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प्रतीक चित्र |
मधू
उम्र के 17वें
पड़ाव पर पहुंच गई थी। उसका निखरता हुआ शरीर इस बात की सूचना दे रहा था कि वह
जवानी की दहलीज में कदम रख चुकी है। यूं तो खूबसूरती उसे कुदरत ने जन्म से ही तोहफे
में बख्शी थी,
लेकिन अब जब उसने लड़कपन के पड़ाव को पार कर यौवन की बहार में
कदम रखा तो खूबसूरती संभाले नहीं सम्भल रही थी।
मधू, जितना
प्यारा नाम था। उतना ही खूबसूरत चेहरा भी था। गोरा रंग होने के साथ-साथ उसके चेहरे
पर एक अजीब सी कशिश थी। वह मुस्कराती तो लगता जैसे गुलाब का फूल सूरज की पहली किरण
से मिलते हुए मुस्करा रहा है। अक्सर उसकी सहेलियां इस पर उसे टोक देतीं, ‘‘ऐसे
मत मुस्कराया कर मधू, अगर किसी मनचले भंवरे ने देख लिया तो बेचारा जान
से चला जाएगा।’’
वह मुस्करा कर रह जाती थी।
मधू
खूबसूरत तो थी ही,
साथ ही अच्छे संस्कार उसकी नस-नस में बसे थे। उसका व्यवहार
कुशल होना, आधुनिकता
और हंसमुख स्वभाव उसकी खूबसूरती पर चांद की तरह थे। जो किसी को भी उसका दीवाना बना
देती थी। हसमुख होने के कारण वह सहज लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन जाया करती थी।
सत्रह
बसन्त पार कर लेने के बाद अब मधू उम्र के उस नाजुक दौर में पहुंच चुकी थी, जहां
युवतियों के दिल की जवान होती उमंगे, मोहब्बत के आसमान पर बिना नतीजा
सोचे उड़ जाना चाहती है। ऐसी ही हसरतें मधू के दिल में भी कुचांले भरने लगी थी, पर उम्र के
इस पायदान पर खड़ी मधू ने अभी तक किसी की तरफ नजर भरकर देखा तक नही था।
मधू
मूलरूप से बिहार प्रांत के मुजफ्रफरपुर जिले के काजी मुहम्मदपुर थाना अन्तर्गत
पंखाटोली मुहल्ला निवासी थी। उसके पिता की मौत हो चुकी है। परिवार में उसकी विधवा
मां कुमकुम देवी के अलावा एक भाई व कुल पांच बहनें हैं। बहनों के क्रम में मधू चौथे
नंबर पर थी। तीन बहनों की शादी हो चुकी हैं। आज वह सब अपने-अपने परिजनों के साथ
हंसी-खुसी जीवन गुजार रही हैं।
यूं
तो मधू बचपन से ही महत्वाकांक्षी थी। लिहाजा वह पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ वह घर का
काम-काज भी मेहनत और लगन से किया करती थी। पिता का साया सर पर न होने के बाबजूद भी
उसने अपनी मेहनत से बीए पास किया था। बाद में जब आगे न पढ़ पायी तो अघोरिया बाजार
स्थित एक स्कूल में शिक्षिका की नौकरी कर ली। यहीं पर उसकी मुलाकात दिनेश कुमार
भगत से हुई।
दिनेश
बिहार के सीतामढ़ी जिला अन्तर्गत बेलसंड थाना क्षेत्र के सरैया गांव का रहने वाला
है। मुजफ्फरपुर में वह पढ़कर कुछ बनने आया था। यहां वह मिठनपुरा थाना क्षेत्र के
चंद्रशेखर भवन के समीप मकान में किराए पर रहता था। यहीं से उसने पीजी की पढ़ाई की।
वह आगे पीएचडी करना चाहता था पर उसके घर वाले खर्च वहन करने में असर्मथ से लगने
लगे। तब वह परिवार का कुछ बोझ हल्का करने के लिए अघोरिया बाजार स्थित उसी स्कूल
में शिक्षक का काम करने लगा, जिसमें मधू शिक्षिका थी।
