10 August, 2013

बेवश पति का भनायक फैसला

दीपिका
यौवन के वृक्ष पर खूबसूरती के फूल खिले हो तो मंजर किसी कयामत से कम नहीं होता। यही हाल था दीपिका का। यूं तो खूबसूरती उसे कुदरत ने जन्म से तोहफे में बख्शी थी, लेकिन अब जब उसने लड़कपन के पड़ाव को पार कर यौवन की बहार में कदम रखा तो खूबसूरती संभाले नहीं सम्भल रही थी।
वह आईना देखती तो जैसे आईना भी खुद पर गर्व करता। उसकी सांस थम जाती और वह दुनिया में खुबसूरती के उदाहरण चांद को भी नसीहत दे डालता, ऐ चांद, खुद पर न कर इतना गुरूर। तुझ पर तो दाग है। मगर मेरे वजूद में जो चांद सिमटा है, वह बेदाग है।
दीपिका मुस्कुराती तो लगता जैसे गुलाब का फूल सूरज की पहली किरण से मिलते हुए मुस्करा रहा है। अक्सर उसकी सहेलियां इस पर उसे टोक देतीं, ‘‘ऐसे मत मुस्कराया कर दीपिका। अगर किसी मनचले भंवरे ने देख लिया तो बेचारा जान से चला जाएगा। ’’
उसकी खूबसूरती को देखकर भी सहेलियां प्रेम भरी ईश्र्या से भर उठती थी। एक सहेली तो अपने जज्बात रोक नही पाई। उसने कह डाला, ‘‘तेरी इस खूबसूरती पर सदके जाऊं। जरा संभल के मेरी जान। तेरी ये बाकी अदाएं, ये नाजो अंदाज। खुदा कसम, मेरी तो जान ही ले लेगी। कुदरत ने गलती से मुझे लड़की बना दिया। अगर लड़का बनाया होता तो कसम से, अब तक तेरे साथ किसी न किसी तरह फेरे लगवा ही लेती।’’
दीपिका इस पर शरमा जाती। सहेली को झटकते हुए कहती, ‘‘चल हट पाजी कही की’’
दीपिका उत्तरप्रदेश में गंगा व यमुना के किनारे बसे इलाहाबाद के निवासी धर्मराज सिंह की लाड़ली बेटी थी। धर्मराज सिंह की परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटियां थी। दीपिका सबसे छोटी थी। उसने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की थी।
दीपिका खूबसूरत तो थी ही, साथ ही अच्छे संस्कार उसकी नस-नस में बसे थे। उसका व्यवहार कुशल होना, आधुनिकता और हंसमुख स्वभाव खूबसूरती पर चांद की तरह थे।
दीपिका सयानी हो गई है। यह अहसास उसकी मां को हो चला था, पर बड़ी बेटी शालिनी की शादी भी अभी नहीं हुई तो फिर भला दीपिका की शादी कैसे हो पाती। दीपिका की मां बार-बार पति धर्मराज सिंह को टोकती रहतीं, ‘‘बेटी पराया धन होती है। जितनी जल्दी हो सके, इन अमानतों को योग्य हाथों में सौंप दो। जमाना भी खराब है, फिर यह उम्र भी ऐसी है कि कदम भटकते देर नही लगती। इसलिए कहती हूँ, कोई अच्छा सा घर-वर देखकर इनके हाथ पीले कर दो।’’
धर्मराज सिंह आधुनिक विचारों थे। वह समय के साथ चलना चाहते थे। शुरू-शुरू में जब पत्नी ने कहा तो वह हंसकर बात टाल जाते थे, लेकिन जब दीपिका की मां कुछ अधिक ही गले पड़ने लगी तो धर्मराज सिंह ने दोनो बहनों के लिए घर-वर देखना शुरू कर दिया। अपने नाते रिश्तेदारों को भी उन्होंने सहेज दिया।
जल्द ही दीपिका के घर वाले और रिश्तेदारों की मेहनत रंग लाई। एक परिचित के माध्यम से दीपिका के लिए इलाहाबाद में ही एक लड़का सूर्यकान्त व शालिनी के लिए दिल्ली में कार्यरत एक लड़के के बारे में पता चला। तब उनके घर वालों से मिलकर धर्मराज सिंह ने रिश्ते की बात चली दी।
सूर्यकान्त के पिता नरेन्द्र सिंह पवार शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। उनके परिवार में पत्नी के आशा पवार के अलावा दो पुत्र सूर्यकान्त व चन्द्रकान्त है। छोटा परिवार होने के कारण उनके घर में किसी बात की कोई कमी नहीं थी। कुल मिलकार समाज और रिश्तेदारी में उनकी गिनती प्रतिष्ठित व्यक्तियों में होती थी। दोनों बेटों ने अच्छी शिक्षा हासिल की थी।
