09 August, 2013

नाजायज रिश्तों की चाह में

हत्यारोपी बीनू पाठक
यौवन के वृक्ष पर खूबसूरती के फूल खिले हो तो मंजर किसी कयामत से कम नहीं होता। यही हाल था बीनू का। यूं तो खूबसूरती उसे कुदरत ने जन्म से तोहफे में बख्शी थी, लेकिन अब जब उसने लड़कपन के पड़ाव को पार कर यौवन की बहार में कदम रखा तो खूबसूरती संभाले नहीं सम्भल रही थी।
वह आईना देखती तो जैसे आईना भी खुद पर गर्व करता। उसकी सांस थम जाती और वह दुनिया में खुबसूरती के उदाहरण चांद को भी नसीहत दे डालता, चांद, खुद पर कर इतना गुरूर। तुझ पर तो दाग है। मगर मेरे वजूद में जो चांद सिमटा है, वह बेदाग है।
बीनू मुस्कुराती तो लगता जैसे गुलाब का फूल सूरज की पहली किरण से मिलते हुए मुस्करा रहा है। अक्सर उसकी सहेलियां इस पर उसे टोक देतीं, “ऐसे मत मुस्कराया कर बीनू। अगर किसी मनचले भंवरे ने देख लिया तो बेचारा जान से चला जाएगा।
उसकी खूबसूरती को देखकर भी सहेलियां प्रेम भरी ईर्ष्या से भर उठती थी। एक सहेली तो अपने जज्बात रोक नही पाई। उसने कह डाला, “तेरी इस खूबसूरती पर सदके जाऊं। जरा संभल के मेरी जान। तेरी ये बाकी अदाएं, ये नाजो अंदाज। खुदा कसम, मेरी तो जान ही ले लेगी। कुदरत ने गलती से मुझे लड़की बना दिया। अगर लड़का बनाया होता तो कसम से, अब तक तेरे साथ किसी किसी तरह फेरे लगवा ही लेती।
बीनू इस पर शरमा जाती। सहेली को झटकते हुए कहती, “चल हट पाजी कही की
बीनू उत्तर-प्रदेश के बाराबंकी जनपद के कोठी थाना अन्तर्गत कोठी गांव निवासी शिवबालक मिश्र की बेटी है। शिवबालक मिश्र की परिवार में पत्नी के अलावा चार बेटे और तीन बेटियां थी। बेटियों के क्रम में सबसे छोटी बीनू उर्फ विन्ध्यवासिनी खूबसूरत तो थी ही, साथ ही अच्छे संस्कार उसकी नस-नस में बसे थे। उसका व्यवहार कुशल होना, आधुनिकता और हंसमुख स्वभाव खूबसूरती पर चांद की तरह थे।
बीनू सयानी हो गई है। यह अहसास उसकी मां को हो चला था, बीनू की मां बार-बार पति शिवबालक को टोकती रहतीं, “बेटी पराया धन होती है। जितनी जल्दी हो सके, इन अमानतों को योग्य हाथों में सौंप दो। जमाना भी खराब है, फिर यह उम्र भी ऐसी है कि कदम भटकते देर नही लगती। इसलिए कहती हूँ, कोई अच्छा सा घर-वर देखकर इनके हाथ पीले कर दो।
शिवबालक बीनू के लिए रिश्ता तलाश पाते इसी बीच उन पर दुःखो का पहाड़ टूट पड़ा, जब एक दिन उनके बेटे पवन की युवावस्था में मौत हो गयी। बेटे की असमय मौत के दुखः से शिवबालक अभी पूरी तरह से उबर भी नहीं पाये थे कि वह बेटी बीनू की हरकतों को लेकर काफी परेशान हो उठे थे। शिवबालक की परेशानी की वजह शादी से पहले ही बेटी का मोहल्ले के एक आवारा युवक राकेश भारती के प्रेम जाल में फंस जाना और अक्सर उस लड़के के साथ घण्टों घर से बाहर गायब रहना था। शिवबालक अपनी बेटी बीनू को ऊंच-नीच समझाकर रास्ते पर लाने का प्रयास किया, लेकिन बीनू की आदतों में कोई बदलाव नहीं आया। हद तो तब हो गयी जब एक दिन बीनू अपने पिता के मुंह पर कालिख लगा उस आवारा लड़के राकेश भारती के साथ घर से भाग