06 March, 2014

तीन आशिकों से यारी जान से गयी बेचारी

तीन आशिकों से यारी जान से गयी बेचारी

संगीता
रिपोर्ट : ताराचंद विश्वकर्मा
उस दिन सूर्य की तपिश ज्यों-ज्यों बढ़ती जा रही थी, त्यों-त्यों संगीता की मां टीबली बाई की चिंता बढ़ती जा रही थी। कभी उनकी निगाहें खेतों पर अटक जातीं, कभी नजरे दरवाजे की ओर घूम जाती। घड़ी की सुईयों पर नजर पड़ती तो वह और भी बेचैन हो जाती। हर पल बीतने के साथ ही संगीता की मां के मन की अशांति बढ़ती जा रही थी।
दरअसल, बात ही कुछ ऐसी थी। जवान बेटी संगीता सुबह 10 बजे अपनी बड़ी बहन पारो की बेटी अन्नू को साथ लेकर चूड़ी खरीदने रावटी बाजार जाने का बोलकर निकली थी। धीरे-धीरे शाम हो गयी, लेकिन संगीता घर नही लौटी तो मां ने सोचा कि शायद संगीता अपनी किसी सहेली के घर चली गयी होगी।
धीरे-धीरे रात के नौ बजने को गए, लेकिन अभी तक संगीता का कोई अता-पता मिलने से टीबली बाई के दिमाग में आशंकाओं के बादल घुमड़ने लगे। वह सोच रही थी कि जवान बेटी का मामला है। कहीं कोई ऊंच-नीच हो गयी तो? संगीता आखिर कहां गयी होगी? यही सोच-सोचकर टीबली बाई परेशान हो रही थी।
रात दस बजे संगीता के पिता गलिया पारगी घर आये तो पत्नी के चेहरे पर उड़ती हवाईयां देखकर उन्होंने पूछा, “क्या बात है संगीता की मां! तुम इतनी परेशान क्यों हो?”
क्या बताऊं, संगीता सुबह दस बजे चूड़ी खरीदने रावटी जाने का बोलकर निकली थी, अभी तक घर नहीं आयी है। मेरा तो दिल बैठा जा रहा है।
अपने किसी सहेली के घर तो नहीं चली गयी?”
कहकर जाती तो चिन्ता किस बात की थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे मंुह पर कालिख पोतकर किसी के साथ भाग गयी हो?”
ऐसा अशुभ मत बोलो संगीता की मां। भगवान करे ऐसी कोई बात हो। वरना हम कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। तुम जाकर उसे ढूंढो।एक बार पुनः संगीता के घरवाले संगीता को ढूंढने लगे।
यह वाकया 29 मई 2013 की है। संगीता के घरवाले संगीता को अपने जानने-पहचानने वालों के अलावा रिश्तेदारों के यहां ढूंढने में लगे रहे। इस तरह 30 मई और 31 मई का भी दिन बीत गया। लेकिन संगीता और उसके साथ गयी अन्नू का कोई सूराग नहीं मिला। हर तरफ से निराश होने के बाद आखिरकार संगीता के घर वालों ने आपस में राय मसवरा कर 1 जून को रावटी थाने पर उनकी गुमशुदगी दर्ज करवा दी।
वक्त गुजरता रहा पुलिस अपने स्तर से संगीता और अन्नू को तलश में लगी थी। वहीं घर वाले भी बेटी नातिन की तलाश में लगे रहे, पर उनके बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिल पा रही थी।
20 जून को उमर गांव के नजदीक सड़क से करीब किलोमीटर नीचे स्थित जंगल में कुछ चरवाहों ने एक मानव खोपड़ी, कुछ हड्डियां और फटे हुए कपड़े देखे। पलक झपकते ही यह खबर दूर-दूर तक फैल गई। देखते ही देखते देखने वालों की भीड़ जमा हो गई।
इस बात की जानकारी बिलड़ी में संगीता के परिजनों को हुई। वह लोग भी कौतूहल बस मौके पर पहुंचे, तो वहां संगीता अन्नू के कपड़े, चप्पल चूडियां देख समझ गए कि उनकी बेटी नातिन अब इस दुनिया में नहीं रह गए। शायद किसी जालिम ने उन्हें मारकर यहीं कही दफन कर दिया है। इसी बीच किसी ने रावटी थाने पर इसकी जानकारी दे दी।
