09 April, 2013

‘बेवफा बीवी को माफ करने की सजा’

“बाप का कत्ल कर दिया गया और उसके कत्ल के इल्जाम में मां जेल पहुंच गई। मुकदमा चला और मां पर इल्जाम सिद्ध हुआ, उसे आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई। पीछे उन दोनों का इकलौता बच्चा मां-बाप के कर्मों की सजा भुगतने को मजबूर है। बाप का गुनाह इतना था कि वह अपनी पत्नी के बहकते कदमों पर अंकुश न लगा सका, मां का कसूर यह था कि बेलगाम घोड़ी की तरह इधर-उधर जिस-तिस की बांहों में उछलती फिरती थी, मगर बेटे का क्या कसूर था?”
प्रतीक चित्र
आज इस कथा को लिखते वक्त बरबस ही मुझे संस्कृत का एक श्लोक बार-बार याद आ रहा है, ‘त्रियाचरित्र पुरुषोस्य भाग्यं दैवो न जानयति कुतो मनुष्य।अर्थात औरत का चरित्र और पुरुष के भाग्य का अंदाजा तो ईश्वर भी नहीं लगा सकते, फिर मनुष्य की बिसात ही क्या है? कदाचित औरत ही इस सृष्टि में एकमात्र वह प्राणी है जो एक ही वक्त में दिन और रात दोनों का आनंद उठाने की सोच सकती है। वह चाह सकती है लड्डू उसके हाथ में बना भी रहे और वह खा भी ले। वह एक ही वक्त में गाल फुलाना और हंसना दोनों कार्य करना चाहती है। कहने का तात्पर्य यह है कि औरत कुछ भी चाह सकती है, औरत कुछ भी कर सकती है।
उपरोक्त भाव ही इस कथा का सार तत्व है। इस पूरी कथा का केन्द्रिय चरित्रा है शुक्ला सरकार। शुक्ला मूलतः पश्चिम बंगाल के कोलकाता जिले के उत्तरपाड़ा इलाक की रहने वाली है। साधारण परिवार में पली-बढ़ी शुक्ला को न सिर्फ अपने परिवेश से नफरत थी, बल्कि वह गरीबी को भी अभिशाप समझती थी, लिहाजा होश संभालने के बाद से ही उसने सतरंगी सपनों में खुद को डुबाकर रख दिया था। सपनो में जीने की वह कुछ यूं अभ्यस्त हुई कि गुजरते वक्त के साथ उसने हकीकत को पूरी तरह नकार दिया। हकीकत क्या थी? यह वह जानना ही नहीं चाहती थी, मगर उसके परिजन भला सच्चाई से कैसे मुंह मोड़ लेते। उन्हें तो अपनी हैसीयत का अंदाजा था, जैसे-तैसे वे मेहनत करके अपने परिवार का गुजारा कर रहे थे। बेटी उनके लिए बोझ भले ही न रही हो, मगर उसकी बढ़ती उम्र के साथ-साथ उनकी चिन्ता बढ़ती जा रही थी।
शुक्ला अब तक 15 साल की हो चुकी थी, गेहूंआ रंग, छरहरी काया और बड़ी-बड़ी आंखें। कुल मिलाकर वह आकर्षक युवती कही जा सकती थी। वैसे भी मुहल्ले में उसके मुकाबले कोई दूसरी लड़की नहीं थी। अतः मुहल्ले के तमाम लड़कों के आकर्षण का केन्द्र थी। वहां सभी उसका सामिप्य हासिल करना चाहते थे, या यूं कहे की उसके नजदीक आने को मरे जा रहे थे। हालत ये थी कि वह जिससे भी मुस्कराकर दो बातें कर लेती, अगले दिन वही उसके आगे-पीछे घूमना शुरू कर देता।