गयी। बेटी के गायब होने के बाद शिवबालक मिश्र को पुलिस की मदद लेनी पड़ी, कई दिन तक पुलिस-थाने का चक्कर लगाने के बाद ही बीनू की घर वापसी हो पाई। इस घटना से उन्हें काफी दुख पहुंचा और उन्होंने निर्णय ले लिया कि जल्द ही कोई लड़का देखकर बीनू के हाथ पीले कर देंगे। शादी के बाद पति का सानिध्य मिलने पर सम्भव है बीनू की भटकती कामनाएं एक जगह स्थिर हो जाय। बीनू के लिए घर-वर की खोज शुरू कर दी, संयोग से प्रदेश के जौनपुर जिले के केराकत थानान्तर्गत डेढ़वाना गांव के मूल निवासी राजनारायण पाठक का बेटा आलोक कुमार सब प्रकार से ठीक-ठाक लगा।
आलोक पाठक हाई स्कूल पास था, उसके पिता राजनारायण पुलिस विभाग में कार्यरत थे और कुछ साल पहले सब इंस्पेक्टर के पद से रिटायर हो चुके है। चार बेटों में सबसे छोट आलोक के बड़े भाई संजय पाठक की शादी बीनू के भाई अंजनी मिश्र की पत्नी की एक बहन के साथ हुई है। परिवार जाना समझा लगा तो दोनो परिवार की सहमती से जौनपुर के मैहर देवी मंदिर में वर्ष 2007 में बीनू की शादी आलोक से कर दी गई। शादी के बाद बीनू अपने पति आलोक के साथ अपनी ससुराल गयी। शुरू-शुरू में आलोक अपनी पत्नी बीनू संग जौनपुर शहर के गांधी नगर तिराहे के पास पिता राजनारायण द्वारा बनवाए गये निजी मकान में उन्हीं के साथ ही रहने लगा।
मृतक आलोक पाठक
समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा और कब तीन साल बीत गये पता नहीं चला। इसी बीच बीनू आलोक की बेटी बेबी की मां बन गई, बेटी बेबी के जन्म के कुछ ही महीने बाद जाने ऐसा क्या कुछ हुआ कि बीनू अपने पति के साथ ससुर राजनारायण का मकान छोड़कर शहर के ही लाइन बाजार थाना क्षेत्र के दीवानी कचहरी के पीछे न्यू भगौती कालोनी, मियांपुर में किराए का एक मकान लेकर रहने लगी।
बीनू के पति आलोक से बड़े तीनो भाई वर्तमान में जौनपुर के केराकत थाना क्षेत्र के डेढ़वाना गांव वाला पैतृक आवास को छोड़कर शहर के ही विभिन्न मुहल्लों में अपनी पत्नी-बच्चों समेत रहते है। आलोक पाठक को छोड़ बाकी तीनों भाईयों का अपना अलग व्यवसाय था। आलोक अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए टैम्पो चलाया करता। आलोक के पास खुद का व्यवसाय करने के लिए पर्याप्त पुंजी नहीं थी, ऐसे में उसके बड़े भाई अजय ने उसकी मदद की, अजय अपने पैसे से एक टैम्पो खरीदकर आलोक को दे दिया, आलोक उसी टैम्पो को चलाकर अपनी रोजी-रोटी कमाता। दोनो भाईयों में यह तय हुआ था कि टैम्पो से प्रतिदिन जो कमाई होगी उसका का एक हिस्सा अजय ले लिया करेगा। कुल-मिलाकर आलोक की तीन जनों की छोटी सी गृहस्थी बड़े ही आराम से चल रही थी।