शिक्षा पूरी होने के बाद सूर्यकान्त भारतीय जीवन बीमा का एजेन्ट बन गया। उसे बीमा का काम बेहद पसन्द आया। तब वह पूरी लगन से इस काम में जुट गया और जल्द ही वह इस कार्य में निपुण हो गया। फिर तो वह सीढ़ी दर सीढ़ी बुलंदियों को छूते हुए भारतीय जीवन बीमा निगम में बी0एम0 क्लब का सदस्य बन गया। अब उसके पास गाड़ी, मकान व बैंक बैलेन्स भी हो गया था। बेटे के कार्य की क्षमता से पिता नरेन्द्र सिंह भी बहुत खुश रहा करते थे।
बीमा का काम जनसम्पर्क से ही सम्भव होता है। इसलिए सूर्यकान्त को जानने पहचानने वाले भी बहुत हो गए थे। उन्हीं में से एक सन्तलाल भी था। जिसके माध्यम से दीपिका के घर वालों ने रिश्ते की बात चलाई थी।
सगाई के समय दीपिका व सूर्यकान्त
संतलाल का सूर्यकान्त के घर आना जाना था। कुछ समय से सूर्यकान्त की शादी की चर्चा चल रही थी। कई लड़कियों का फोटो आया था, पर कोई भी लड़की सूर्यकान्त को पसन्द नहीं आ रही थी। धर्मराज सिंह ने बेटी दीपिका के लिए सूर्यकान्त को देखा तो उन्हें सूर्यकान्त पसन्द आ गया। बात आगे बढ़ी तो नरेन्द्र सिंह ने साफ-साफ कह दिया कि अगर उनके बेटे को लड़की पसन्द आ जाती है तब वह शादी के लिए तैयार है।
धर्मराज सिंह को भला इससे क्या आपत्ति थी। उन्हें तो पूरा विश्वास था कि पहली ही नजर में सूर्यकान्त दीपिका को पसन्द कर लेगा। आखिर थी भी तो वह इतनी सुन्दर और गुणवान। अतः धर्मराज सिंह ने लड़की देखने का न्योता दे दिया।
तयशुदा दिन पर सूर्यकान्त अपने मित्र संतलाल के साथ दीपिका को देखने के लिए धर्मराज सिंह के घर पहुँच गए। दरवाजा खोलने के लिए संतलाल ने कालबेल बजाई तो कुछ क्षण में एक युवती ने दरवाजा खोला। दरवाजा खोलने के लिए जो युवती आई थी, वह बहुत ही हसीन और खूबसूरत थी। सूर्यकान्त एकटक उसकी तरफ देखता ही रह गया। अपनी तरफ एकटक देखता देख वह युवती शरमाती हुई धीरे से संतलाल से बोली, ‘‘अन्दर आइए।’’ इतना कहते ही तेजी से वह अन्दर की तरफ चली गयी पर सूर्यकान्त उसे जाते हुए देखते यूं ही खड़ा रहा तब संतलाल ने चुटकी ली, ‘‘कहां खो गए जनाब यही दीपिका है, जिससे आपके रिश्ते की बात चल रही है। आओ अन्दर चलें।’’
सूर्यकान्त संतलाल की बात सुनकर दिल ही दिल में खुशी से ओत-प्रोत हो उठा था। अब तक धर्मराज सिंह व उसकी पत्नी भी आ गए। उन्होंने दोनो को ले जाकर ड्रांइग रूम में बैठाया, फिर औपचारिक परिचय के बाद सब बातें करने लगे। इस दौरान सूर्यकान्त चुप ही था पर उसकी निगाहें रह-रहकर अन्दर की तरफ चली जाती। जिस तरफ दीपिका गई थी। थोड़ी ही देर बाद दीपिका चाय लेकर आई तो उसकी मां ने उसे भी अपने पास बैठा लिया। सूर्यकान्त दीपिका से बहुत कुछ बात करना चाहता था पर संकोचवश कम ही बोलता था। वह तो बस दीपिका की नूर से चकाचौध हो गया था। अब तो वह दीपिका की तिरछी चितवन, गुलाबी होठों व मदभरी आंखों में जीवन के हसीन सपने तलाशने लगा था।
आधुनिक व खुले विचारों की दीपिका ने कनखियों से एक नजर सूर्यकान्त पर डाली तो उसे चेहरे पर हल्की सी मुस्कान सिमट आई। मां ने दीपिका से जब अकेले में सूर्यकान्त के बारे में बात की तो उसने भी अपनी पसंद की रजामंदी दे दी।
