा-हाकार करती हुई प्रवेश किया और जोर-जोर से थाना प्रभारी से मिलने की बात कहने लगी। उस महिला के साथ उसके गाॅव के दो-चार लोग भी थे, आवाज सुनकर थाना प्रभारी ने शोर मचा रही उस अधेड़ महिला को अपने कार्यालय में बुलवा लिया। पूछताछ से पता चला उस महिला का नाम श्रीमती लालती देवी है और वह इसी थाना क्षेत्र के हसनपुर गाॅव निवासी रामनरेश यादव की पत्नी है।
थाना प्रभारी राजकुमार सिंह ने लालती देवी से थाने आने का कारण पूछा तो वह विफरते हुए बोली, क्या बताये साहब रात में कुछ बदमाश मेरे घर पर धावा बोले और जबरदस्ती मेरी बहु खुशबू को उठाकर टाटा सुमो गाड़ी से लेकर कहीं भाग गये। 
थाना प्रभारी राजकुमार सिंह ने लालती देवी से पूरी घटना विस्तार से बताने की बात कही इस पर लालती देवी ने थाना प्रभारी को बताया, मेरा बेटा प्रमोद कुमार यादव उर्फ टुन्नी इस समय एक मामले में जिला जेल में बन्द है। मेरा बेटा प्रमोद इससे पहले भी एक बार जेल गया था उस दौरान जेल में मेरे बेटे का परिचय जनपद के ही केराकत थाना क्षेत्र के सिंझवारा गाॅव निवासी रामकिशुन यादव के बेटे चन्द्रशेखर यादव से हो गया, जो आपराधिक किस्म का युवक था। जेल में चन्द्रशेखर और मेरे बेटे में दोस्ती हो गयी, चन्द्रशेखर मेरे बेटे प्रमोद को जुर्म की दुनिया से बाहर लाने के बजाय उसे जुर्म के रास्ते पर बढ़ाने का काम किया। परिणामस्वरूप समय के अन्तराल पर जब दोनांे अपनी-अपनी जमानत कराकर जेल से बाहर तब चन्द्रशेखर और प्रमोद आपस में मिलकर न जाने कौन सा काम करने लगे इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है। लेकिन इतना तो साफ था वे दोनों कुछ न कुछ गलत काम ही कर रहे थे। एक दिन न जाने किस मामले में पुलिस ने मेरे बेटे को पकड़कर फिर से जेल भेज दिया तब से अब तक वह जेल में ही है। प्रमोद के जेल जाने के कुछ दिन बाद चन्द्रशेखर यादव मेरे घर आया और मेरी बहू खुशबू से कहा तुम्हारे पति टुन्नी से मुझे पैसे लेने है तुम अपने पति से पैसे मांग कर मुझे दे दों। चन्द्रशेखर मेरी बहू खुशबू पर नाजायज दबाव डालने लगा कि जैसे भी हो वह उसे पैसे दें दे। इस पर मेरी बहू ने चन्द्रशेखर से कहा तुमने जिसे पैसे दिए है उसी से जाकर अपने पैसे का तगादा करो। चन्द्रशेखर इस पर नाराज हो गया और धमकी देते हुए बोला यदि उसे पैसे नहीं मिले तो वह मेरी बहू को ही उठा लेगा। इतनी धमकी देकर चन्द्रशेखर उस समय वापस चला गया, यह लगभग 15 दिन पहले की बात है।
रात मैं, मेरे पति रामनरेश यादव और मेरी बहू खुशबू तीनों रात का खाना खाने के बाद गर्मी के कारण घर के बाहर छप्पर के नीचे अपनी-अपनी चारपाई डालकर सोने चले गये, मेरी चारपाई से थोड़े फासलें पर बहू अपनी चारपाई पर सोई हुई थी।  