अन्नू
अपने थाना क्षेत्र में मानव खोपड़ी, कुछ हड्डियां और फटे हुए कपड़े पड़े होने की सूचना मिलते ही थाना प्रभारी आर.एस. बजैया ने आनन-फानन में इसकी जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारी एस.पी. डा.जी.के. पाठक देने के साथ ही अपने सहयोगी .एस.आई. लक्ष्मण तिवारी के अलावा आवश्यक दल-बल सहित घटनास्थल के लिए रवाना हो गए।
पुलिस को मौके पर पहुंची तो लोगों की भीड़ इधर-उधर हो गयी। थाना प्रभारी आर.एस. बजैया ने मौका मुआयना के बाद लगभग तीन घंटे तक कागजी कार्रवाई में उलझे रहे। चूंकि कपड़े, चप्पल चूडियां देखकर संगीता के पिता गलिया पारगी ने इसकी पहचान अपनी बेटी संगीता और नातिन अन्नू के होने की बात कह चुके थे। जबकि घटनास्थल पर एक ही खोपड़ी मिली थी।
शाम करीब चार बजे एसपी डा.जी.के. पाठक के मौके पर पहुंचने के बाद दूसरे कंकाल की खोज में उनके निर्देशन में खुदाई शुरू हुई। करीब एक फीट अंदर जाने के बाद कपड़ों में लिपटी एक ओर खोपड़ी निकली। यह पहले की खोपड़ी से बड़ी थी। एक साथ दो कंकाल देख पीडित परिवार के आंसू फूट पड़े और चारों तरफ कोहराम मच गया।
पुलिस दल कार्यवाही में जुटा ही था कि सूचना पाकर मौके पर पहुंचे एफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल बरामद कपड़े और हड्डियों का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान उन्हें कपड़े पर कहीं भी कोई ऐसा निशान नहीं मिला जिससे यह अंदाजा लगाया जा सके कि वारदात में चाकू या किसी अन्य हथियार का इस्तेमाल किया गया हो। लिहाजा उन्होंने अपनी आशंका व्यक्त की कि शायद दोनों की हत्या गला दबाकर की गयी है।
दो खोपड़ी कुछ कपड़ें बरामद करने के बाद पुलिस ने दोनों के घड़ बरामद करने के लिए काफी प्रयास किया। लेकिन पुलिस को सफलता नहीं मिली। फिर घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद कंकाल को सील-मोहर करवा दिया।
हांलाकि घटनास्थल से बरामद कंकाल और कपड़ों की शिनाख्त गलिया पारगी ने अपनी बेटी संगीता और नातिन अन्नू के रूप में कर दी थी। फिर भी इसकी पुष्टि के लिए एस.पी. डा.जी.के. पाठक के निर्देशन पर थाना प्रभारी आर.एस. बजैया ने वैज्ञानिक जांच पोस्टमार्टम के लिए गांधी मेडिकल कालेज भोपाल भिजवाने की व्यवस्था करवा दी।
साथ ही विज्ञानपरक रिपोर्ट के लिए संगीता अन्नू की माताओं के रक्त नमूने हड्डियां डीएनए टेस्ट के लिए फारेंसिक लैब भेजने की व्यवस्था करवाने के साथ ही थाना प्रभारी आर.एस. बजैया ने इस सन्दर्भ में दर्ज गुमसूदगी की रिर्पोट धारा 302 में परिवर्तित कर अपराधियों की धर-पकड़ के लिए मुखबीरों नगर सैनिकों का जाल फैला दिया। जल्द ही मुखबीरों से थाना प्रभारी आर.एस. बजैया को पता चला कि संगीता की घनिष्ठता गांव के ही मांगू मईड़ा के बेटे मदन बद्रीलाल भूरिया के बेटे गोविंद से अधिक थी। दोनों अक्सर ही संगीता के साथ देखे जाते थे।
बरामद कंकाल और कपड़ें