अब शादी की तारीख तय की जानी बाकी थी। हालांकि शालिनी का रिश्ता अभी नहीं तय हुआ था फिर भी लड़का हाथ से निकल जाने के डर से धर्मराज सिंह ने शुभ मुहूर्त देखवाकर उनकी सगाई करवा दी फिर 12 फरवरी 2004 को विवाह होना भी तय कर दिया गया। शादी की तैयारियां की जाने लगी और फिर वह दिन भी आ गया जब सूर्यकान्त की बारात दीपिका की चौखट पर आ पहुंची उसे लिवा जाने के लिए। धूमधाम से शादी की रस्में पूरी हो गई। फिर आई विदाई की बेला। दीपिका के परिजन जहां फूले नही समा रहे थे वहीं दूसरी ओर उन्हें बेटी की जुदाई का दर्द भी था, लेकिन यह तो परंपरा थी। पराई अमानत को तो घर से विदा करना ही था।
आशीर्वादों और खुशियों के आंसुओं के साथ दीपिका को परिजनों ने सूर्यकान्त की डोली में बैठा कर बिदा कर दिया। अपनों की जुदाई में आंसू छलकाती दीपिका ससुराल पहुंची तो चेहरे पर खुशी सिमट आई। ससुराल के लोगों ने उसे पलको पर बिठाया। सभी का व्यवहार देखकर दीपिका खुशी से फूली नहीं समा रही थी।
मधुर मिलन की रात्रि में सूर्यकान्त दीपिका के हुश्न और इश्क में इस तरह दीवाना हुआ कि उसे दीपिका की पलभर की जुदाई बर्दाश्त नहीं हो पाती। दोनो ने महीनों खूब मौज-मजा किया। इस दौरान घूमने-फिरने और प्रेम के सिवा उनकी दुनिया में और कुछ भी नहीं था।
यूं ही समय खिसकता रहा काफी दिनों बाद भी जब सूर्यकान्त ने अपना काम-धाम नहीं शुरू किया तब घर वालों ने उसे काम करने को याद दिलाया तो जैसे वह नींद से जागा और पुनः अपने काम में लग गया। दीपिका भी ससुराल में आज्ञाकारी बहू की तरह दिन बिताने लगी। कुछ दिन तक तो ठीक-ठाक चला। धीरे-धीरे घर की जिम्मेदारियां दीपिका को भारी लगने लगी फिर तो वह उदास सी रहने लगी। पत्नी की उदासी जब सूर्यकान्त से नहीं देखी गई तो एक दिन पूछ बैठा, ‘‘क्या बात है दीपा आजकल तुम कुछ अधिक ही उदास रहती हो?’’
दीपिका के माता-पिता
सूर्यकान्त के पूछने पर दीपिका कहने लगी, ‘‘मेरा तो घर के अन्दर दम घुटने लगा है। मैं इतने प्रतिबन्ध में नहीं रह सकती हूँ।’’
‘‘प्रतिबन्ध.....’’ सूर्यकान्त ने चौकते हुए कहा, ‘‘प्रतिबन्ध कैसे दीपा यह तो हर लड़की के साथ होता है। ससुराल में बड़ो का कहना मानना तो तुम्हारा फर्ज है, फिर तुम्हें किसी प्रकार का कोई रोक तो नहीं है, ऊपर से मैं भी तो तुम्हे घुमाता टहलाता रहता हूँ। बहुत ज्यादा घर से बाहर रहना अच्छी बात थोड़े होती है।’’
सूर्यकान्त के समझाने पर दीपिका चुप हो गई पर अब वह ज्यादातर अपने मायके में ही रहने लगी थी। जब वह ससुराल आती तो सूर्यकान्त से अनाप-सनाप चीजों की फरमाइश कर देती। इसी दौरान एक दिन दीपिका ने बीयर पीने की इच्छा जाहिर करते हुए बताया कि बीयर पीना तो उसका शौक है। तब सहसा सूर्यकान्त को दीपिका की बात का यकीन ही नहीं हुआ।
सूर्यकान्त दीपिका को अपनी जान से भी अधिक चाहता था। उसके बीयर पीने की शौक सूर्यकान्त को नागवार लग रही थी, फिर भी पत्नी के प्रेम में अंधा सूर्यकान्त दीपिका का यह शौक भी पूरा करने लगा। जब कभी भी दीपिका बीयर पीती थी तब वह सूर्यकान्त के आगे खुली किताब हो जाती थी और मजा लेकर बताती थी कि उसके कौन-कौन ब्वायफ्रेन्ड थे। किन-किन के साथ वह घूमती और कहां-कहां जाती थी।
हालांकि पत्नी की बात सूर्यकान्त को बुरी जरूर लगती थी, पर यह सोचकर वह कुछ भी नहीं कहता था कि यह सब उसने शादी से पहले किया था। लेकिन प्यार से दीपिका को समझाता, ‘‘देखो दीपा ! अब तक तुम क्या करती थी इससे मुझे कोई लेना-देना नहीं है पर अब तुम शादीशुदा हो। इसका भी ध्यान देना।’’
