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प्रतीक चित्र |
कविता
खूबसूरती और आकर्षण से भरपूर 18 वर्षीय पूर्ण नवयौवना युवती थी। जवानी
के भार से लदी-फदी कविता की हर अदा निराली थी। हर कदम कयामत था, हर निगाह
कातिल थी। देखने वालों के दिल की धड़कनें थम जाती थीं। निगाहें हटने का नाम न लें
ऐसी ही थी कविता। वह जमशेदपुर (टाटा नगर) में अपने माता-पिता व तीन
भाइयों के साथ जैसे-तैसे जिन्दगी गुजार रही थी। पिता सोबरन दिहाड़ी मजदूर थे, लिहाजा घर
की आर्थिक स्थिति बेहद जर्जर थी। कभी-कभी तो पफांकों तक की नौबत आ जाती थी। छह
लोगों का परिवार कमाने वाला सिर्पफ एक वह भी दिहाड़ी मजदूर, कभी काम
मिला तो कभी नहीं मिला, ऐसे में घर की स्थिति दिनों दिन बिगड़ती ही जा
रही थी।
परिवार
में कविता ही बड़ी थी। अतः मां-बाप उसकी शादी की चिंता में डूबे हुए थे। गरीब
मां-बाप के लिए बेटी की शादी वाकई एक अहम समस्या होती है जो बेटी की उम्र बढ़ने के
साथ-साथ ही बढ़ती जाती है। परिजन उसकी शादी की चिन्ता से परेशान और वह अपने भविष्य
को लेकर उलझन में थी, हर तरफ उसे अंधकार नजर आ रहा था। बावजूद इसके
उसकी महत्वकांक्षाएं प्रबल थीं। गरीबी से उसे नफरत थी। वह अक्सर अमीरी के ही ख्वाब
देखा करती थी,
किन्तु इन ख्वाबों को पूरा करने का साधन उसे दूर-दूर तक नजर
नहीं आ रहा था। लिहाजा उसकी उलझन दिनों दिन बढ़ती ही जा रही थी।
मां-बाप
उसके लिए लड़का तलाश रहे थे और वह अपने सपनों का राजकुमार तलाश रही थी। ऐसे में एक
दिन उसकी निगाह गांव के ही रामकुमार से जा टकराई। रामकुमार दिल्ली में नौकरी करता
था और उन दिनों छुट्टी आया हुआ था। रामकुमार उसे अपना सपनों का राजकुमार लगा और वह
बरबस ही उसकी ओर खिंचती चली गई। रामकुमार करता तो दिल्ली में कंडक्टरी करता था, किन्तु
गांव में खूब बन-ठन कर घूमता था जिससे सभी को लगता कि वह खूब पैसा कमाता होगा।
कविता को लगा रामकुमार उसे जीवन की वह सारी खुशियां दे सकता है जिसके ख्वाब उसके
दिल में मचल रहे थे। अतः उसने रामकुमार को मीठी निगाहों से देखना शुरू कर दिया।
रामकुमार ने भी जब खूबसूरत और भरे-पूरे बदन वाली कमसिन कविता को देखा तो पहली ही नजर
में उसे दिल दे बैठा था, मगर सिवाय उसके घर का चक्कर लगाने के और कुछ
नहीं कर पा रहा था। मगर जब उसने कविता को खुद में इंटरेस्ट लेते देखा तो मारे खुशी
के झूम उठा और कुछ दिन बाद ही एक रोज गली से गुजरती कविता को उसने हौले से पुकार
लिया,
"कविता।”
"हूँ....!”