लड़कों को अपने आगे-पीछे चक्कर लगाते देखकर उसे बेहद खुशी मिलती थी। सुकून हासिल होता था या शायद उसके इस अहम को संतुष्टि मिलती थी कि वह बहुत खूबसूरत है। बात चाहे जो भी रही हो, मगर उसका गरूर बढ़ता जा रहा था, कदम जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह तो अब खुले आसमान में मुक्त भाव से विचरना चाहती थी। ऐसे में वह कब तक अपने आप को बचाकर रख सकती थी। एक बार उसके कदम फिसले तो बस फिसलते ही चले गए।
अभियुक्ता शुक्ला सरकार
बेटी के अवैध संबंधों की खबर मां-बाप को लगी तो उनके कदमों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई। उन्होंने पहले तो समझा-बुझा व डांट-फटकार रास्ते पर लाने का प्रयास किया, लेकिन जब उसके सुधरने के लक्षण नहीं दिखाई पड़े तो घरवालों ने आनन-फानन में उसकी शादी करके अपनी इज्जत बचा ली, यानि अपनी परेशानी समीर के गले मढ़ दी।
समीर सरकार सोने-चांदी के आभूषण बनाने में निपुण कारीगर था और जमशेदपुर स्थित गोलमुरी इलाके में स्वागत होटल के बगल में स्थित अपने चचेरे भाई मिहिर कुमार की दुकान सुभद्रा ज्वेलर्स में काम करता था। शुक्ला से विवाह के बाद कुछ दिनों तो ठीक-ठाक बीता, इसी बीच शुक्ला एक बेटे अभिषेक की मां बन गई तो समीर सरकार खुशी से फूले नहीं समाए।
उन दिनों सरकार पत्नी और बेटे के साथ सीताराम डेरा स्थित बंगाली काॅलोनी में किराए के मकान में रहते थे। वह सवेरे दुकान पर जाते तो लौटते-लौटते रात हो जाती थी। ऐसे में मनमानी करने के लिए अवसर की कमी नहीं थी। ऊपर से रूप-यौवन से सम्पन्न शुक्ला की देहयष्टि इतनी आकर्षक थी कि किसी को भी पहली ही नजर मंे लुभा लेती थी। बताते है कि इस मौके का लाभ उठाकर शुक्ला ने जल्दी ही एक युवक से संबंध बना लिए और वासना का खेल खेलने लगी।
कहते हैं पाप कितना भी छुपाकर किया जाए उजागर हो ही जाता है। शुक्ला के साथ भी ऐसा ही हुआ। बताते है एक दिन वह अपने प्रेमी के साथ कमरे में पड़ी ‘ब्लू फिल्म देख रही थी, तभी मकान-मालिक की नजर पड़ गई। फिर मामला इतना बढ़ा कि दो दिन बाद ही समीर सरकार को वह घर छोड़ देना पड़ा था। इसके बाद समीर सरकार ने गोलमुरी इलाके के रामदेव बगान में किराए का कमरा लिया।
समीर सरकार बहुत ही शान्त और धीर-गंभीर स्वभाव के होने के बावजूद पत्नी की करतूत से बेहद क्षुब्ध थे और उसे कड़े शब्दों में चेतावनी भी दी थी, लेकिन शुक्ला अपनी ही धुन में मगन रही। उसने रामदेव बगान में भी एक युवक के साथ अवैध संबंध स्थापित कर लिया और चोरी-छिपे दोनों रंगरेलियां मनाने लगे।
कुछ समय तक सब कुछ गुपचुप चलता रहा, लेकिन धीरे-धीरे लोगों की आंखों में उन दोनों के संबंध खटकने लगे, तो फुसफुसाहटें शुरू हो गईं। आखिर समीर सरकार को पता चला तो उन्होंने फिर घर बदलने का फैसला कर लिया। शुक्ला ने इसका विरोध किया तो पति-पत्नी में झगड़े शुरू हो गये। इस पर शुक्ला ने एक नई शर्ते लगा दी। कहने लगी, “मैं रोज-रोज किराए का घर नहीं बदलूंगी, अगर तुम इस इलाके को छोड़ना ही चाहते हो तो ठीक है। अपना घर बनवा लो, मैं खुशी-खुशी चल पडूगी... “