आधी रात के बाद लगभग एक बजे के आस-पास का समय रहा होगा दरवाजे पर एक गाड़ी के रूकने की आवाज सुनकर मेरी नींद खुल गयी। मैं कुछ समझ पाती इससे पहले गाड़ी से उतरे तीन-चार बदमाश तेजी से मेरी बहू के चारपाई के पास पहुॅचे और उसे सोते से जबरदस्ती उठाकर ले जाने लगे। बहू को ले जाते देख मैने चिल्लाना शुरू किया, मेरी बहू भी जोर-जबरदस्ती के कारण चिल्लाने लगी लेकिन बदमाश मुझे और मेरे पति के कनपटी पर तमंचा लगाकर चुप रहने को कहा और मेरी बहू को गाड़ी में डालकर कहीं चले गये। बदमाशों मंे चन्द्रंशेखर यादव को मैं अच्छी तरह पहचानती हूॅ लेकिन उसके साथ के दो और लोग जिनकी आवाज से मैंने पहचाना कि वो दोनों मेरे पड़ोस के गाॅव बेलगहन के बंशीधर यादव और राजबहादुर यादव थे।
खुशबू अपने पति प्रमोद के साथ
लालती देवी से कुछ और पूछताछ के बाद थाना प्रभारी राजकुमार सिंह ने लालती देवी की ओर से बहू खुशबू के अपहरण किये जाने का नामजद मुकदमा भा0दं0वि0 की धारा 364 के अन्तर्गत मुकदमा अपराध संख्या 211 पंजीकृत कर लिया। लालती देवी ने अपनी ओर से बहू के अपहरण में तीन लोगों को नामजद किया था, जिसमें मुख्य आरोपी जौनपुर के केराकत थाना क्षेत्र के सिंझवारा गाॅव निवासी रामकिशुन यादव का पुत्र चन्द्रशेखर यादव था। उसके सहयोगी के रूप में सिकरारा थाना क्षेत्र के ही गाॅव बेलगहन के निवासी सूरज यादव के पुत्र बंशीधर यादव और स्व0 बाबूराम यादव के पुत्र राजबहादुर यादव को आरोपी बनाया था। मुकदमा दर्ज करने के बाद थाना प्रभारी राजकुमार सिंह मौका मुआयना के लिए अपने अधीनस्थ दो सिपाहियों अमित व संजय यादव को साथ लेकर सरकारी जीप चालक सिपाही सुशील पाण्डेय मय जीप के लालती देवी के घर की ओर रवाना हो गये। उस समय सुबह के साढ़े नौ बज चुके थे।
जौनपुर-इलाहाबाद रोड पर लबे सड़क स्थित सिकरारा थाने से लालती देवी का घर लगभग 4 किमी पूर्व में स्थित है। थोड़ी ही देर में सदल-बल सरकारी जीप से थाना प्रभारी श्री सिंह गाॅव पहुॅच गये वहाॅ लालती देवी के अगल-बगल के लोगों से बातचीत की तो इतनी बात सभी ने स्वीकारा कि रात मंे उन लोगों ने किसी गाड़ी की आवाज तो सुनी थी लेकिन गाड़ी में सवार लोगों को पहचान पाते इससे पहले बदमाशांे ने खुशबू का अपहरण कर भाग गये। खुशबू के श्वसुर रामनरेश यादव ने थाना प्रभारी को जानकारी दी उनकी बहू का अपहरण चन्द्रशेखर यादव ने ही अपने साथी बंशी यादव और राजबहादुर यादव के साथ मिलकर किया है। थाना प्रभारी श्री सिंह कुछ और जानकारी लेकर नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उनके ठिकाने पर दबिश देने के लिए रवाना हो गये। थाना प्रभारी श्री सिंह सबसे पहले आरोपी बंशी यादव व राजबहादुर यादव के आवास पर पहुॅचे तो वे दोनों ही फरार मिले। किसी एक आरोपी की गिरफ्तारी हो जाने से अपहृत की गयी खुशबू के बारे में कुछ भी पता चल सकता था लेकिन तीनों में से दो आरोपी पुलिस की पकड़ से बाहर जा चुके थे। अब मुख्य आरोपी चन्द्रशेखर यादव को पकड़ने के लिए थाना प्रभारी राजकुमार सिंह केराकत कोतवाली के प्रभारी शैलेन्द्र सिंह से पूरी घटना बताकर उनके थाना क्षेत्र के आरोपी चन्द्रशेखर की गिरफ्तारी में सहयोग मांगा तो उन्होंने तुरन्त