इस पर दीपिका नशे में झूमते हुए कहती, ‘‘छोड़ो यार! मुझे तो उन सब के साथ धूमने-फिरने, मौज-मजा करने में बहुत आनन्द आता है। तुम तो बस अब भी पुराने ख्यालात के लगते हो।’’
समय का चक्र चलता रहा सूर्यकान्त दीपिका को यह सोचकर कम ही मायके जाने देता था कि कही फिर वह अपने पुराने यार-दोस्तों के साथ फिर से घूमना टहलना न शुरू कर दे। इसी बीच अप्रैल 2005 में दीपिका की बड़ी बहन शालिनी की शादी पड़ी तो भी सूर्यकान्त ने बहुत कम दिनों के लिए दीपिका को मायके जाने दिया था। यह बात दीपिका के मां-बाप को भी बुरी लगी पर उन्होंने इसकी कोई चर्चा नहीं की।
पति के बदले रवैये से दीपिका परेशान सी हो उठी थी। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? आखिर कुछ सोच कर वह भी सूर्यकान्त पर अपने मां-बाप व भाई से अलग रहने के लिए दबाव बनाने लगी। लेकिन जब सूर्यकान्त परिवार से अलग रहने के लिए साफ मना कर दिया तो दीपिका सूर्यकान्त से बातचीत बंदकर अपने मायके चली गई।
दीपिका की नाराजगी से सूर्यकान्त अन्दर ही अन्दर टूट गया था। दीपिका को वापस घर लाने का सूर्यकान्त ने काफी प्रयास भी किया लेकिन सफल नहीं हुआ और एक दिन बहन की तबियत खराब होने की जानकारी मिली तो वह बहन के पास दिल्ली चली गई।
दीपिका के दिल्ली जाने की जानकारी सूर्यकान्त को हुई तो वह और भी परेशान हो उठा। फिर वह दीपिका से बात करने के लिए ससुराल से दीपिका के जीजा अभिषेक का मोबाइल नम्बर ले लिया। मोबाइल पर सम्पर्क करने के बाद भी गुस्से बस दीपिका सूर्यकान्त से बात नहीं करती थी। काफी प्रयास के बाद भी दीपिका जब सूर्यकान्त से बात तक करने को राजी नहीं हुई तो बिल्कुल ही टूट गया और कह दिया, ‘‘अब जैसा वह कहेगी वैसा ही करेगा।’’
सूर्यकान्त के हार मानते ही कुछ दिनों के बाद ही दीपिका दिल्ली से वापस आ गई। फिर दीपिका की इच्छानुसार उसने सितम्बर 2005 में इलाहाबाद के रसूलाबाद क्षेत्र स्थित गंगादर्शन कालोनी में कमरा लेकर रहने लगा। रसूलाबाद आते ही दीपिका पूरी तरह से स्वतंत्र हो गई थी। सोना, खाना और जागना सब उसकी मर्जी से होता था।
रसूलाबाद में रहते हुए सूर्यकान्त को अभी कुछ ही दिन हुए थे कि 13 सितम्बर 2005 की शाम सूर्यकान्त घबराई हालत में शिवकुटी थाने पहुंच गया। उस समय थाना प्रभारी मनोज सिंह रूटीन गश्त पर निकलने की तैयारी कर रहे थे। सूर्यकान्त ने सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह का एक बीमा अपने एक परिचित के माध्यम से किया था इस कारण मनोज सिंह सूर्यकान्त को जानते पहचानते थे।
थाने पहुंच कर सूर्यकान्त ने थानाप्रभारी मनोज सिंह से मुलाकात की और एक तहरीर देते हुए कहने लगा, ‘‘साहब आज सुबह से ही बहुत अधिक परेशान हूँ। मेरी पत्नी सुबह-सुबह न जाने कहां चली गई है। काफी पता लगाने के बाद भी उसका अब तक कोई पता नहीं चल रहा है।’’
सूर्यकान्त की बात सुनकर सबइंस्पेक्टर मनोज सिंह ने सरसरी नजर तहरीर पर डाली और चुटकी लेते हुए सूर्यकान्त से कहने लगे, ‘‘अरे भाई! तुम्हारी पत्नी कोई बच्ची तो है नहीं जो कहीं गुम हो जाएगी। इंतजार कर लो शायद किसी काम से गई हो। वापस आ जाएगी।’’
‘‘पर सर आज तक ऐसा नही हुआ है। मैने हर जगह पता भी कर लिया कहीं से भी उसके बारे में जरा सा भी सुराग नहीं मिला।’’ इतना कहते ही सूर्यकान्त रूआंसा हो उठा तब मनोज सिंह भी गम्भीर होकर पूछने लगे, ‘‘कहीं तुमने अपनी पत्नी से लड़ाई-झगड़ा तो नहीं किया था ?’’