25 जनवरी को मडि़याहूं कोतवाली के प्रभारी शिवानन्द यादव को शारदा सहायक नहर में एक अधेड़ व्यक्ति लाश उतराई होने सूचना मिली। सूचना पाते ही थाना प्रभारी श्री यादव अपने वरिष्ठ अधिकारियों को घटना की जानकारी देने के बाद दल-बल के साथ घटना स्थल पर पहुंच गये। सबसे पहले श्री यादव ने लाश को नहर से बाहर निकलवाकर पहचान कराने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसी बीच सहायक पुलिस अधीक्षक ग्रामीण सुरेश्वर कुमार ने भी घटना स्थल का मुआयना के बाद शव को सील-मोहर करवाकर पोस्टमार्टम के लिए भेजने के साथ ही सहायक पुलिस अधीक्षक ग्रामीण सुरेश्वर कुमार के निर्देशन पर पिछले पांच-छः दिनों के भीतर जनपद के सभी थानों से लापता लोगों की सूचनायें एकत्र कर लाश की शिनाख्त का प्रयास किया। थाना प्रभारी श्री यादव का प्रयास रंग लाया और लाईन बाजार थाना प्रभारी से जानकारी मिली कि 19 जनवरी की देर शाम से ही उनके इलाके में रहने वाला आलोक पाठक लापता हैं।
जानकारी महत्वपूर्ण थी। लिहाजा थाना प्रभारी श्री यादव ने अपने क्षेत्र में अज्ञात लाश मिलने की सूचना दे लाश के शिनाख्त में सहयोग करने का अनुरोध किया तो, लाईन बाजार थाना प्रभारी रमेश यादव ने आलोक पाठक के गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने वाले अजय पाठक और बीनू को बुलाकर लाश की शिनाख्त के लिए भेज दिया।
हत्यारोपी बीनू का प्रेमी विजय
अजय पाठक और बीनू के आते ही यह साफ हो गया कि पायी गयी लावारिश लाश आलोक की ही है। शव देखते ही बीनू हाहाकार करने लगी। किसी तरह सांत्वना देने के बाद थाना प्रभारी श्री यादव उनसे पूछताछ करने लगे। पूछताछ के दौरान पुलिस को अजय पाठक से पता चला कि आलोक अपनी पत्नी बीनू पाठक के चाल-चलन को लेकर काफी परेशान रहता था। पुलिस के लिए इतनी जानकारी पर्याप्त थी। लाईन बाजार थाना प्रभारी रमेश यादव तत्काल बीनू पाठक को पूछताछ के लिए हिरासत में लेकर थाने पर गए।
थाने पर बीनू पाठक से पूछताछ शुरू हुई तो पहले वह इस घटना से अन्जान बनती रही, लेकिन पुलिस जब अपने पर आयी तो वह टूट गई और सारा सच सामने गया। बीनू पाठक ने लाईन बाजार थाना प्रभारी रमेश यादव के समक्ष स्वीकार कर लिया कि उसका विजय कुमार शर्मा के साथ प्रेम सम्बन्ध था और वह अपने पति को छोड़ उसी के साथ रहने का मन बना चुकी थी इसके लिए उसने विजय शर्मा को राजी भी कर लिया था। लेकिन उसे इस बात की उम्मीद नहीं थी कि विजय शर्मा अपने साथियों के साथ मिलकर उसके पति को ठिकाने लगा देगा।
बीनू पाठक द्वारा अपना अपराध स्वीकार लेने के बाद थाना प्रभारी लाइन बाजार श्री यादव ने उसी दिन रात 10 बजते-बजते  बीनू के प्रेमी विजय कुमार शर्मा और हत्या में विजय का साथ देने वाले उसके दोस्त अभय उर्फ लकी, आशुतोश उर्फ सनी तथा रोहित बिन्द को भी गिरफ्तार कर लिया। अंततः पुलिस छानबीन, अभियुक्तों के बयानों से आलोक हत्याकाण्ड की जो कथा उभरकर सामने वह कुछ इस प्रकार बताई जाती है-
विन्ध्यवासिनी उर्फ बीनू सलीकेदार और बेहद खूबसूरत युवती थी। शादी के बाद के शुरुआती दिनों में तो आलोक उसे अपनी आंखों से ओझल ही नहीं होने देता था। आलोक अपनी पत्नी के हुस्न और रूप दोनों का दीवाना था। मगर धीरे-धीरे यह दीवानगी कम होती चली गई। दरअसल बच्ची के जन्म के बाद आलोक पारवारिक जिम्मेदारियों को लेकर काफी परेशान रहता, वह चाहता पत्नी बीनू अपनी बेटी पर ध्यान दे और बचपन से उसमें अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करे और उनके परवरिश में कोई कमी रहे।