सहयोग की बात की और कहा वह हर सम्भव प्रयास करेंगे चन्द्रशेखर पुलिस के हत्थे चढ़ जाय। यही हुआ भी चन्द्रशेखर की तलाश में कई जगहों पर छापेमारी की गई लेकिन शुक्रवार को दोपहर बाद सिकरारा थाना प्रभारी राजकुमार सिंह केराकत कोतवाली प्रभारी शैलेन्द्र सिंह के सहयोग से चन्द्रशेखर को शिकंजे में ले ही लिया। लेकिन चन्द्रशेखर खुशबू के अपहरण से इन्कार करने लगा तो थाना प्रभारी राजकुमार का माथा ही घूम गया, चन्द्रशेखर एक छटा हुआ बदमाश है वह सीधी तरह से अपने गुनाह को कबूलने वाला नहीं था, इसके साथ दूसरा ही रास्ता अपना पड़ेगा। उन्होंने अपने स्तर से प्रयास भी किया लेकिन कोई विशेष सफलता नहीं मिली। थाना प्रभारी की अब तक की छानबीन से यह साफ नहीं हो पाया था कि आरोपियांे ने खुशबू का अपहरण किस उद्देश्य से किया है ? यदि अपहरण के मूल में पैसे की बात है तो खुशबू के पास इतने पैसे है नहीं कि वह अपहरण कर्ताआंे को देकर रिहा हो सके, दूसरा उसका पति प्रमोद जेल में था और सास -श्वसुर पैसे देने की स्थित में नहीं थे। कुंल मिलाकर पहली नजर मंे खुशबू के अपहरण का मामला उलझता जा रहा था।
वक्त गुजरता रहा इसी बीच एक दिन सुबह के 7-8 बजे के आस-पास का समय रहा होगा जौनपुर जनपद के जलालपुर थाना क्षेत्र के रासीपुर गाॅव के कुछ चरवाहें अपने पशुओं को चरा रहे थे तो पास ही ंिस्थत पुलिया के नीचे एक युवती की रक्तरंजित लाश मिली जिसे देखकर वो चिल्लाने लगे। रासीपुर पुलिया के पास लावारिश लाश मिलने की सूचना जलालपुर थाना प्रभारी परहंस तिवारी को मिली तो वे दलबल के साथ घटना स्थल की ओर रवाना हो गये। थाना प्रभारी परहंस तिवारी को एक दिन पहले खुशबू के अपहरण किये जाने की जानकारी हो गयी थी इसलिए उन्होंने अपने क्षेत्र में लावारिश युवती की लाश पाये जाने की सूचना सिकरारा थाना प्रभारी राजकुमार सिंह को भी दे दी। सूचना देते हुए जलालपुर थाना प्रभारी ने लाश का जो हुलिया बयान किया था उससे थाना प्रभारी श्री सिंह का मन आशंका से भर उठा। आवश्यक औपचारिकाओं के बाद लावारिश लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। थाना प्रभारी श्री सिंह खुशबू की सास लालती देवी और उसके श्वसुर रामनरेश यादव को साथ लेकर जलालपुर क्षेत्र में पायी गयी लावारिश लाश की शिनाख्त कराने पोस्टमार्टम हाउस पहुॅच गये, उनके आते ही यह साफ हो गया कि पायी गयी लावारिश लाश खुशबू की ही है।
प्रमोद के माता-पिता: रामनरेश व लालती देवी
लाश को देखते ही लालती देवी और उनके पति रामनरेश यादव ने पहचान लिया था कि वह उनकी बहू खुशबू ही है। खुशबू की हत्या हो जाने से थाना प्रभारी राजकुमार सिंह के सामने कठिन चुनौती हत्यारों की गिरफ्तारी की थी। उन्हें अब इस बात का अफसोस हो रहा था कि जब चन्द्रशेखर को जेल भेज दिया गया तब पता चल रहा है कि खुशबू की हत्या हो गयी है। दरअसल चन्द्रशेखर की गिरफ्तारी पहले ही हो गई थी इसलिए नियमानुसार उसे सक्षम न्यायालय में उपस्थित करना