‘‘नही साहब, लड़ाई हमारी नहीं होती है।’’
सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह 
आखिरकार थानाप्रभारी मनोज सिंह को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘अच्छा सूर्यकान्त तुम एक-दो घंटे तक और अपनी पत्नी की प्रतिक्षा कर लो शायद वह लौट आए। फिर भी वह नहीं लौट आती है तो तुम लगभग 10 बजे रात फिर मुझसे मिलना, फिर देखता हूँ मैं क्या कर सकता हूँ।’’
इसके साथ ही थाना प्रभारी सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह अपनी कुर्सी से उठे और दलबल सहित गश्त पर निकल पड़े।
रात दस बजे सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह गश्त से लौटे ही थे कि सूर्यकान्त कुछ लोगों के साथ शिवकुटी थाने पर आ गया। सूर्यकान्त को दोबार थाने में आया देखते ही सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह ने पूछा, ‘‘क्यों सूर्यकान्त तुम्हारी पत्नी का कुछ पता चला ?’’
‘‘नहीं साहब ।’’ सूर्यकान्त ने निराशा की एक लम्बी सांस ली, ‘‘थक हारकर आपके पास आया हूँ।’’
अन्ततः थाना प्रभारी मनोज सिंह सूर्यकान्त से पूछताछ कर घटनाक्रम के बारे में विस्तृत जानकारी लेने लगे।
पूछताछ के दौरान सूर्यकान्त ने मनोज सिंह को जानकारी दी कि आज सुबह वह तैयार होकर मार्निंग वाक के लिए निकला तब उसकी पत्नी दीपिका कमरे में सो रही थी। इस दौरान वह अपनी गाड़ी लेकर गया था लिहाजा मार्निंग वाक के बाद कुछ खास काम से चला गया। लगभग 11 बजे खाली होने के बाद सूर्यकान्त ने बाहर चाय-नाश्ता किया फिर अपने एक परिचित से मिलने चला गया। वहां से खाली होने के बाद लगभग 1 बजे घर लौटा तो दरवाजे पर ताला लगा हुआ था।
दरवाजे पर ताला लगा देख सूर्यकान्त कुछ देर तक इंतजार करने के बाद जब दीपिका नहीं आई तो फिर वह काम के सिलसिले में चला गया। दो घंटे बाद पुनः वापस लौटा तो भी दरवाजे पर ताला लटकता मिला तो सूर्यकान्त परेशान हो उठा। फिर उसने पास-पड़ोस से दीपिका के बारे में पता किया लेकिन दीपिका के बारे में उसे कोई जानकारी नही मिली। निराश हो दीपिका के मायके फोन कर पता किया । वहां भी उसके होने की जानकरी नहीं मिली। हैरान-परेशान सूर्यकान्त अपने कई परिचित और मित्रों के यहां सम्पर्क किया जहां दीपिका आया जाया करती थी। लेकिन वहां से भी सर्यूकान्त को निराशा ही हाथ लगी।
हर जगह से निराश होने के बाद सूर्यकान्त शिवकुटी थाना प्रभारी मनोज सिंह से सम्पर्क किया। सूर्यकान्त से मिली जानकारी से सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह चकित से हो गए थे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर दीपिका जा कहा सकती है। फिर यह बात भी थानाप्रभारी श्री सिंह के गले नहीं उतर रही थी कि सुबह-सुबह मार्निंग वाक पर निकला व्यक्ति बाहर ही चाय-नाश्ता कर काम पर लग गया। सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह ने सूर्यकान्त से अपनी शंका जाहिर न करते हुए पूछा,‘‘तुम्हारी ससुराल कहां है?’’
‘‘रसूलाबाद मे ही है, साहब !’’