इधर गुजरते वक्त के साथ बीनू ने एक बच्ची को जन्म दिया तो उसका सौन्दर्य और भी निखर आया। आलोक कामई में अधिक व्यस्तता के चलते देर रात थका-मादा घर आता तो खाना खा पीकर करवट बदलकर सो जाता, जबकि बीनू का मन करता उसका पति बाहों में भरकर उसके शरीर को मथकर चूर-चूर करके रख दे। कभी जब आलोक का मन होता तो  वह अपना काम निकाल करवट बदलकर सो जाता बीनू रात भर जिश्म की आग में जलती रहती, ऐसे में उसे शादी के पहले गुजारे गये दिन याद आने लगते और वह अतित की गहराईयों में डूबती चली जाती। पति के इस व्यवहार से बीनू को आलोक में कमियां ही कमियां नजर आने लगीं और वह पति की ओर से उदासीन होती चला गयी, नतीजा यह हुआ कि दोनों में बेवजह दूरियां बनती चली गईं।
अक्सर यह भी देखने में आया है, शादी से पहले जवानी की दहलीज पर कदम बढ़ाती युवती का यदि एक बार पैर फिसल जाये तो उसका सही रास्ते पर लौटना बड़ा मुश्किल होता है। आलोक की उदासीनता आग में घी का काम किया। मर्द हो या औरत, जब भी वह अपने जीवनसाथी की तरफ से उदासीन होता है, घर के बाहर निगाहबीनी शुरू कर देता। बीनू के साथ भी ऐसा ही हुआ, जब उसने पति को अनदेखा किया तो घर के बाहर उसका विकल्प तलाशने लगी। उसकी शारीरिक जरूरतें ज्यों की त्यों बरकरार थीं। पति से कटने के बाद वह अपनी सेक्स संतुष्टि के लिए कोई विकल्प तलाशने लगी। उसकी निगाहें भटक ही रही थीं कि एक दिन उसका सामना आलोक के दोस्त अंजनी यादव से हो गयी।
हत्यारोपी विजय के मित्र अभय, आशुतोष तथा रोहित बिन्द
अंजनी यादव भी जौनपुर का ही रहने था। दोस्ती के नाते उसका आलोक के घर भी आना-जाना था, इस आने-जाने में अजय का बीनू से जान पहचान बढ़ी फिर एक समय ऐसा आया जब अंजनी अपने प्रेम जाल में बीनू को फांस लिया। नये आशिकों की तलबगार बीनू को पहली नजर में ही अंजनी पंसद गया था, फिर क्या था जब भी दोनों का मन करता अपने तन की प्यास बुझा लेते। अंजनी और बीनू के अवैध सम्बन्ध ज्यादा दिन आलोक की नजरों से छिपा नहीं रह सका और एक दिन आलोक ने पत्नी बीनू को अंजनी के साथ रंग-रेलियां मनाते देख लिया। लेकिन घर और परिवार की इज्जत का सड़क पर तमाशा बने यह सोचकर आलोक ने कोई हंगामा खड़ा करने के बजाय चुपचाप अपमान का घूंट पीकर मासूम बेटी बेबी की खातिर बीनू को माफ कर दिया।
लेकिन बीनू में कोई बदलाव नही आया। बीनू जाने कौन सी मिट्टी की बनी थी, तीन-चार महीने तो शान्त रही इसके बाद फिर से पुराने ढर्रे पर चल पड़ी। इस बार बीनू के प्रेम जाल में उसी के पड़ोस में रहने वाला नवयुवक विजय कुमार शर्मा फंस गया। विजय कम्प्यूटर की पढ़ाई कर रहा था, पड़ोस में रहने के कारण विजय शर्मा बीनू से भली भांति परिचित था, बीनू को भाभी कहकर बुलाता लेकिन कभी उसने बीनू को गलत निगाह से नहीं देखा। बीनू के जीवन से अंजनी यादव बाहर हो चुका था, बीनू अंजनी के जाने के बाद फिर से किसी युवा प्रेमी की तलाश कर रही थी, इस बीच विजय को देखा तो