जरूरी था। थाना प्रभारी राजकुमार सिंह अभियुक्त चन्द्रशेखर को न्यायालय में प्रस्तुत भी कर दिया जहाॅ से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। आरोपी के जेल भेजने के बाद इस बात की जानकारी हुई कि खुशबू मारी जा चुकी है, अब इस पूरे घटनाक्रम में सबसे अहम सवाल यह था कि आरोपी चन्द्रशेखर खुशबू के अपहरण का मुकदमा दर्ज होने के कुछ घण्टे बाद ही पुलिस की गिरफ्त में आ गया था तो फिर खुशबू की हत्या किसने, कैसे और किन परिस्थितियों में कहां की होगी ? पूरा मामला ही उलझकर रह गया था।
जौनपुर पुलिस अधीक्षक आकाश कुलहरी ने महसूस किया कि खुशबू अपहरण-हत्या मामले में पुलिस से चूक हुई है। नामजद आरोपी चन्द्रशेखर पुलिस की पकड़ में आ गया लेकिन जाॅच अधिकारी उससे कुछ भी काम की बातें नहीं उगलवा पाये और उसे जेल भेज दिया जबकि जेल भेजे जाने वाले दिन ही पुलिस को खुशबू की लाश मिल चुकी थी। पुलिस अधीक्षक श्री कुलहरी ने निर्णय लिया कि आगे की जाॅच किसी दूसरे थानेदार से करायेंगे। इसके लिए उन्होंने सिकरारा थाना प्रभारी राजकुमार सिंह को वहाँ से हटाकर उनकी जगह चन्दवक थाने के तेज तर्रार दरोगा शमशेर बहादुर सिंह श्रीनेत को सिकरारा का नया थाना प्रभारी नियुक्त कर दिया।
सिकरारा थाने का चार्ज सम्भालने के बाद शमशेर बहादुर सिंह श्रीनेत को भलीभाॅति पता था कि उनकी पहली प्राथमिकता क्या है। वे चुनौतीपूर्ण खुशबू अपहरण हत्याकाण्ड का पर्दाफाश करने में जी-जान से जुट गये। जाॅच को आगे बढ़ाने के लिए आरोपी चन्द्रशेखर से एक बार फिर से पूछताछ करना जरूरी था लेकिन वह जेल में बन्द था। चन्द्रशेखर यादव को पुलिस रिमाण्ड पर लेने के लिए थाना प्रभारी शमशेर बहादुर सिंह श्रीनेत जौनपुर के मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी के यहाॅ एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर दिया। रिमाण्ड दिये जाने के बावत् सुनवाई वाले दिन चन्दशेखर के वकील ने रिमाण्ड का विरोध किया लेकिन सरकारी वकील की दलीलों के सामने उस वकील की दलील काम नहीं आयी और न्यायाधीश महोदय ने 20 घण्टे के लिए चन्द्रशेखर को पुलिस रिमाण्ड पर दे दिया।
रिमाण्ड मिलते ही सिकरारा थाना प्रभारी शमेशर बहादुर अभियुक्त चन्द्रशेखर को जिला कारागार से लेकर थाने पहुॅचे तो क्षेत्राधिकारी बृजेन्द्र सिंह भी पूछताछ के लिए थाने आ गये थे। पूछताछ शुरू हुई तो चन्द्रशेखर पहले सारे आरोपों से इन्कार करता रहा लेकिन जब पुलिस ने अपने तरीके से पूछताछ शुरू की तो चन्द्रशेखर को टूटते देर नहीं लगा और वह रटे हुए तोते की तरह सारी कहानी बयां कर दी। रिमाण्ड के दौरान चन्द्रशेखर यादव ने पुलिस को जो कुछ बताया उसके अनुसार खुशबू के अपहरण और हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार है-

प्रमोद का दोस्त चन्द्रशेखर