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अभियुक्त दिनेश |
स्कूल
में पहली बार जब दिनेश ने मधू को देखा तो बस देखता ही रह गया। स्वजातीय होने के
कारण जल्दी ही दोनों में जान पहचान हुई और फिर वह दोस्त बन गए। धीरे-धीरे दिनेश कब मधू का दीवाना बन गया उसे
खुद भी नहीं पता चला अब वह स्कूल से छुट्टी के बाद घर जाता तो उसे महसूस होता कि
जैसे उसका चैन कही गुम हो गया हो । दिल की ध्ड़कन मीठे अंदाज से धड़कती महसूस होती
थी,रात
की नीद कोशो दूर चली गयी थी नीद आती भी तो सपनों में मधू की सूरत दिखाई देती थी।
दिनेश
का उखड़ा-उखड़ा मूड देखकर उसका एक करीबी दोस्त बोला, ‘‘अरे
जनाब लगता हैं तुम्हें किसी से इश्क हो गया हैं। जरा मैं भी तो सुनू कौन है वो खुश
नसीब’’
दिनेश
उस वक्त किसी तरह टाल गया लेकिन उसे लगने लगा कि
उसका मित्र ठीक ही कह रहा था। उसका यह हाल तभी से हैं जबसे उसकी मुलाकात मधू
से हुई थी । दिनेश ने मधू के आखों में चाहत का समुन्दर लहराता देखा था लेकिन वह मधू
से एकदम से कहने का साहस नहीं जुटा पाया था न ही मधू की ओर से कोई पहल हुई थी हां
इतना जरूर था दोनों का जब एक दूसरे से सामना होता तो मधू की आंखें हया के जोर से
जरूर झुक जाया करती थी।
एक
ही स्कूल में टीचर होने के कारण दोनों की मुलाकातें रोज ही हुआ करती थी। जब भी
उनका सामना होता दिनेश की नजरें केवल मधू पर ही रहतीं। इध्र मधू भी इतनी कम अक्ल
नही थी कि वह दिनेश की नजरों का भेद न पढ़ पती। वह उसके दिल की बात बखूबी समझती
थी। दरअसल बन-संवरकर रहने बाले दिनेश का व्यक्तित्व उसे भी भा गया था। उसके दिल के
किसी कोने में दिनेश के लिए चाहत पैदा हो गई थी।
मुहब्बत
का बीज जब दोनों तरफ अंकुरित हो जाए तो फिर एक-दूसरे के करीब आने में ज्यादा वक्त
नहीं लगता। धीरे-धीरे मधू भी दिनेश से खुलती चली गई। एक दिन दिनेश ने उसे
रेस्टोरेंट में चलकर चाय पीने का आग्रह किया तो अगले दिन चलने का वादा कर लिया।
अगले
दिन मधू जब सज-धजकर स्कूल आई। इटंरबल में वह दिनेश से मिली तो वह उसे ठगा सा रह
गया। मधू स्वर्ग से उतरी किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। दिनेश द्वारा अपने को
अपलक निहारते देखकर मधू भी शरमा गई, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो। क्या अब से
पहले कभी किसी लड़की को नही देखा?’’
‘‘मैं तुमसे
झूठ नहीं बोलूंगा। मैंने लड़कियां तो बहुत सी देखी हैं, लेकिन
उनमें तुम जैसी एक भी नहीं थी।’’
‘‘हटो! बनाओ
मत...!’’ अपनी
तरीफ सुनकर मधू का मन पुलकित हो उठा।
‘‘मेरा
विश्वास करो मधू। तुम ही वो पहली लड़की हो, जिसने मेरे दिन का चौन और
रात की नींद उड़ा दी है। सच कहता हूं कि अगर तुम मुझे नहीं मिली तो मैं तुम्हारी
याद में तड़पते-तड़पते मर जाऊंगा।’’ दिनेश ने कहा तो मधू ने उसके मुंह
पर अपनी उंगली रख दी। दिनेश उसके नरम हाथ को बहुत देर तक अपने हाथों में लिए बैठा
रहा। फिर एकाएक बोला, ‘‘मधू, एक बात बताओ, तुम भी
मुझसे प्यार करती हो न!’’