उसे लगा कि यह उसके पड़ोस में रहता है इसलिए यदि इसे अपने प्रेमजाल में फांस लेती है तो मिलने जुलने में कभी कोई अड़चन नहीं आयेगी। यह सोचकर बीनू अपने प्रेम जाल विजय की तरफ फेंका तो विजय को उसके लटके-झटके में फंसते देर नही लगी। फिर क्या था दोनों का जब मन करता तन-मन से एक हो जाते। पड़ोस में रहने के कारण पहले तो किसी को शक नहीं हुआ, लेकिन जल्द ही दोनों के प्रेम सम्बन्धों की चर्चा पड़ोसियों में होने लगी।
उड़ते-उड़ते विजय और बीनू के प्रेम सम्बन्धें की भनक आलोक पाठक को लगी। आलोक इज्जत का वास्ता देकर एक बार फिर से पत्नी बीनू को अपनी आदतों में सुधर लाने की नसीहत देने लगा। लेकिन बीनू ने पति आरोप पर सफाई देते हुए कहने लगी, “जैसा कुछ समझ रहे हो वैसा कुछ भी नहीं है। पड़ोस में रहने के कारण विजय उसे भाभी कहता है और जब तब हाल समाचार पूछने चला आता है। फिर यह भी याद करो कि किराये का यह मकान दिलाने में उसी ने हमारी कितनी मदद की थी।
आलोक को बीनू पर विश्वास नहीं हुआ और वह चुपचाप बीनू की निगरानी करने लगा। जल्द ही उसके सामने यह सच भी गया कि बीनू जो कुछ विजय को लेकर बोल रही थी, सच्चाई उससे एकदम उलट है। इसी के बाद आलोक पत्नी बीनू के साथ सख्ती से पेश आने लगा।
थाना प्रभारी रमेश यादव
पति आलोक की निगरानी और सख्ती से बीनू तिलमिला उठी। दरअसल घाट-घाट का पानी पी चुकी बीनू को अब एक मर्द के साथ बंधकर पूरा जीवन बिताना पसंद नहीं था। नया प्रेमी विजय पूरी तरह से बीनू के लटके-झटके और हुस्न के जाल में पफंस चुका था। एक दिन बीनू मौका देखकर अपने प्रेमी विजय शर्मा के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वह पति आलोक को छोड़कर उसके साथ हमेशा-हमेशा के लिए घर बसाना चाहती है, तब विजय इंकार नहीं कर सका और दोनों एक-दूसरे के होने के लिए तरकीबे खोजने लगे।
कहते हैं प्रेम अन्धा होता है। लेकिन वासनाजन्य प्रेम तो अन्धा ही नहीं मनुष्य को विवेकशून्य भी बना देता है, ठीक यही हाल बीनू और विजय शर्मा का भी था। दोनो एक दूसरे के प्रेम में अन्धे ही नहीं पूरी तरह से विवेकशून्य भी हो चुके थे। बीनू के दिमाग में पति आलोक को छोड़कर विजय के साथ हमेशा-हमेशा के लिए घर बसाने की कोई तरकीब नहीं सुझाई पड़ा तो एक दिन एकान्त की क्षणों में वह विजय से कहने लगी, फ्तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मैं तुमसे कितना प्रेम करती हूॅ, अब तो हालत यह हो गयी है कि तुमसे एक क्षण की जुदाई बर्दाश्त नहीं होती। तुम कुछ ऐसा क्यों नहीं करते जिससे हम दोनों के जीवन से आलोक रूपी कांटा हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो जाय।