जानकारी मिलते ही थाना प्रभारी श्री बजैया ने पूछताछ के लिए छापा मारकर मांगू मईड़ा के बेटे मदन बद्रीलाल भूरिया के बेटे गोविंद को हिरासत में ले लिया। पूछताछ के दौरान पहले तो दोनों ने संगीता से किसी तरह का सम्बंध होने से इन्कार करते रहे। लेकिन जब दोनों को अलग करके के मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ किया गया तो वह टूट गए और अपना अपराध स्वीकार कर लिया।
अंततः अभियुक्तों के बयानों पुलिस छानबीन में अवैध संबंधों की चासनी में पकी हुई एक ऐसी रोमांचक कथा सामने आई जिसमें एक युवती, एक नहीं... दो नहीं... तीन युवकों से इश्क फरमाती थी। तीनों ही उसके प्यार में पागल थे। वह भी तीनों को बराबर समय देती थी। किसी को भी यह अहसास नहीं होने देती थी कि उसका किसी और से भी अफेयर है।
मध्य प्रदेश के रतलाम जिला अर्न्तगत रावटी थाना क्षेत्रा में एक कस्बा है बिलड़ी। इसी कस्बे में गलिया पारगी अपने परिवार के साथ रहते हैं। गलिया पारगी ने अपनी बड़ी बेटी पारो का कुछ साल पहले ही कर दिया था। पारो से छोटी थी संगीता, संगीता से छोटी थी सुमा।
साधारण परिवार में पली-बढ़ी संगीता को सिर्फ अपने परिवेश से नफरत थी, बल्कि वह गरीबी को भी अभिशाप समझती थी, लिहाजा होश संभालने के बाद से ही उसने सतरंगी सपनों में खुद को डुबाकर रख दिया था। सपनो में जीने की वह कुछ यूं अभयस्त हुई कि गुजरते वक्त के साथ उसने हकीकत को पूरी तरह नकार दिया। हकीकत क्या थी? यह वह जानना ही नहीं चाहती थी, मगर उसके परिजन भला सच्चाई से कैसे मुंह मोड़ लेते। अतः उन्हें मालुम था कि वे गरीब हैं। बेटी उनके लिए बोझ भले ही रही हो, मगर उसकी बढ़ती उम्र के साथ-साथ उनकी चिन्ता बढ़ती जा रही थी।
संगीता के पिता गलिया पारगी मेहनत कर जैसे-तैसे अपने परिवार का गुजारा कर रहे थे। संगीता उन दिनों किशोरावस्था में पहुंची ही थी, जब उसके पिता ने उसके लिए रिश्ता ढूंढना शुरू कर दिया। अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भी उन्होंने संगीता के लिए उपयुक्त वर तलाशने को कह दिया था।
संगीता अब तक 17 साल की हो चुकी थी। गेहूंआ रंग, छरहरी काया और बड़ी-बड़ी आंखें, कुल मिलाकर वह आकर्षक युवती कहीं जा सकती थी। वैसे भी मुहल्ले में उसके मुकाबले कोई दूसरी लड़की नहीं थी। अतः मुहल्ले के तमाम लड़कों के आकर्षण का केन्द्र थी। वहां सभी उसका सामिप्य हासिल करना चाहते थे, या यूं कहे की उसके नजदीक आने को मरे जा रहे थे। हालत ये थी कि वह जिससे भी मुस्कराकर दो बातें कर लेती, अगले दिन वही उसके आगे-पीछे घूमना शुरू कर देता।
गलिया पारगीटीबली बाई
लड़कों को अपने आगे-पीछे चक्कर लगाते देखकर उसे बेहद खुशी मिलती थी। सुकून हासिल होता था या शायद उसके इस अहम को संतुष्टि मिलती थी कि वह बहुत खूबसूरत है। बात चाहे जो भी रही हो, मगर उसका गरूर बढ़ता जा रहा था, कदम जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह तो अब खुले आसमान में मुक्त भाव से विचरना चाहती थी। ऐसे में वह कब तक अपने आप को बचाकर रख सकती थी, जल्द ही गांव के ही मांगू मईड़ा के बेटे मदन से उसकी आंख लड़ गई।
बात लगभग दो-ढ़ाई पहले कि है एक दिन संगीता किसी काम से बाजार जा रही थी। रास्ते में अपनी तरफ गांव के ही मदन को एकटक देखते संगीता ने कड़क कर पूछा, “इस तरह मेरी तरफ क्या देख रहे हो?”