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घटनास्थल पर जमा भीड़ |
‘‘तुम भी
निरे बुद्धू हो। गर मैं तुमसे प्यार न करती तो तुमसे इस तरह बात करती’’ मधू ने अपने
प्यार का इजहार करते हुए कहा।
दिनेश
की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने मधू का चेहरा हाथों में भरकर उसके माथे पर प्यार की
मुहर लगा दी। मधू के पूरे जिस्म में सनसनी फैल गई। इसके बाद यूं ही स्कूल के अलावा
भी दोनों के मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया। दोनों एक-दूसरे को जी-जान से प्यार
करने लगे और एक साथ शादी करके जिंदगी बिताने का सपना संजोने लगे। मधू व दिनेश
अक्सर साथ-साथ ही रहा करते थे।
समय
के साथ ही उनका प्रेम बढ़ता रहा। दिनेश अक्सर ही किसी-न-किसी बहाने मधू के घर भी
आने-जाने लगा। मधू भी उसके इंतजार में पलके बिछाए रहती। दोनो मिलते तो सब कुछ
भूलकर प्यार की रंगीन दुनिया में खो जाते। दिनेश को जब लगने लगा कि एक-दूजे के
बिना दुनिया अधूरी है तो उसने स्कूल के शिक्षक साथियों से राय-मसवरा कर अपनी शादी
का प्रस्ताव लेकर उन्हें मधू के घर भेज दिया।
पहले
तो मधू की मां कुमकुम देवी इस शादी के लिए तैयार नहीं थी। जब उन लोगों ने काफी
समझाया-बुझाया तो मधू की मां कुमकुम देवी तो तैयार हो गई, लेकिन अमित
अब भी इस शादी के खिलाफ था। मां का वह विरोध् नहीं कर सकता था इसलिए वह कुछ नहीं
कहा। परिवार वालों की रजामंदी के बाद मई 2007 में गायत्री
मंदिर में सगुन की रस्म अदा की गई। उसके बाद 11 जुलाई को
शादी होनी तय हो गई।
शादी
की तारिख निश्चित होते ही दोनों तरफ जोर-शोर से तैयारियां की जाने लगी। अमित इस
शादी के खिलाफ था। जल्द ही उसने अपने मामा व जीजा को अपनी तरफ मिलाकर मधू की शादी
दिनेश से न करने के लिए मां पर दबाव डलवाने लगा। इसके बाद स्थिति ऐसी बनी कि दिनेश
व मधू की शादी टूट गई और दोनों में मतभेद हो गया।
बताते
हैं पहले भी दिनेश की दो बार शादी का रिश्ता टूट चुका था। मधू से तय शादी का
रिश्ता टूटने के अवसाद से ग्रसित हो गया। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि
आखिर इतना प्यार करने वाली मधू ने उससे मुख क्यों मोड़ ली। उसने मधू से मिलकर उसे
समझाने का भी प्रयास किया, पर बात नहीं बनी उल्टे मधू को तंग करने के आरोप
में उसे स्कूल से निकाल दिया गया।
अगले
दिन मधू अपने घर से स्कूल जाने के लिए निकली। वह घर से अभी कुछ ही दूर पहुंची थी
कि अचानक दिनेश ने उसका रास्ता रोक लिया तो वह बौखला गई, ‘‘दिनेश, हमारा-तुम्हारा
रिश्ता खत्म हो चुका है, मैं कितनी बार कह चुकी हूं, तुम मेरा
पीछा करना बंद कर दो। आज के बाद मुझसे मिलने की कोशिश भी न करना।’’
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मधु की माँ व बहन |
‘‘अखिर बात
क्या हो गई मधू?