सिकरारा थाना क्षेत्र के हसनपुर गाॅव निवासी रामनरेश यादव की बहू 25 वर्षीया खुशबू बिहार के आरा जिले की मूल निवासी है उसके पिता अजय कुमार मुम्बई की एक फैक्ट्री में काम करते है। खुशबू अपने माता-पिता के साथ मुम्बई में ही रह रही थी। इधर रामनरेश यादव को भी शादी के कई साल बाद तक जब गाँव में कोई ढंग का काम नहीं मिला तो रोजी-रोटी कमाने के लिए वह भी मुम्बई चले गये और वहाॅं गाय-भैसांे के एक तबेले मंे काम मिल गया तो वहीं काम करने लगे। वैसे भी जौनपुर जनपद के हजारों लोग मुम्बई महानगर में रोजी-रोटी का काम कर रहे हैं, रामनरेश भी उन्हीं में से एक था। रामनरेश साल में दो-तीन बार घर का भी चक्कर लगा लेता। समय के अन्तराल से रामनरेश की पत्नी लालती देवी तीन बेटों की मां बन गई जिनमें बड़े बेटे का नाम कलन्दर उससे छोटे का नाम प्रमोद कुमार उर्फ टुन्नी तथा टुन्नी से छोटे बेटे का नाम बबलू यादव था। युवा अवस्था होने पर प्रमोद का भी मन किसी ढंग के काम में नहीं लगा तो वह मुम्बई भाग गया। बेटे प्रमोद के मुम्बई पहुॅचने पर पिता रामनरेश ने कुछ दिन तो उसे अपने पास रखा लेकिन बाद में प्रयास करके उसे एक फैक्ट्री में काम दिला दिया। प्रमोद जैसे-तैसे फैक्ट्री में काम तो करता लेकिन उसका मन काम में न लगता। प्रमोद जिस कम्पनी में काम कर रहा था उसी कम्पनी में खुशबू के पिता अजय कुमार भी काम किया करते थे। एकही कम्पनी में काम करने के कारण प्रमोद का खुशबू के घर आना-जाना शुरू हो गया। छरहरे बदन की अच्छे नाक नक्श की खुशबू देखने में बेहद खूबसूरत थी, पहली ही नजर में खुशबू प्रमोद के दिल में उतर गई, प्रमोद दिल ही दिल में खुशबू को चाहने लगा। खुशबू भी प्रमोद को पसन्द करने लगी, फिर क्या था प्रमोद फैक्ट्री के काम से खाली होने के बाद खुशबू को साथ लेकर मुम्बई की सैर पर निकल जाता। दोनों के बीच रोमांस का सिलसिला शुरू हुआ तो बढ़ता ही गया। जल्द ही खुशबू के माॅ-बाप के साथ प्रमोद के पिता को भी पता चल गया कि दोनों के बीच प्रेम चल रहा है। रामनरेश और खुशबू के पिता ने आपस में विचार-विमर्श के बाद दोनों को शादी करने की इजाजत दे दी। इस प्रकार घटना से लगभग 5 साल पहले खुशबू और प्रमोद ने मुम्बई में ही शादी कर ली। शादी के एक महीने बाद तक प्रमोद कुमार मुम्बई में रहा इसके बाद खुशबू को साथ लेकर अपने गाॅव हसनपुर लौट आया, यह लगभग चार साल पहले की बात है।

बाद में उम्र अधिक हो जाने के कारण प्रमोद के पिता रामनरेश यादव भी मुम्बई का काम छोड़कर अपने गाॅव हसनपुर लौट आये और पत्नी लालती देवी और बेटे प्रमोद और उसकी पत्नी खुशबू के साथ गाॅव में ही रहते हुए खेती-बारी का काम देखने लगे। लेकिन प्रमोद का मन खेती-बारी करने में नहीं लगता उसका तो मन हमेशा इसी में लगा रहता कि कैसे कम समय में अधिक से अधिक पैसा कमाया जा सके। इसके लिए वह जो भी उल्टा सीधा काम होता करने से गुरेज नहीं करता। ईमानदारी से काम करने की जगह प्रमोद चोरी, छिनैती, राहजनी और लूटपाट की घटनाओं को अंजाम देने लगा। प्रमोद के चलते ही रामनरेश यादव के दोनों बेटे बड़ा बेटा कलन्दर और सबसे