इसके बाद बीनू और विजय आलोक को रास्ते से हटाने के बारे में विचार-विमर्श करने लगे। काफी विचार-विमर्श के बाद एक प्लान पर दोनों की सहमति बन गयी। अब उस प्लान को अमली-जामा पहनाना शेष था। प्लान को सफल बनाने के लिए विजय शर्मा ने पैसों का लालच देकर अपने दोस्तों अभय उर्फ लकी, आशुतोश उर्फ सनी तथा रोहित बिन्द को भी इसमें शामिल कर लिया। अभय उर्फ लकी और रोहित बिन्द दोनों जौनपुर के मियांपुर मुहल्ले के ही रहने वाले थे। तीसरा साथी आशुतोष उर्फ सनी शर्मा मूल रूप से फतेहपुर जिले का रहने वाला था। लेकिन उसके पिता भोला शर्मा आलोक की ही भांति जौनपुर के ही मडि़याहू इलाके में टेम्पो चलाया करते थे। भोला के साथ बेटा आशुतोष भी रहता, टेम्पो चालक होने के नाते आलोक और भोला शर्मा के बीच जान-पहचान थी। इसी जान-पहचान के नाते आशुतोष भी आलोक से परिचित था।
प्लान के अनुसार 18 जनवरी को विजय के कहने पर आशुतोष आलोक से मिला और उसने अगले दिन आलोक को दावत खाने के लिए मडि़याहूं बुलाया। आलोक की स्वीकृति मिलने पर विजय ने बाजार से नशे की गोली खरीदकर चुपके से बीनू पाठक को देकर समझा दिया। प्लान के अनुसार रात 8 बजे के लगभग आलोक जब घर वापस आया तब बीनू ने चाय में नशे की गोली मिलाकर पिला दिया। अभी कुछ ही देर बीता था कि विजय शर्मा अपने एक दोस्त की मोटर साइकिल लेकर आलोक के घर पहुंचा और बोला, “आलोक भाई... दावत खाने के लिए मडि़याहूं चलना है?”
दावत में मडि़याहूं उसे भी जाना था, दवा के असर से आलोक का सर भारी हो रहा था। दावत में जाने का मन तो नहीं था, लेकिन जब विजय मोटर साइकिल लेकर पहुंचा तो आलोक इन्कार कर सका और दावात खाने के लिए उसके साथ मडि़याहूं चलने को तैयार हो गया। वह मोटर साइकिल से विजय साथ निकलने वाला ही था कि प्लान के मुताबिक उसी समय विजय के बाकी दोस्त भी सामने गये, फिर सभी दो मोटर साइकिल पर बैठकर मडि़याहूं की तरफ चल पड़े। एक मोटर साइकिल विजय चला रहा था, उस पर आलोक पाठक बीच में तथा विजय का साथी रोहित बिन्द पीछे आलोक को पकड़कर बैठा था। दूसरी मोटर साइकिल पर आशुतोष और अभय थे, जो विजय की मोटर साइकिल के पीछे-पीछे चल रहे थे।
रात 10 बजे के लगभग विजय की मोटर साइकिल जब मडि़याहूं थाना क्षेत्र के नायकपुर गांव से सटे शारदा सहायक नहर के पास पहुंची तब विजय अपनी मोटर साइकिल रोक दी। विजय के पीछे रही दूसरी मोटर साइकिल जिस पर आशुतोष और अभय बैठे हुए थे, उन्होंने भी अपनी गाड़ी वहीं रोक दिया। अब तक आलोक पर दवा काफी असर दिखा चुकी थी। इसके चलते वह मोटर साइकिल के पास ही खड़ा रहा। अभी कुछ क्षण बीता था कि चुपके से विजय आलोक के पिछे पहुंचा और फुर्ती से पहले अपने पास छुपाकर रखे नायलान की रस्सी निकालकर आलोक को सम्भलने का मौका दिये बिना उसके गले में फन्दा बनाकर अपने बाकी साथियों के सहयोग से कसना शुरू कर दिया, देखते ही देखते आलोक बेहोश होकर जमींन पर गिर पड़ा इसके बावजूद विजय रस्सी का कसाव बढ़ाता गया जब विश्वास हो गया कि आलोक के प्राण पखेरू उड़ चुके है, तब उसी रस्सी से उसे गठरी रूप में बांधकर पास में बह रहे शारदा सहायक नहर में फेंक दिया और सभी अपने-अपने घर लौट गये। विजय आलोक की मोटर साइकिल उसके घर ले जाकर खड़ी कर दी फिर अपने कमरे में चला गया।