एकबारगी तो मदन झेंप गया और दूसरी तरफ देखने लगा। लेकिन थोड़ी ही देर में हिम्मत जुटाकर बोला, “संगीता ! मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं। मगर डरता कि कहीं तुम बुरा मान जाओ।
ऐसी कौन सी बात है?” संगीता त्यौरियां चढ़ाते हुए बोली।
पहले तुम वादा करो। अगर मेरी बात तुम्हें बुरी लगी तो, मुझे माफ कर दोगी।
मदन, तुम पहेलियां ही बुझाते ही रहोगे या कुछ कहोगे। चलो, मैं वादा करती हूं कि तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं मानूंगी।संगीता ने मुस्कुराते हुए कहा।
संगीता मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं। अपनी जान से भी ज्यादा, मैं चाहता हूं कि तुम सदा के लिए मेरी बन जाओ।कुछ देर रूककर मदन फिर कहने लगा, “हां... कोई जवाब देने से पहले सोच लेना कि तुम्हारे इकरार और इंकार पर ही मेरी जिंदगी टिकी है।कहकर मदन संगीता के जवाब की प्रतिक्षा किये ही वहां से चला गया।
संगीता बुत बनी मदन को जाते देखती रही। उसके कानों में मदन के कहे शब्द गूंज रहे थे।
संगीता के मन में गुदगुदी-सी होने लगी। सच तो यही था कि वह भी दिल-दिल में मदन से इश्क करने लगी थी। मदन ने पहल की तो उसने भी मदन का प्यार कबूल कर लिया और दोनांे का प्यार परवान चढ़ने लगा। दोनों को जब भी समय मिलता, वे उसे गंवाते नहीं थे।
संगीता द्वारा मदन का प्यार स्वीकार लेने से मदन की तो जैसे दुनिया ही बदल गई थी। वह दिल खोलकर उस पर खर्च करने लगा था। संगीता भी बिना किसी ना-नुकुर के अपना सब कुछ मदन को साैंप दिया।
घटनास्थल का निरीक्षण करती पुलिस
इसी बीच गांव के ही बद्रीलाल भूरिया के बेटे गोविंद की नजर संगीता पर पड़ी तो वह भी संगीता के आगे-पीछे चक्कर लगाने लगा। जल्द ही संगीता ने उसे भी अपने प्यार में उलझा लिया। अब वह एक नहीं दो प्रेमियों से प्यार का खेल खेलने लगी। मदन जंहा खुलकर संगीता पर पैसे लुटाता था। वहीं गोबिन्द भी दोनों हाथों से संगीता पर खर्च करता था। संगीता ने भी दोनों के लिए अलग-अलग समय बना लिया। उन्हें शक तक नहीं होने दिया कि वह किसी और से भी प्यार करती है।
दो आशिक के होने के बाद भी चंचल संगीता के मन को चैन मिला और उसने एक और युवक से भी अपना नाता जोड़ लिया। एक फूल और तीन भौरों का यह सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा। लेकिन प्यार की यह चोरी आखिर कब तक संगीता कर पाती, एक दिन तो परदा उठना ही था।


29 मई की सुबह संगीता अपनी बहन सुमा के साथ कुएं से पानी भर रहीं थी कि कुछ ही देर में गोविंद वहां पहुंचा मिलने के लिए संगीता को उमरघाटा बुलाया। पहले तो संगीता ने कुछ टालमटोल किया, क्योंकि उस दिन दिन उसका अपने प्रेमी मदन से रावटी में मिलने का प्रोग्राम पहले से ही तय था। लेकिन जब गोविंद जिद करने लगा तो संगीता ने उसकी बात मान ली।