यद्यपि उस समय समीर सरकार के पास इतने रुपए नहीं थे कि तुरन्त अपना घर बनवा लेते, लेकिन पत्नी की करतूतों के कारण रामदेव बगान में मुंह दिखाना मुश्किल हो रहा था, इसलिए उन्होंने जैसे-तैसे रुपयों का इंतजाम करके करीब सात साल पहले विरसा नगर जोन नम्बर-8 में एक प्लाट खरीद कर मकान बनवाना शुरू कर दिया। उस समय उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी कि वहां पार्थो बनर्जी उनके लिए मुसीबत बन जाएगा।
हत्या आरोपी पार्थो बनर्जी
(साक्ष्य के अभाव में रीहाई मिली)
विरसानगर के ही जोन नम्बर-3 में रहने वाला पार्थों बनर्जी बिजली का काम करता था। समीर, बनर्जी को बंगाली होने के अपनेपन में ही उसे अपने घर में वायरिंग करने का काम सौंप दिया था। वह स्वयं तो दिन भर दुकान पर रहते थे, इसलिए मकान में हो रहे काम की देख-रेख करने के लिए शुक्ला ही आया करती थी। वहीं पार्थो बनर्जी से उसकी पहली मुलाकात हुई थी।
पार्थों हमेशा बड़े ठाट-बाट से रहता और मोटर साइकिल पर चला करता था। उसके हाव-भाव से प्रभावित होकर शुक्ला ने तुरन्त ही उससे परिचय बढ़ाना शुरू कर दिया। उस समय तक पार्थो की शादी हो चुकी थी। फिर भी शुक्ला की शह पाकर वह शुक्ला का दीवाना हो गया।
मकान बनकर तैयार हो गया तो समीर परिवार के साथ उसमे रहने लगे, लेकिन यहां भी समीर को चैन नहीं मिला। अब पार्थो का आना-जाना शुरू हो गया था। बताया जाता है कि समीर सरकार की अनुपस्थिति में वह अक्सर आ जाता। शुक्ला उसे देखते ही खिल उठती और दरवाजा बंद करके दोनों लम्बे समय तक एकान्त में पड़े रहते। फिर उन दोनों को वक्त-बेवक्त मोटरसाइकिल पर भी घूमते देखा जाने लगा तो धीरे-धीरे पूरे इलाके में उनके सम्बन्धों को लेकर चर्चा होने लगी। समीर सरकार को यह सब पता चला तो वह बौखला उठे और घर में फिर रोज लड़ाई-झगड़ा होने लगा। मजबूरी यह थी कि अब तो वह घर भी नहीं बदल सकते थे। आखिर टूट कर समीर सरकार ने शराब पीनी शुरू कर दी। उसी नशे में कभी-कभी वह शुक्ला को पीट भी देते थे।
समीर सरकार ने कई बार पार्थों को भी कड़े शब्दों में अपने घर आने से मना कर दिया था। इसी सिलसिले में दो-एक बार दोनों में मारपीट भी हो चुकी थी, इसके बावजूद पार्थो और शुक्ला का सम्बन्ध बना रहा तो तंग आकर समीर सरकार ने एक पंचायत भी बैठाई, जिसमें उनके और पार्थो के परिजनों के साथ-साथ इलाके के भी तमाम लोग शामिल हुए थे। वहां पार्थों को बुलाकर उसकी लानत-मलामत की जाने लगी तो लोगों का रुख देखकर उसने माफी मांग लेने में ही भलाई समझी। यहीं नहीं उसने कसम भी खा ली कि भविष्य में कभी भी समीर सरकार के यहां नहीं जाएगा और न शुक्ला सरकार से मिलेगा।