कविता के पांव जहां के तहां ठिठक गये। शरीर में सनसनाहट सी हुई, मन का चोर
उसके शरीर को गुदगुदाने लगा। एक साथ कई प्रश्न उसके मस्तिष्क में कौंध उठे, क्यों रोका
रामकुमार ने क्या कहना चाहता है वो, कहीं उसने उसकी चोरी तो नहीं पकड़
ली।
रामकुमार
उसके करीब आ गया।
"कविता
मुझे तुमसे एक जरूरी बात करनी है किन्तु गली में खड़े होकर बातें करना ठीक नहीं है
कभी भी कोई भी आ सकता है। मैं तुम्हारा
शाम 7
बजे तुम्हारे घर के पीछे इंतजार करूंगा आना जरूर, ये मेरी
जिन्दगी और मौत का सवाल है।”
इतनी
बात सुनने के पश्चात कविता बिना जवाब दिए आगे बढ़ गई। उसे मालूम था रामकुमार उससे
क्या कहेगा,
अतः आने वाले हसीन पलों के बारे में सोचकर वह हवा में उड़ी
जा रही थी उसके कदम जमीन पर पड़ने से इंकार कर रहे थे। घर पहुंचकर वह काम-काज में
लग गई, मगर
कानों में रामकुमार के वाक्य ही गूंज रहे थे। मारे उत्कंठा के उसका बुरा हाल था।
वह बार-बार घड़ी की तरफ देख लेती थी। अभी तो महज 5 ही बजे
थे। तीन घंटे का लम्बा इंतजार उफ! समय बीतने का नाम ही नहीं ले रहा था। आज कविता
का किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था, वह जितनी जल्दी हो सके, रामकुमार
से मिलकर उसके मुंह से प्यार के दो मीठे बोल सुन लेना चाहती थी।
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पुलिस हिरासत में कालगर्ल |
आखिरकार
इंतजार की घड़ियां खत्म हुईं। निर्धारित वक्त पर वह अपने घर के पिछवाड़े पहुंची, वहां एक
साया पहले से ही टहलता दिखाई दिया। कविता के पहुंचते ही साया उसके एकदम करीब आ
गया। कविता ने घने अंधेरे में भी उसे स्पष्ट पहचाना, वह रामकुमार
ही था।
“ओह कविता तुम आ गई!” रामकुमार आकुल स्वर में बोला।
“नहीं जनाब ये तो मेरा भूत है।” कहकर वह हौले से हंसी, रामकुमार
भी हंस पड़ा।
“अब फटाफट बोलो, क्यों बुलाया मुझे यहां, जानते हो
अगर इस वक्त मुझे कोई तुम्हारे साथ देख ले तो मेरी कितनी बदनामी होगी और कहीं
बाबूजी को पता चल गया तो वे तो मुझे काटकर फेंक देंगे।”
“जनता हूं कविता मगर क्या करूं दिल के हाथों मजबूर था इसलिए दिल की बात
कहने के लिए ही तुम्हें यहां बुलाया है।”
“तो फिर कह डालो, इंतजार किस बात का कर रहे हो?”
"सोचता
हूं कहीं तुम बुरा न मान जाओ।”
“निरे बुद्धू हो तुम, अरे अगर तुम्हारी बात का बुरा ही
मानना होता तो मैं रात के समय यहां आती ही क्यों?”
बात
रामकुमार की समझ में आ गई। उसने बगैर एक और पल गंवाए कविता के आगे अपना दिल खोल कर
रख दिया और उसका हाथ थामकर यह सौंगंध खाई कि वह आजीवन कविता का साथ निभाएगा। कविता
तो इसी पल का इंतजार कर रही थी। उसने झट रामकुमार का प्यार कबूल लिया। काफी देर तक
दोनों एक-दूजे का हाथ थामें प्यार भरी बातें करते रहे, फिर 9 बज गये तो
दोनों अपनी-अपनी राह हो लिए।
उस
दिन के बाद कविता के जीवन में ढेरों बदलाव आने शुरू हो गये। अब वह बन-संवर कर रहने
लगे, अच्छे
कपड़े पहनने लगी,
सौंदर्य प्रसाधन इस्तेमाल करने लगी और इन सबका सारा खर्चा
रामकुमार उठाता। कविता की मां आंचल देवी जब उससे पूछती की ये सब सामान उसके पास
कहां से आये तो वह सहेलियों का बहाना बना देती। दोनों का प्रेम परवान चढ़ता गया।
दूरियां सिमटती गईं। नजदीकियों का फांसला समाप्त होता गया। दोनों करीब हर रोज मिल
लिया करते थे। बातें करते, खाते-पीते, घूमते और एक दिन तो रामकुमार
उसे सिनेमा भी दिखा लाया। इसी तरह हंसी-खुशी दिन गुजर रहे थे। देखते ही देखते दो
महीना गुजर गया। रामकुमार की जमा पूंजी समाप्त हो चुकी थी। अब प्रेमिका के नखरे
उठाने के लिए जरूरी था कि वह दिल्ली चला जाये, अतः एक रोज
रात के वक्त कविता से मुलाकात होने पर वह बोला, "कविता
मैं कल दिल्ली जा रहा हूं।”
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पुलिस हिरासत में ग्राहक |
“अरे तुम ऐसा कैसे कर सकते हो, हमारे प्यार का क्या होगा? तुमने जो
वादे किये थे उनका क्या होगा?”