मुझे साफ-साफ बताओ क्यों तुम्हारे घर वाले हमारी शादी के
खिलाफ क्यों हो गये हैं।’’
‘‘मैं कुछ
नहीं जानती,
तुम मेरा पहला प्यार थे। जानते हो पहला प्यार छूटता नहीं।
कितनी मुश्किल से मैं तुम्हे भूल पाई हूं। यह तो मेरा दिल ही जानता हैं। तुम्हे
भूलाने के लिए हफ्तों बेचैन रहीं। लेकिन अब मैं तुम्हारे चक्कर में किसी तरह नही
आने वाली।’’
मधू अपने मन की वेदना ब्यक्त करते हुए दिनेश से बोली।
‘‘मधू मैं
तुम्हे अपनी जान से ज्याद चाहता हूं। पहली ही मुलाकात में मुझे लगा कि
मेरा-तुम्हारा संबंध जन्म-जन्मान्तर का है। पता नहीं किस आर्कषण के तहत उसी दिन से
तुम मेरे मन मन्दिर में स्थापित हो गयी थी और उसी दिन से मैने तुम्हे अपने जीवन
साथी के रूप में देखना शुरू कर दिया था। अब मुझे अपने से अलग मत करो। मैं तुम्हारे
बगैर जी नही पाऊंगा।’’ दिनेश गिड़गिड़ाया।
‘‘मैं कुछ नहीं
जानती, बस
तुम मेरा पीछा करना छोड़ दो। मैं अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकती।’’
‘‘मधू तुम
कुछ भी कहो लेकिन तुम्हारा प्यार मेरे शरीर के जर्रे-जर्रे में समा चुका है। मैं
वास्तव में तुम्हें अपनी जान से ज्यादा चाहता हूं। तुम भले ही पति के रूप में किसी
अन्य व्यक्ति के विषय में सोचने लगी हो, लेकिन पत्नी के रूप में मैंने
तुम्हें मान लिया है। जीवन पर्यन्त तुम्हें उसी रूप में मानता रहूंगा। रही बात
शादी की, तो
तुम्हारी शादी मेरे साथ हुई तो कोई बात नहीं, अन्यथा मैं तुम्हारी शादी
अपने जीते जी किसी अन्य के साथ नहीं होने दूंगा। यह तुम्हें जुनूनी हद तक चाहने
वाले आशिक का वादा है।’’ दिनेश काफी कुछ कह गया था।
‘‘बकबास बन्द
करो। अब मैं तुम्हारी किसी धमकी में आने वाली नहीं हूं। भूल जाओं कि मधू नाम की
कोई लड़की तुम्हारे जीवन में कभी आयी भी
थी। क्योंकि अब मैं किसी कीमत पर पलटकर तुम्हारे रास्तें में एक कदम भी नहीं
रखूंगी।’’ यह
कहकर वह चली गयी। दिनेश को एक बार भी पलट कर नहीं देखा।
दिनेश
की स्थिति एक कटे हुए वृक्ष की भांति थी। वह मधू के मुंह से ऐसी नफरत भरी बातें
सुनकर बुरी तरह बेचैन हो उठा। मधू जितना उससे मिलने से कतराती थी, दिनेश उतना
ही बेचैन व उग्र होता जा रहा था। उसे अब भी आशा थी कि मधू प्यार के रास्ते पर वापस
आ जाएगी। पर जब उसे यह अहसास हो गया कि मधू पूरी तरह बदल गई है और प्यार की आग को
बुझाकर उसने धेखा दे दिया है, तो उसने एक भयानक निर्णय ले लिया।
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एसपी रत्न संजय |
29 अक्टूबर
की सुबह मधू अपने घर से स्कूल जाने के लिए निकली। वह घर से अभी कुछ ही दूर पहुंची
थी कि अचानक दिनेश ने उसका रास्ता रोक लिया तो वह बौखला गई, ‘‘कितनी