आश्वासन के बाद दिखावे के लिए दोनों कुछ दिन परस्पर कटे-कटे भी रहे, लेकिन उन्होंने फिर मिलना-जुलना शुरू कर दिया तो समीर सरकार ने अपना मकान बेचकर कहीं और चले जाने का फैसला कर लिया।
मगर होनी तो बस होकर ही रहती है। 19 अक्टूबर 2006 को एकदम सवेरे-सवेरे ही समीर सरकार की मौत की खबर सुनकर समीर सरकार के घर पर अड़ोसी-पड़ोसी के साथ-साथ मोहल्ले के काफी लोग जुट आये, उन्हीं में से पता नहीं, किसने फोन करके पुलिस कंट्रोल रूम के डी.एस.पी.संगीता कुमारी को बिरसानगर थाना क्षेत्र में समीर की मौत के संदेहास्पद होने की खबर दे दी। उन्होंने तत्काल संबंधित थाने को इसकी जानकारी दे दी।
बिरसा नगर थाना प्रभारी जयराम प्रसाद जब घटना की जानकारी मिली उस समय सुबह के लगभग 10 बज रहे थे, आनन-फानन में वह अपने दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गये। अंदर पहुंचकर उन्होंने देखा समीर सरकार का शव अभी तक बिस्तर पर ही पड़ा था।
थाना प्रभारी जयराम प्रसाद ने बड़ी मुश्किल से पति के शव से लिपट कर रोती शुक्ला सरकार को धैर्य बंधाते हुए थोड़ा अलग हटाया तो मृतक के मुंह तथा नाक-कान से खून निकला देखते ही समझ गए कि यह हत्या का मामला है। उन्होंने ध्यान से शव का निरीक्षण किया तो स्पष्ट हो गया कि समीर सरकार को गला घोंटकर मारा गया था। फिर पूछताछ शुरू करते हुए शुक्ला सरकार से पूछा, “यह वारदात कब हुई?”
मृतक समीर सरकार: बेवफा बीवी को कदम
-कदम पर माफ किया, यही उसका कसूर था
“मैं क्या बताऊं साहब...?” शुक्ला चौककर सिसक उठी, “रात में सब गहरी नींद सो रहे थे, तब किसी वक्त...।”
“तुम्हें कब पता चला?”
शुक्ला जोर से सांस लेकर बताने लगी कि समीर को बेड-टी लेने की आदत थी। रोज की तरह आज सवेरे भी वह चाय का प्याला लेकर पति को जगाने गई, पर कई आवाज देने और हिलाने-डुलाने पर भी वह नहीं उठे, परेशान होकर उसने अपने बेटे आशीष से एक पड़ोसी को बुलवा कर सारी बात बताई। फिर पड़ोसी ने ही अंदर आकर देखने की बाद बताया कि समीर की तो मौत हो चुकी थी।
“ताज्जुब है...” थाना प्रभारी जयराम प्रसाद ने हैरानी से कहा, “बदन और नाक-मुंह से खून निकलता देखकर भी तुम्हें कुछ पता नहीं चला...।”
“मैं उस समय बहुत घबरा गयी थी, साहब।” शुक्ला एक पल रुकी, फिर होंठों पर जुबान फेरकर कहने लगी, “दरअसल वह शराब बहुत पीते थे, इसलिए मैंने समझा था कि...।”
“तुम्हारे पति की गला दबा कर हत्या की गयी है। दम घुटने की वजह से ही नाक, कान और मुंह से खून उबल आया...।” थाना प्रभारी जयराम ने शुक्ला की ओर देखते हुए पूछा, “तुम्हें किसी पर शक है?”
“नहीं...नहीं, साहब... भला कोई उनकी हत्या क्यों करेगा...”