“पगली कहीं की, मैं हमेशा के लिये थोड़े ही जा रहा
हूं बस महीने-डेढ़ महीने बाद वापस लौटूंगा और फिर हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हें अपने
साथ ले जाऊंगा।”
“तुम सच कह रहे हो?” कविता की आंखों में संदेह उतर आया, फ्कहीं तुम
मुझसे पीछा तो नहीं छुड़ाना चाहते?”
“कैसी बातें करती हो कविता भला कोई अपनी जान को जिस्म से अलग कर सकता है, मैं जरूर
वापस आऊंगा और आकर तुम्हें ले जाऊंगा, तुम मेरा इंतजार करना।”
कहने
के पश्चात उसने कविता को अपने सीने से लगा लिया। कविता हौले से सिसक उठी। प्रिय से
बिछुड़ना यकीनन बेहद कठिन होता है फिर वे तो दो जिस्म एक जान थे।
रामकुमार
दिल्ली चला गया और पीछे कविता को पूरा गांव, गांव के लोग और गांव की
गलियां सूनी-सूनी सी प्रतीत होती थी। रामकुमार की जुदाई उसे बर्दाश्त नहीं हो पा
रही थी। ऊपर से रामकुमार की मौजूदगी में उसे जिस शाहखर्ची की आदत पड़ गई थी, अब उसे
पूरा करना संभव नहीं था। उसे पैसे की कमी अखरने लगी। रामकुमार की गैरमौजूदगी खलने
लगी और जब पहले जैसी मुफलसी का सामना करना पड़ा तो उसके कदम भटक गये। देखते ही
देखते उसके दिल से रामकुमार गायब हो गया। अब वह रामकुमार का विकल्प तलाशने लगी।
ऐसे में उसे गांव का ही एक सजीला दौलतमंद किंतु अय्यास और आवारा युवक संजय पसंद आ
गया, जल्द
ही दोनों में गहरी छनने लगी। संजय ने भी कविता से ढेरों प्यार-मोहब्बत के वादे किए
और एक दिन उसे घुमाने के उद्देश्य से गांव से बहुत दूर ले गया। वहां एक लाँज में
कमरा बुक कराकर वह कविता के साथ शिफ्ताट हो गया।
कविता
रामकुमार के साथ कई बार एकांत में वक्त गुजार चुकी थी, मगर उसने
कभी मर्यादा का उलंघन नहीं किया था। अतः कविता आने वाले मुश्किल भरे पलों से
बेपरवाह थी। उसे नहीं मालूम था कि संजय किस फिराक में है, वरना शायद
वह आती ही नहीं। फिर उसकी निगाहों में प्यार का मतलब था-घूमना-फिरना, फिल्म
देखना, मीठी-मीठी
बातें करना,
हंसी-मजाक करना, इससे आगे तो उसने कुछ सोचा ही नहीं
था। मगर आज...