छोटा बेटा बबलू पिता से अलग अपनी रोजी रोटी कमा रहे थे। एक दिन छिनैती के एक मामले में पुलिस ने प्रमोद को पकड़कर जेल भेज दिया। जेल में ही प्रमोद की मुलाकात जौनपुर जनपद के केराकत थाना क्षेत्र के सिझवारा गाॅव निवासी रामकिशुन यादव के बेटे चन्द्रेशर यादव से हो गयी। चन्द्रशेखर यादव भी राहजनी और लूटपाट की घटनाओं को अंजाम दिया करता। ऐसे ही एक मामले में वह भी जेल में बन्द था, जेल में प्रमोद कुमार यादव और चन्द्रशेखर यादव की मुलाकात कुछ ऐसी हुई कि अपराधी किस्म के दोनों युवक आपस में दोस्त बन गये और जेल में ही तरह-तरह के मंसूबे बनाने लगे। समय के अन्तराल पर प्रमोद और चन्द्रशेखर अपनी-अपनी जमानत कराकर जेल से बाहर आये तो दोनों दोस्त एक साथ मिलकर आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने लगे। चूॅकि दोनों ही अपराधी प्रवृत्ति के थे इसलिए किसी भी घटना को अंजाम देने से उन्हें कोई गुरेज नहीं था और वे दोनों एक के बाद दूसरी आपराधिक घटनाओं को साथ-साथ मिलकर अंजाम देने लगे।
चन्दवक थाना प्रभारी की माने तो एक बार इसी थाना क्षेत्र में लाखों की छिनैती की घटना हुई जिसे प्रमोद और चन्द्रशेखर ने मिलकर अंजाम दिया था। लेकिन पुलिस को पक्का सबूत नहीं मिले। इस छिनैती की घटना में जो माल हाथ लगा था वह सारा पैसा प्रमोद के पास ही रहा। दोनों में तय हुआ था कि मामला जब शांत हो जायेगा तो दोनों पैसे का बंटवारा कर लेंगे। लेकिन कुछ दिनांे बाद जब चन्द्रशेखर ने प्रमोद से अपने पैसे का हिस्सा मांगा तो वह पैसा देने में आना-कानी करने लगा यही से दोनों दोस्तों के बीच दुश्मनी पैदा हो गयी। चन्द्रशेखर ने कई बार प्रमोद को धमकी दिया कि यदि उसने उसके हिस्से का पैसा नहीं दिया तो इसका अन्जाम बहुत बुरा होगा। इसी बीच प्रमोद यादव एक बाइक लूट के मामले में पुलिस द्वारा पकड़ा गया और जेल भेज दिया गया।
घटना में इस्तेमाल की गयी टाटा सुमो
प्रमोद के जेल जाने के बाद चन्द्रशेखर ने एक दो बार अपने आदमी से जेल में भी प्रमोद के पास संदेश भेजा कि वह उसके हिस्से का पैसा दे दें लेकिन प्रमोद हमेशा हीलाहवाली करके पैसे देने के मामले को टाल जाता। पैसा न मिलने से गुस्साया चन्द्रशेखर प्रमोद के परिवार वालों खासकर प्रमोद के माता-पिता पर दबाव बनाना शुरू कर दिया लेकिन यहाॅ भी उसे कामयाबी नहीं मिली तब उसने प्रमोद की पत्नी 25 वर्षीया खुशबू को धमकाना शुरू कर दिया। घटना से लगभग 15 दिन पहले चन्द्रशेखर खुशबू के पास पहुॅचकर उससे कहा कि उसके पति प्रमोद के पास उसके काफी पैसे बकाया है वह अपने पति से कहकर उसका पैसा उसे लौटा दें। यदि उसने ऐसा नहीं किया तो एक दिन वह उसी को उठा ले जायेगा।