“झूठ बोल रही है यह औरत...” सहसा भीड़ को चीरता हुआ एक व्यक्ति आगे आकर चिल्ला पड़ा, “इसको अच्छी तरह मालूम है कि क्यों हत्या की गयी और यह भी जानती है कि हत्या किसने की है?”
थानाप्रभारी जयराम प्रसाद ने आगंतुक की ओर देखते हुए पूछा, “तुम कौन...?”
“मैं मृतक का भाई मनीष सरकार हूं, साहब।” उसने खा जाने वाली आंखों से शुक्ला को घूरते हुए कहा, “सच्ची बात यह है इंस्पेक्टर साहब, कि अपने प्रेमी पार्थो बनर्जी की मदद से इसी डायन ने मेरे भाई को मार डाला... यह औरत नहीं वेश्या है... आपको मेरी बात पर विश्वास न हो तो मोहल्ले भर के लोगों से पूछ लीजिए...।”
“पार्थो कौन है?”
“इसी इलाके के जोन नम्बर-3 में रहता है... कौन नहीं जाता कि उसके साथ चार साल से इस औरत का नाजायज सम्बन्ध है... मेरे भाई को पता चला तो वह रोक-टोक करने लगा, बस इसीलिए इन दोनों ने मिलकर उसकी जान ले ली...।”
पुलिस को दिए अपने बयान में उन्होंने बताया कि एक दिन रात में दुकान से लौटते समय समीर उनके यहां आया, कुछ हाल-चाल के बाद बात आगे बढ़ी तब समीर ने बातों-ही-बातों में उनसे बताया कि शुक्ला और पार्थो मेरी हत्या भी करवा सकते हैं, सोच रहा हूं कि थाने जाकर इस बारे में एक शिकायत दर्ज करवा दूं।
शुक्ला व समीर सरकार का बेटा आशीष:
अब कौन होगा पालन हार
एक सूत्र हाथ में आते ही थाना प्रभारी जयराम प्रसाद सक्रिय हो उठे। उन्होंने तत्परता से पार्थो का पता लगाकर उसे पकड़ने के साथ ही शुक्ला को भी हिरासत में ले लिया तो वह एकदम चीखने-चिल्लाने लगी, “यह अन्नाय है, साहब... एक तो मेरे पति की हत्या हो गयी, दूसरे आप मुझे ही गिरफ्तार कर रहे हंै। इस आदमी ने अपने को मेरे पति का भाई बता दिया इसीलिए आपने इसकी बात सच मान ली... लेकिन आपको क्या पता कि यह भाई नहीं दुश्मन है... जब तक वह जिंदा रहे, ये लोग हमसे जलते रहे, और अब वह मर गए तो ये मकान पर कब्जा करने के लिए मुझे भी फंसा देना चाहते हैं... मेरे ऊपर मेहरबानी कीजिए इंस्पेक्टर साहब...आप भी बाल-बच्चेदार आदमी हैं... मेरे पति के हत्यारे को पकड़ने के बजाय उलटे मुझे परेशान मत कीजिए...”
शुक्ला के रोने-गिड़गिड़ाने का पुलिस पर कोई असर नहीं हुआ, पुलिस उसे गिरफ्तार कर थाने उठा लायी। बहुत घुमा-फिराकर पूछने के बावजूद शुक्ला बड़ी होशियारी से अपना जुर्म छुपाने की कोशिश करती रही, खीझकर पुलिस उपाधीक्षक राजीव रंजन ने थानाप्रभारी जयराम प्रसाद ने कहा, “यह मार खाए बिना कुछ नहीं बताएंगी एक महिला सिपाही को यहां भेज दीजिए। अभी चार बेंत लगाएगी तो यह खुद ही बोलने लगेगी।”
थाना प्रभारी जयराम प्रसाद उनका संकेत समझते ही बाहर निकल गए। पुलिस उपाधीक्षक राजीव रंजन ने शुक्ला पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालना शुरू किया, “देखो पुलिस बड़े-बड़े अपराधियों के भी पेट से भेद उगलवा लिया करती है। बेकार दुगर्ति कराने से कोई फायदा नहीं, भलाई इसी में है कि सीधे-सीधे सच्ची बात बता दो... “
“मैं सच ही बता रही हूं, साहब।
“झूठ बोल रही हो तुम...मियां-बीवी का झगड़ा पूरा मोहल्ला सुनता था...”