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डीएसपी पीसीआरए संगीता कुमारी |
कमरे
में घूसते ही संजय बोतल खोलकर बैठ गया। कविता यह जानकर हैरान रह गई कि उसका नया
प्रेमी शराब भी पीता है। मगर आगे जो कुछ हुआ वह शराब पीने से भी ज्यादा हैरानी थी
और कष्टप्रद बात थी।
शराब
के दो बड़े पैग हलक में उतारने के बाद संजय ने कविता को दबोच लिया और उसके तमाम
विरोध के बावजूद उसने कविता को निर्वस्त्र कर बेड पर पटक दिया। कविता उसके नीचे से
निकलने को छटपटाती रही और वह उस पर छाता चला गया। कमरे में एक तूफान आया और गुजर
गया। संजय के मन की मुराद पूरी हो गई। उसने एक कुँवारी लड़की के यौवन को भोगा था और
कविता की अस्मत तार-तार हो गई, वह रो रही थी। मगर यह आंसू ज्यादा
देर तक बने न रह सके। संजय द्वारा दिये गये तीन सौ रुपयों ने उन आंसुओं को धो डाला
था।
इसके
बाद तो यह सिलसिला ही चल निकला, वह आए-दिन संजय का बिस्तर गरम करती
और संजय उसे तीन सौ रुपये पकड़ा देता। कविता को इस काम में मजा आने लगा। देखते ही
देखते उसने गांव के ही कुछ अन्य युवकों से भी संबंध जोड़ लिए और अप्रत्यक्ष रूप से
जिस्मफरोशी करने लगी। धीरे-धीरे गांव भर में उसका नाम उछलने लगा, तब जाकर
मां-बाप की नींद खुली और पता लगा कि उनकी बेटी क्या गुल खिला रही है, मगर तब तक
बहुत देर हो चुकी थी।
इसी
दौरान रामकुमार कविता को लेने गांव आया, मगर उसने उसके साथ जाने से स्पष्ट
इंकार कर दिया। रामकुमार का दिल टूट गया, उसने कविता से सच्ची मोहब्बत
की थी और अब कविता उसे दगा दे रही थी क्यों? यह बात जल्दी ही उसकी समझ
में आ गई। उसने कविता को समझाने की बहुतेरी कोशिश की, मगर वह ना
तो वापसी के लिए राजी हुई ना ही रामकुमार के साथ जाने को राजी हुई।
रामकुमार
हारकर वापस लौट गया और जाते-जाते कह गया, "मैं जानता हूं कविता
तुम ऐसी नहीं थी गलती मेरी है जो मैं तुम्हें साथ लेकर नहीं गया। मैं वापस दिल्ली
जा रहा हूं। किन्तु मेरे दिल और घर के दरवाजे तुम्हारे लिए सदैव खुले हैं जब चाहो
वापस लौट सकती हो।”
रामकुमार
चला गया, कविता
अपनी राह चलती रही। पिता ने आनन-फानन में उसके लिए रिश्ता ढूंढा और ह्यून पाइप
बस्ती के राजेश के साथ उसकी शादी कर दी। कविता को राजेश जरा भी पसंद नहीं था किंतु
उसने एक बार भी शादी का विरोध नहीं किया और दुल्हन बनकर राजेश के घर आ गई। राजेश
की माली हालत बेहतर नहीं थी, मगर दो जून की रोटी की कोई किल्लत
नहीं थी, पर
कविता को अब तक दौलत का चस्का लग चुका था। वह भला दो जून की रोटी पाकर कैसे
संतुष्ट हो जाती,
लिहाजा यहां भी उसने पुरानी कहानी दोहरानी शुरू कर दी और
आस-पास के कई युवकों से सम्पर्क बनाकर उनकी जवानी और दौलत चूसने लगी। उसके रूप के
रसिया बहुत लोग थे,
लिहाजा वह दोनों हाथों से पैसे बटोरने लगी। पति राजेश को जब
उसके कारनामों का पता चला तो वह हैरान रह गया। उसकी खूबसूरत बीवी ऐसा भी कर सकती
है यह तो उसने सोचा ही नहीं था। उसने पहले तो कविता को समझाने की कोशिश की, फिर
धमकाया। इसके बाद भी वो रास्ते पर नहीं आई तो उसकी पिटाई भी कर दी, किंतु
कविता फिर भी नहीं सुधरी। इसके बाद तो जैसे दोनों के बीच एक मूक समझौता हो गया और
एक दिन वह भी आया जब पति राजेश काम-धंधा छोड़कर बीवी की दलाली करने लगा, उसके लिए