‘‘जरा अपने ससुराल का फोन नम्बर देना। पता लगाऊं शायद अब दीपिका वहां पहुंच गई हो।’’
अतुल
थाना प्रभारी श्री सिंह के पूछने पर सूर्यकान्त ने उन्हे अपने ससुराल का नम्बर दे दिया। नम्बर मिलते ही उसी क्षण सब इंस्पेक्टर श्री सिंह ने दीपिका के मायके का नम्बर डायल किया तो उस तरफ से फोन दीपिका के पिता धर्मराज ने उठाया। अपना परिचय देते हुए सब इंस्पेक्टर श्री सिंह ने पूछा, ‘‘आपकी बेटी दीपिका कहां चली गई है। कुछ पता चला आप लोगों को?’’
‘‘नही साहब, हम सब भी उसी को लेकर परेशान है। मुझे तो शक है कि दामाद सूर्यकान्त ने ही दीपिका को गायब किया है।’’
‘‘यह कैसे कह सकते है आप?’’
‘‘दरअसल सुबह नौ बजे दीपिका की मां उससे मिलने उसके घर गई थी भला इतनी सुबह वह अकेले कहां जाएगी। हम लोगों ने सोचा कि दोनों साथ में कही बाहर गए होंगे, लेकिन जब दोपहर में फोन कर सूर्यकान्त ने दीपिका के बारे में पूछा तो हमें बहुत आश्चर्य हुआ।’’ कुछ क्षण चुप रहने के बाद धर्मराज सिंह कहने लगे, ‘‘दरअसल साहब, इधर कुछ दिनों से सूर्यकान्त मेरी बेटी को परेशान किया करता था। इससे लगता है कि सारी कारस्तानी उसी की है।’’
धर्मराज सिंह के रहस्य उजागर करने से थाना प्रभारी श्री सिंह गम्भीर हो उठे और उन्होंने सूर्यकान्त को थाना कार्यालय में बैठने को कह धर्मराज सिंह से बोले, ‘‘ऐसा किजिए अपनी लड़की का एक फोटो लेकर आप इसी वक्त थाने आ जाइए। आपका दामाद भी इस समय थाने में ही बैठा है।’’
इधर थाना प्रभारी ने सूर्यकान्त को थाना कार्यालय में बैठने व उसकी निगरानी करने की बात दीवान से कही तो सूर्यकान्त कुछ परेशान हो उठा। हालांकि अपने चेहरे पर आएं भावों को सूर्यकान्त जाहिर नहीं किया था, फिर भी तेज-तर्रार थाना प्रभारी श्री सिंह की सूक्ष्म नजरों ने तेजी से बदले इन भावों को पढ़ ली थी।
थाना प्रभारी मनोज सिंह अभी कुछ सोच ही रहे थे कि दीपिका के पिता धर्मराज सिंह भी आ गए। उन्होने साथ लायी दीपिका की फोटो उनकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह है मेरी बेटी दीपिका की फोटो।’’
तब थाना प्रभारी ने धर्मराज सिंह की हाथों से फोटो ले लिया। फोटो पर नजर पड़ते ही सब इंस्पेक्टर श्री सिंह की नजर स्थिर हो गई। फोटो एक बेहद खूबसूरत और फैशन परस्त युवती की थी। फोटो से नजर हटाते हुए थाना प्रभारी मनोज सिंह मन ही मन सोच में पड़ गए कि इतनी हसीन और खूबसूरत पत्नी से भला सूर्यकान्त को क्या शिकायत हो सकती है। कहीं मामला त्रिकोणीय प्रेम प्रसंग का तो नही है। आखिरकार वह धर्मराज सिंह से पूछताछ करने लगे।
पूछताछ के दौरान धर्मराज सिंह ने बताया कि सूर्यकान्त अक्सर ही दीपिका को मारा-पीटा करता था जबकि सूर्यकान्त कह रहा था कि वह अपनी पत्नी से बहुत प्रेम किया करता था फिर मारने-पीटने की बात उनकी समझ में नहीं आ रही थी। मामला उलझता हुआ देख तत्काल सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह ने अपने वरिष्ठ अधिकारी क्षेत्राधिकारी कर्नलगंज डी.पी.शुक्ला को सारी जानकारी से अवगत करा दिया।
जानकारी मिलते ही डी.पी.शुक्ला भी थाने आ गए। उन्होने भी सूर्यकान्त से व्यापक पूछताछ की तो पुनः सूर्यकान्त वही पुराना राग अलापने लगा। मामला हल होता हुआ न देख पुलिस अपने पर उतर आई तो सूर्यकान्त की आंखों में बेवसी के आंसू आ गए। लेकिन मुंह से कुछ बोल नहीं रहा था। तब क्षेत्राधिकारी डी.पी.शुक्ला ने मनोवैज्ञानिक दबाव डालते हुए कहने लगे, ‘‘देखो सूर्यकान्त मुझे तुमसे बेहद हमदर्दी है। मैं सब जान गया हूँ कि तुम्हारे साथ क्या मजबूरी थी। पर जब तक मैं पूरी बात नहीं जान पाऊंगा तब तक तुम्हारी कोई भी मदद नहीं कर सकता।’’