दो-तीन बार की धमकी के बाद जब चन्द्रशेखर का काम नहीं बना तो प्लान करके अपने कुछ साथियों जिनमें रमेश पाण्डेय पुत्र मायाशंकर पाण्डेय निवासी ग्राम सुरहूरपुर, थाना केराकत और देवेन्द्र पाण्डेय पुत्र ओम प्रकाश पाण्डेय निवासी ग्राम सुरहूरपुर, थाना केराकत के अलावा टाटा सुमो गाड़ी के मालिक तथा चालक अरविन्द यादव पुत्र राममिलन निवासी शहाबुद्दीनपुर थाना केराकत को साथ लेकर हसनपुर गाॅव पहुॅच गया लेकिन उस समय खुशबू और उसके घर के आस-पास के लोग जाग रहे थे इसलिए वे सभी वहाॅ से चले गये और लगभग एक बजे रात पुनः पहुॅचे और खुशबू का जबरदस्ती अपहरण कर लिया।
चन्द्रशेखर ने पुलिस को बताया कि खुशबू को टाटा सुमो नम्बर एन0एच0 04 डब्ल्यू0 5255 में डालकर हम सभी आगे बढ़े, उस समय गाड़ी अरविन्द यादव ही चला रहा था। राजेपुर गाॅव पहुॅचने पर रमेश पाण्डेय ने खुशबू की गला दबाकर हत्या कर दी, गला दबाते समय खुशबू थोड़ी देर छटपटाती रही इसके बाद सदा के लिए शान्त हो गयी। खुशबू की लाश पुलिया के नीचे रखकर हम सभी लोग थानागद्दी होते हुए अपने-अपने घरों को चले गये। प्रमोद द्वारा पैसा न दिये जाने से मेरा माथा घूम गया था और मैं उसे सबक सिखाना चाहता था जो कुछ भी हुआ वह उसी का परिणाम था।
चन्द्रशेखर के इस बयान से एफआईआर मंे पहले से दर्ज भा.द.वि. की धारा 302, 201 और जोड़ दिया। नामजद आरोपी बंशीधर यादव और राजबहादुर यादव के बारे में पता लगाया गया तो पता चला कि इन दोनांे का नाम लालती देवी ने अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी की वजह से एफआईआर में नामजद कर दिया था, जबकि उन दोनांे की जगह रमेश पाण्डेय और देवेन्द्र पाण्डेय घटना के समय मौजूद थे। लेकिन लालती देवी उन दोनों को बिल्कुल नहीं पहचानती थी इसीलिए उन्होंने अपने दो दुश्मनों के नाम एफआईआर में डाल दिये। थाना प्रभारी शमशेर सिंह श्रीनेत अपने सहयोगी सब-इंस्पेक्टर सर्वेन्द्र राॅय को साथ लेकर हत्या में प्रयुक्त टाटा सुमो के मालिक अरविन्द यादव के निवास केराकत थाना क्षेत्र के शहाबुद्दीनपुर गाॅव पहुॅचे तो मालूम हुआ कि अरविन्द यादव पिछले आठ-दस दिन से घर नहीं आ रहा है। टाटा सुमो गाड़ी के बारे में बात की तो पता चला गाड़ी भी घर नहीं ला रहा है। थाना प्रभारी ने गाड़ी का पता लगाने के लिए दौड़धूप तेज कर दी तो गाड़ी केराकत थाना क्षेत्र के ही शेखजादा मोहल्ले से बरामद हो गयी। लेकिन पुलिस जब दोनों आरोपियों रमेश पाण्डेय और देवेन्द्र पाण्डेय के घरों में दबिश दी तो वे दोनों भी फरार मिले। थाना प्रभारी श्री शमेशर बहादुर फरार आरोपियांे की गिरफ्तारी के लिए उनके सभी सम्भावित ठिकानों पर दबिश तेज कर दी, लेकिन तीनों आरोपी पुलिस को चकमा देते हुए बचते जा रहे थे। आरोपियों की गिरफ्तारी न होने से अदालत में प्रार्थना पत्र देकर फरार तीन आरोपी रमेश पाण्डेय, देवेन्द्र पाण्डेय तथा टाटा सुमो के चालक अरविन्द यादव के खिलाफ कुर्की जप्ती की कार्यवाही शुरू कर दी तो पुलिस के बढ़ते दबाव से परेशान होकर अरविन्द यादव, देवेन्द्र पाण्डेय ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।
थाना प्रभारी शमशेर बहादुर सिंह श्रीनेत