ग्राहक तलाशने लगा।
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एसपी नवीन कुमार सिंह |
जिस्मफरोशी
के इस धंधे ने कविता को नित नये लोगों के बीच खड़ा कर दिया। वह हर रात नये तरीके से
सजती नई दुल्हन बनती और नये खसम का बिस्तर गरम करती। यही उसकी जिन्दगी थी। वह
दोनों हाथों से दौलत बटोर रही थी। पति भी अब तक पत्नी की कमाई खाने का आदी हो चुका
था।
धंधे
के दौरान ही कविता की मुलाकात रीता से हुई और वे दोनों मिलकर ना सिर्फ धंधा करने
लगी, बल्कि
अन्य लड़कियों को भी धंधे से जोड़ने लगीं। कई दलालों से भी उनके सम्पर्क हो गये।
कविता
रीता की तरह गरीबी की मारी कोई युवती नहीं थी। वह एक मध्यवर्गीय परिवार की बेहद
महत्वाकांक्षी युवती थी जो जल्द से जल्द दौलत के अम्बार लगा देना चाहती थी। कविता
की उम्र 30
वर्ष हो चुकी थी जबकि रीता अभी महज 20 की कमसिन युवती थी। दोनों मिलकर
धंधा कर रही थीं। इसी दौरान उनकी मुलाकात जमशेदपुर के पटमदा थाना क्षेत्रा स्थित
डिमना रिर्सोट के मालिक विजेन्द्र सिंह से हुई जो कि अपने मैनेजर अखिलेश सिंह के जरिए
अपने ग्राहकों को काँलगर्ल मुहैया करवाता था। विजेन्द्र की मुलाकात कविता व रीता
से हुई तो उसने दोनों को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह उसके बुलावे पर रिर्सोट
में ठहरने वाले ग्राहकों को संतुष्ट कर दिया करें, जिसके बदले
दोनों को अच्छी आमदनी हो जायेगी। दोनों को स्थाई ठिकाना मिल रहा था, अतः
उन्होंने फौरन हामी भर दी। अब वे दोनों रिर्सोट के मैनेजर अखिलेश के बुलावे पर
वहां पहुंच जाती और कस्टमर को निपटा देतीं। इस तरह यह धंधा बेहद गोपनीय तरीके से
बेरोक-टोक चल रहा था। मगर पुरानी कहावत है बकरे की मां कब तक खैर मनायेगी?
27 अक्टूबर को
एसपी नवीन कुमार सिंह को गुप्त सूचना मिली थी कि एमजीएम से डिमना लेक की ओर जाने
वाली मार्ग स्थित अलकतरा फैक्टरी से कुछ आगे एक रिर्सोट है। जहां सेक्स रैकेट का
संचालन होता है। इस सूचना पर एसपी ने डीएसपी सुभाष चंद्र शर्मा, डीएसपी
पीसीआरए संगीता कुमारी, एमजीएम, पटमदा प्रभारी एवं एमजीएम
सर्किल इंस्पेक्टर की टीम गठित की और 28 अक्टूबर को शाम पांच बजे के करीब
पुलिस ने रिर्सोट पर धावा बोला। जहां एक कमरे में एक युवती व दो युवक रंगरेलियां
मनाते मिले तथा दूसरे कमरे में एक युवक और युवती आपत्तिजनक अवस्था में मिले। पुलिस
ने इस छापामारी में दो युवतियों समेत कुल छह लोगों को हिरासत में लिया। गिरफ्तार
लोगों में एलआइसी का डेवलमेंट आफिसर, टिनप्लेट का इंजीनियर और एयरकंडीशन
मैकेनिक और होटल का बेरा शामिल है। इसके अलावा पुलिस ने चार सेट फोन अंग्रेजी शराब
की बोतले, इस्तेमालशुदा
कंडोम, शृंगार
प्रसाधन तथा कुछ अन्य आपत्तिजनक वस्तुएं जप्त कर लीं।
एमजीएम
अंचल के इंस्पेक्टर अनुप हेम्ब्रम के बयान पर पुलिस ने रिर्सोट के मैनेजर और मालिक
समेत आठ लोगों के खिलाफ देह-व्यापार अधिनियम 3, 4, 5
और एक्सरसाइज एक्ट की धारा 47(ए) के तहत मामला दर्ज करके विवेचना
शुरू कर दी।
कथा
लिखे जाने तक रिर्सोट के मैनेजर व मालिक फरार थे जबकि अन्य छह आरोपियों को जेल
भेजा जा चुका था।
(कथा पुलिस
सूत्रों के अनुसार, वैधानिक कारणों से कथा में कुछ पात्रों के
नाम परिवर्तित हैं।)
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