डी.पी. शुक्ला क सहानभूति भरे शब्द सुन चार घण्टे से पुलिस की जलालत सह रहे सूर्यकान्त के सब्र का बांध टूट गया और वह उनका पैर पकड़ कर रोता हुआ कहने लगा, ‘‘मैं आपको सब कुछ बता रहा हूँ साहब।’’ फिर सूर्यकान्त ने जो कुछ भी बताया। वह दर्द में डूबे बेवश पति की व्यथा और मजबूरी थी जिसने एक सीधे-साधे व्यक्ति को भयानक फैंसला कर लेने को मजबूर कर दिया था।
काफी मानमनौवल के बाद रूठकर दीपिका दिल्ली से सूर्यकान्त के पास आ गई थी। एक दिन बीयर पीने के बाद उसने एकान्त की क्षणों में बताया था कि दिल्ली में जीजाजी उसकी हर इच्छा पूरी करते थे। वहां एक दिन में हम सब तीन-तीन बोतल रम पी जाते थे। वाह-वाही झाड़ते हुए उसने यह भी बता दिया कि दिल्ली में रहने के दौरान वह कभी जीजा के साथ तो कभी उनके भाई के साथ तक सो जाती थी तो सूर्यकान्त का खून खौल उठा, भला कोई मर्द यह कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि उसकी बीबी दूसरे के साथ सोई थी फिर भी सूर्यकान्त ने इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया।
अभी कुछ ही दिन बीते थे कि दीपिका का जीजा दिल्ली से इलाहाबाद आया। फिर पति से जिद कर उसने एक दिन खाने का प्रोग्राम अपने घर पर रखा और पूर्वी उत्तर प्रदेश का पसंदीदा व्यंजन बाटी-चोखा बनवाया और जीजा को खाने पर बुलवाया। उस दिन दीपिका का जीजा आया तो सूर्यकान्त किसी जरूरी काम से कुछ देर के लिए बाहर चला गया। वापस लौटा तो कमरे में दीपिका अपने जीजा के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पड़ी थी। सूर्यकान्त के वापस आते ही दोनो अलग हुए और अपने कपड़े ठीक कर बाहर निकल गए।
अपनी आंखों से पत्नी का असली रूप देखकर सूर्यकान्त को अपने आपसे घीन आने लगी और वह सोचने लगा कि जिसके प्यार में वह पागल है, वह उसकी बीबी होते हुए भी गैरों की बांहों में झूलने के लिए बेताब है। गुस्से में आकर उसने दीपिका को कई थप्पड़ रसीद कर दिया।
अब तक दीपिका के प्रेम में दीवाना सूर्यकान्त दीपिका से घृणा करने लगा था। वह सोचता था कि दीपिका कभी नहीं सुधरेगी और हमेशा ही अपने हुश्न के जाल में उलझाकर नए-नए लोगों के साथ मौज-मस्ती करती रहेगी। अन्ततः सूर्यकान्त को जब यकीन हो गया कि कि दीपिका उसकी बन कर नहीं रह सकती और वह किसी अन्य की बाहों में उसे नहीं देख सकता था। सूर्यकान्त ने हमेशा-हमेशा के लिए दीपिका को दुनिया से विदा कर देने का निर्णय ले लिया।
इसी बीच सूर्यकान्त परिवार से अलग होकर गंगादर्शन कालोनी आ गया था। यहां आते ही दीपिका और भी आजाद हो गई। पहले तो सूर्यकान्त ने दीपिका को एक बार पुनः समझा-बुझा कर रास्ते पर लाने का प्रयास किया, लेकिन दीपिका इस पर भी नहीं सुधरी तो अपने फैसले को अंतिम रूप देने की योजना बना ली।
योजनानुसार 12 सितम्बर 2005 को सूर्यकान्त का चित्रकूट घूमने का प्रोग्राम था। घूमने के लिए उसने अपने मित्र अतुल काटिया और अरविन्द पाण्डेय को साथ ले लिया। फिर उसने दीपिका से पूछा, ‘‘हम लोग चित्रकूट घूमने जा रहे है, तुम्हारा क्या इरादा है ?’’