सुबह दस बजे संगीता अपने प्रेमी गोविंद से मिलने के लिए अपनी बड़ी बहन पारो की बेटी अन्नू को साथ लेकर चूड़ी खरीदने के बहाने रावटी बाजार जाने का बोलकर घर से निकली। कुछ ही देर में वह उमरघाटा बस स्टाप पहुंच गयी। वहां गोविंद उसे मिला और अपने साथ लेकर चला गया। तीन-चार घण्टे मौज-मजा करने के बाद वह अपने घर बिलड़ी जाने के लिए निकल पड़ी।


इधर पहले से तय समय पर संगीता जब रावटी नहीं पहुंची, तो मदन बेचैन हो गया। जैसे-तैसे शाम चार बजे गये संगीता नहीं आई तो वह उसकी खोज-खबर लेने के लिए निकल पड़ा। यहां-वहां तलाश करते हुए उमरघाटा के पास पहुंचा ही था कि संगीता को गोविंद के साथ देख उसका खून खौल उठा और उसका गोविंद से विवाद होने लगा।
एस.पी. डा.जी.के. पाठक
गुस्से में मदन ने गोविंद को मारने के लिए घर से कुल्हाड़ी लाया। बात आगे बढ़ती इसी बीच गोविंद ने बताया संगीता का गांव के अन्य युवक से भी संबंध हैं। इतना सुनते ही मदन गुस्से से पागल हो गया। फिर गोविंद ओर मदन दोनों ही संगीता को मारने-पीटने लगे। इतने पर भी दोनांे का गुस्सा कम नहीं हुआ तो दोनों ने संगीता का गला कसकर मौत की नींद सुला दिया। इस दौरान संगीता के साथ आई उसकी भतीजी अन्नू शोर मचाने लगी तो दोनों ने मिलकर उसका भी गला घोंटकर मौत की नींद सुला दिया।
दोनों की मौत से मदन और गोविंद बदहवास हो गए। आनन-फानन में दोनों ने अपने मित्रा सग्गू भूरिया के बेटे रोशन, बाबू भूरिया के बेटे बबलू, शंभू खडिय़ा के बेटे रमेश, रंगजी मईड़ा के बेटे सुनील, मानजी मईड़ा के बेटे दुबलिया को बुला लिया। फिर उनके सहयोग से पहले संगीता उसके बाद अनु के सिर कुल्हाड़ी से अलग किए। गड्ढा खोदा संगीता के कपड़ों में उसका सिर लपेट कर अनु के शव के साथ दफना दिया। रात 8 बजे आरोपियों ने संगीता का निर्वस्त्रा धड़ धोलावड़ जलाशय में फेंक दिया।
बारिश होने पर गड्ढे में दबी लाश सड़ गई दुर्गंध फैलने से जंगली जानवरों ने उन्हें खोदकर निकाल लिया। पूछताछ के बाद पुलिस ने मदन और गोविंद की निशानदेही पर बिलड़ी निवासी रोशन, बबलू, रमेश, सुनील और दुबलिया को भी गिरफ्तार कर लिया है।
अंततः सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद 3 जूलाई को थाना प्रभारी आर.एस. बजैया ने सभी आरोपियों को सैलाना में न्यायिक दंडाधिकारी धर्मेंद्र टाडा के सामने पेश किया, जहां से 9 जुलाई तक उन्हें पुलिस रिमांड पर सौंप दिया।
(प्रस्तुत कथा पुलिस मीडिया सूत्रों पर आधरित है)