“शराबी-कबाबी आदमी के साथ रहने पर यह तो होगा ही साहब, दारू पीने के बाद वह अपने आप में तो रहता नहीं था। नशे में गला फाड़-फाड़कर चिल्लाता था तो सब सुनते थे...।”
 तत्कालीन डीएसपी संगीता कुमारी
बहरहाल पुलिस की पूछताछ में शुक्ला टूट गयी और अपना अपराद्द स्वीकार कर लिया। विवेचना के दौरान पुलिस को पता चला कि पार्थो के सहयोग से शुक्ला ने अपने पति का गला घोंटकर हत्या किया है, तब पुलिस ने पार्थो बनर्जी को भी गिरफ्तार कर शुक्ला सरकार के साथ उसे भी अदालत में प्रस्तुत कर दिया। जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।
पुलिस अनुसंद्दान में यह बात सामने आई थी कि घटना की रात पार्थो बनर्जी समीर सरकार के घर पहुंचने के पहले ही उसके यहां आकर छिप गया था। फिर रात में समीर सरकार आकर सो गए, तब शुक्ला के संकेत करते ही वह दबे पांव बिस्तर के पास पहुंच कर समीर सरकार के मुंह पर तकिया रखकर दबाने लगा। दम घुटने पर समीर सरकार छटपटाया तो जरूर, मगर पार्थो और शुक्ला ने उन्हें बुरी तरह भींच रखा था। आखिर थोड़ी देर बाद समीर सरकार निढाल हो गया, तब पूरे जोर से उसका गला भी दबा दिया गया ताकि जीवित बचने की कोई गुंजाइश न रह जाए।
अंततः विवेचना पूरी कर पुलिस ने शुक्ला सरकार व उसके कथित प्रेमी पार्थो बनर्जी के खिलाफ आरोप पत्र अदालत में प्रस्तुत कर दिया। फिर शुरू हुआ अदालती कार्यवाहियों का सिलसिला। लगभग 19 महीने चली इस मामले की सुनवाई के दौरान कुल 10 लोगों की गवाहियां हुई, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण गवाह मृतक समीर सरकार का बेटा अभिषेक था। किसी भी गवाह ने पार्थो बनर्जी को घटना की रात समीर के घर आते नहीं देखा था।
अंततः मामले की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की जोरदार दलीले सुनने के बाद 13 मई 2008 को फास्ट ट्रैक कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश ने बिरसापुर के चर्चित समीर सरकार हत्याकाण्ड में समीर की पत्नी शुक्ला सरकार को दोसी करार देते हुए उम्र कैद की सजा के साथ ही दस हजार रूपए का जुर्माना भी लगाया। जुर्माना की राशि जमा न करने पर एक वर्ष की और सजा अदा काटने की सजा सुनाया। जबकि शुक्ला सरकार के कथित प्रेमी पार्थो बनर्जी को पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में बाइज्जत बरी कर दिया।
अब शुक्ला सरकार तो जेल में अपने कर्मो की सजा भुगत रही हैं, लेकिन उनका इकलौता बच्चा अभिषेक मां-बाप के कर्मों की सजा भुगतने को मजबूर है। मां का कसूर यह था कि बेलगाम घोड़ी की तरह इधर-उधर जिस-तिस की बांहों में उछलती फिरती थी,  बाप का गुनाह इतना था कि वह अपनी पत्नी के बहकते कदमों पर अंकुश लगाने की कोशिश की तो मारा गया, मगर बेटे का क्या कसूर था? अब कौन उसका पालन हार होगा?
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