पति की बात सुनते ही घूमने-फिरने की शौकीन दीपिका तुरन्त ही तैयार हो गई। फिर कार से चारो घर से निकल पड़े। नैनी (इलाहाबाद) में आकर सब एक होटल पर रूके तो अतुल एक बोतल रम ले आया। फिर सबने मिल कर रम पी और खाना खाया और चित्रकूट की तरफ निकल पड़े। यहां वहां घूमते-फिरते रात घिर आई थी।
अन्ततः सूर्यकान्त ने चित्रकूट के मझगवां थाना क्षेत्र में एक सुनसान स्थान पर अपनी कार रोकते हुए कहने लगा, ‘‘यहां कितनी शांति है। चलो कुछ देर यहां हवा खोरी की जाएं, फिर आगे चलेंगे।’’
पति की बात दीपिका को भी अच्छी लगी और वह सब के साथ कार से बाहर आ गई और नशे की खुमारी लिए यहां-वहां टहलने लगी। अचानक योजना के मुताबिक सूर्यकान्त ने साथ लाएं असलहे से दीपिका के सीने पर फायर कर दिया। गोली लगते ही दीपिका के सीने से खून धारा बहने लगी और वह जमीन पर गिर कर छटपटाने लगी। कुछ देर तड़पने के बाद जब दीपिका शांत हो गई तो सूर्यकान्त ने साथ लाए कार से पेट्रोल निकालकर मृत दीपिका पर उड़ेल कर आग लगा दी।
धू-धू कर दीपिका का शरीर जलने लगा तब सूर्यकान्त अपने मित्रों के साथ घर की तरफ चल दिया। भोर होते-होते सब इलाहाबाद आ गए। फिर अरविन्द व अतुल अपने-अपने घर चले गए और सूर्यकान्त भी अपने घर आ गया। सुबह जल्दी उठ कर सूर्यकान्त ने दरवाजे पर ताला लगाया फिर चला गया दोपहर बाद घर लौटा तो यहां-वहां दीपिका के बारे में पता लगाने लगा। इसी क्रम में उसने दीपिका के मायके भी पता किया।
अन्ततः दीपिका को खोजने का नाटक करता गुमसूदगी दर्ज करवाने खुद थाने पहुंच गया। लेकिन तेज-तर्रार थाना प्रभारी सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह की सूझ-बूझ से सूर्यकान्त की चालाकी काम नहीं आई और उसने अपना अपराध कबूल कर लिया।
सूर्यकान्त के रहस्य उजागर करते ही सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह चौक पड़े और उन्होंने तत्काल उसकी जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को देने के साथ ही चित्रकूट के मझगवां थाने से सम्पर्क कर पता किया तो पता चला कि क्षेत्र में एक युवती का शव जली अवस्था में मिला है। शिनाख्त न होने पर मुकदमा दर्ज कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।
शव पाए जाने की जानकारी होते ही सब इंस्पेक्टर ने मझगवां पुलिस को बता दिया कि हत्यारे को उन्होने गिरफ्तार कर लिया है अब वह शिनाख्त के लिए उसे लेकर खुद ही मझगवां आ रहे है। उसके साथ ही श्री सिंह ने दीपिका के मां-बाप से ही दीपिका को मार डाले जाने की जानकारी दे दी। बेटी की नृषंस हत्या से घर में कोहराम मच गया। आनन-फानन में बेटी का शव लेने के लिए धर्मराज सिंह अपने परिचितों के साथ चित्रकूट चल दिए।
इधर शिवकुटी थानाप्रभारी सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह सूर्यकान्त को लेकर मझगवां पहुँचे तो पहले उन्होने उस स्थान की पहचान करवाई जहां सूर्यकान्त ने दीपिका को मौत के घाट उतारा था फिर उसे मझगवां पुलिस को सौंप दिया। जहां से आवश्यक कार्यवाही एवं पूछताछ के बाद अगले दिन पुलिस ने उसे अदालत में प्रस्तुत कर दिया। वहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया।
प्रस्तुत कथा लिखे जाने तक चित्रकूट पुलिस सूर्यकान्त के मित्र अतुल व अरविन्द की तलाश में उनके मिलने वाले सम्भावित स्थानों पर छापा मारने में लगी थी। पुलिस को विश्वास है कि शीघ्र की वह दोनों भी पुलिस के हत्थे लग जाएगें।
 (प्रस्तुत कथा पुलिस सूत्रों अभियुक्त के बयानो व जनचर्चाओं पर आधारित है)
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