सिकरारा थाना प्रभारी शमेशर बहादुर सिंह श्रीनेत ने प्रस्तुत कथा लेखक को बताया कि प्रमोद यादव एक कुख्यात अपराधी है उसके खिलाफ जनपद के सिकरारा, लाइन बाजार, मडि़याहूॅ, जफराबाद थाने में कुल 13 मुकदमें विभिन्न धाराओं में दर्ज है। इनमें लूट, एनडीपीएस एक्ट, पुलिस पार्टी पर फायरिंग, छिनैती, लूट शामिल है। वर्तमान समय में प्रमोद यादव बाईक लूट के एक मामले में जेल भेजा गया है। केराकत थाने के प्रभारी शैलेन्द्र सिंह ने बताया कि उनके थाना क्षेत्र का हत्यारोपी चन्द्रशेखर भी एक कुख्यात अपराधी व सेना का भगोड़ा है। अपनी अच्छी कद-काठी और पढ़ाई के बाद चन्द्रशेखर सेना में भर्ती तो हो गया लेकिन अपने चाल-चलन के कारण वह वहाॅ टिक नहीं सका, दरअसल उसका चरित्र काफी कमजोर था इसलिए सेना में भी उसपर उंगलियाँ उठने लगी तो उसका वहाॅ रहना सम्भव नहीं हुआ और वह वहाॅ से भाग निकला। सेना से आने के बाद चन्द्रशेखर की संगति कुछ अपराधी किस्म के लोगों से हो गयी जिसके साथ मिलकर छोटे-मोटे अपराधिक घटनाओं को अंजाम देने लगा जिसके चलते एक-दो बार उसे जेल भी जाना पड़ा। चन्द्रशेखर पर उसी के गाॅव की एक युवती ने बलात्कार का आरोप भी लगाया था। चन्द्रशेखर की आदतों से तंग आकर उसकी ब्याहता पत्नी दो वर्ष पूर्व उसे छोड़कर अपने पिता के घर चली गयी। समाज को दिखाने के लिए चन्द्रशेखर गाॅव में एक मुर्गी पालन का संचालन करता है। वैसे चन्द्रशेखर के खिलाफ केराकत थाने में दुष्कर्म, छिनैती के अलावा कई मामले दर्ज है। चन्द्रशेखर यादव का और भी आपराधिक इतिहास खंगाला जा रहा है, शायद उसके खिलाफ कुछ और मुकदमें का पता चल जाय।
कुल मिलाकर देखा जाय तो प्रमोद यादव और चन्द्रशेखर दोनांे ही जरायम के रास्ते के राही थे इन दोनांे की दोस्ती भी जरायम को लेकर ही प्रगाढ़ हुई थी और जरायम के कारण ही दोनांे की दोस्ती दुश्मनी में बदल गयी। सबसे अधिक खामियाजा प्रमोद एवं चन्द्रशेखर के मां-बाप को उठाना पड़ रहा है। निर्दोष होते हुए भी केवल बेटों के चाल-चलन के कारण उन दोनों को समाज के सामने शर्मिन्दा होना पड़ रहा है। इस पूरे प्रकरण में प्रेमिका खुशबू असमय ही मौत के मुंह में समा गई, सच ही कहा गया है गुनाह के रास्ते पर चलने वाले के साथ रहना, साथ देना खतरे से खाली नहीं होता, खुशबू के साथ भी यही हुआ। वैसे भी अपराधी कभी किसी का दोस्त नहीं होता, अपराधियों के अपने वसूल होते है उन्हें दुनियादारी से कोई मतलब नहीं होता।
कथा लिखे जाने तक पुलिस फरार आरोपी रमेश पाण्डेय को गिरफ्तार नहीं कर पायी है। थाना प्रभारी ने उम्मीद जतायी है कि जल्द ही उसके खिलाफ कुर्की जप्ती की कार्यवाही की जायेगी। थाना प्रभारी श्री शमशेर बहादुर द्वारा चार्ज लेने के 10 दिन के भीतर खुशबू अपहरण हत्याकाण्ड का पर्दाफाश किये जाने पर पुलिस अधीक्षक आकाश कुलहरी ने थाना प्रभारी की प्रशंसा की।
(प्रस्तुत कथा पुलिस द्वारा दिये गये तथ्यों, घटना स्थल से ली गयी जानकारी और मीडिया सूत्रों पर आधारित है।)
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