दो दिनों की टैम्पो से होने वाली प्रतिदिन की कमाई का हिस्सा देने 20 जनवरी की रात भी जब आलोक अपने बड़े भाई अजय पाठक के घर नहीं आया तो अजय पाठक को चिन्ता होने लगी। अगले दिन भाई आलोक पाठक के बारे में पता लगाने अजय पाठक आलोक के घर पहुंचे तब आलोक की पत्नी बीनू से जानकारी हुई कि आलोक 19 जनवरी की रात मडि़याहूं दावत में जाने को बोलकर गए हैं, अभी तक घर वापस नहीं लौटे है। बात चिन्ता की थी लिहाजा अजय पाठक ने पहले तो अपने स्तर से आलोक के बारे में पता करने का प्रयास किया। हर तरफ से निराश होने के बाद 21 जनवरी को ही अजय ने लाईन बाजार थाने में अपने छोटे भाई आलोक पाठक की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी। रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस और परिवार वाले आलोक के बारे में पता करते रहे लेकिन कहीं से भी आलोक के बारे में कोई समाचार नहीं मिला।
25 जनवरी को मडि़याहूं कोतवाली के शारदा सहायक नहर में एक अधेड़ व्यक्ति लाश उतराई होने मिलने पर पिछले पांच-छः दिनों के भीतर जनपद के सभी थानों से लापता लोगों की सूचनायें एकत्र कर लाश की शिनाख्त का प्रयास किया तो लाईन बाजार थाना प्रभारी से जानकारी मिली कि 19 जनवरी की देर शाम से ही उनके इलाके में रहने वाला आलोक पाठक लापता हैं। लाईन बाजार थाना प्रभारी रमेश यादव ने आलोक पाठक के गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने वाले अजय पाठक और बीनू को बुलाकर लाश की शिनाख्त के लिए भेज  तो सारे रह्स्य से परदा उठ गया। सच ही कहा गया है कि अपराध कितना भी छिपाकर किया जाय उजागर हो ही जाता है।
अंततः सारे रहस्यों से पर्दा उठने के बाद 27 जनवरी को जौनपुर के पुलिस अधीक्षक सुश्री मंजिल सैनी आलोक पाठक हत्याकाण्ड का खुलासा होने के बाद लाइन बाजार थाने में एक पत्रकार वार्ता आयोजित की। इस पत्रकार वार्ता में पुलिस अधीक्षक सुश्री मंजिल सैनी आलोक की हत्या का प्लान रचने वाली उसकी पत्नी बीनू पाठक तथा उसके प्रेमी विजय कुमार शर्मा तथा विजय के बाकी साथियों को भी पत्रकारों के समक्ष पेश किया। वार्ता में उपस्थित पत्रकारों ने बीनू और विजय शर्मा से सवाल पूछा तब दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। विजय ने पत्रकारों को बताया कि वह बीनू के प्यार में एकदम दीवाना हो चुका था इसलिए जब बीनू ने उससे आलोक को रास्ते से हटाने की बात कही तब वह इन्कार नहीं कर सका और अपने साथियों के साथ मिलकर आलोक की हत्या को अंजाम दे दिया।
पत्रकार वार्ता के बाद पुलिस ने सभी आरोपियों को न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया, जहां से अदालत के आदेश पर सभी हत्यारोपियों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। यदि बीनू अपने पति आलोक पाठक के नसीहतों पर जरा भी अमल करती तो शायद उसे यह दिन देखना पड़ता और उसका सुहाग ही उजड़ता। इस पूरे प्रकरण में बीनू की तीन वर्षीया बेकसूर बेटी बेबी को भी मां के साथ जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा।
(कथा पुलिस सुत्रों अभियुक्तों के बयानों पर आधरित)

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