बार कहना पड़ेगा कि मेरे रास्ते मत आया करो, अब हमारा तुमसे कोई संबंध
नहीं है।’’
‘‘तुमसे
आखिरी बार कह रहा हूं मधू! एक बार फिर सोच लो।’’ दिनेश
गम्भीर हो उठा।
मधू
बिना कोई जवाब दिए दिनेश के बगल से आगे बढ़ने लगी तो उसके सब्र का पैमाना छलक गया
और तेजी से मुड़कर मधू को दबोच लिया। मधू अभी कुछ समझ पाती इससे पहले ही दिनेश ने
झटके से छिपाकर लाए चाकू से उसका गला रेत दिया। मधू के मुख से एक दर्दनाक चीख निकल
गई। महिला की दर्दनाक चीख सुनकर आस-पास के लोग उठे। लोगों ने देखा एक युवक युवती
का बीच सड़क पर गला रेत रहा है। यह देखते ही घटनास्थल की तरफ एक कई लोग दौड़ पड़े।
अपनी
तरफ एक साथ कई लोगों को बढ़ता देख दिनेश जैसे नींद से जागा और मधू को छोड़कर फरार
हो गया। कुछ लोगों ने दिनेश का पीछा भी किया पर वह किसी के हाथ नहीं आया। इध्र कुछ
लोगों ने सड़क पर तड़प रही युवती को पहचान लिया। पलक झपकते ही घटना की सूचना मधू
के घर वालों को मिली तो वह घटनास्थल पर आ गए। अभी भी मधू सड़क पर तड़प रही थी।
आनन-पफानन में इलाज के लिए उसे एसकेएमसीएच ले जाया जाने लगा, लेकिन
अस्पताल पहुँचने से पहले ही उसकी मौत हो गई।
दिन
दहाड़े मधू की हत्या की जानकारी होते ही स्थानीय लोगों का आक्रोश भड़क उठा। लोग
हत्यारे की गिरफ्तारी की मांग करते हुए कलमबाग चौक पर बांस-बल्ला लगाकर सड़क जाम
कर दिया और टायर जलाकर प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। इसी बीच पुलिस ने मधू
के शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।
इधर
मधू का गला रेतने के बाद फरार हुआ दिनेश भीड़ से बचने के लिए सीधे मिठनापुर थाने
पहुंचा और पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। पूछताछ के दौरान अपना अपराध
स्वीकार करते हुए दिनेश ने पुलिस को बताया कि मधू उसकी प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़
कर रही थी। इससे आक्रोशित होकर उसने मधू की हत्या कर दी। अपने बयान में उसने बताया
कि उसने बाजार से चाकू खरीदाकर करवा चौथ के दिन हत्या करने की योजना बनायी थी।
सड़क
जाम करने की जानकारी मिलते ही काजी मुहम्मदपुर थाने की पुलिस मौके पर पहूँची, लेकिन
स्थिति अनियंत्रित होते देख थाना प्रभारी ने तत्काल इसकी जानकारी एसपी रत्न संजय व
एएसपी क्षत्रणील सिंह को दे दी। मौके की नजाकत को समझते हुए एसपी रत्न संजय व
एएसपी क्षत्रणील सिंह आनन-पफानन में कई थानों की पुलिस व वज्रवाहन के साथ मौके पर
आ गए। एसपी रत्न संजय ने लोगों को बताया कि हत्यारे ने आत्मसमर्पण कर दिया है, पर लोगों
ने इसे पुलिसिया झांसा मानते हुए सड़क जाम नहीं हटाया। तब जाम हटाने के लिए पुलिस
को हल्का बल प्रयोग करना पड़ा। तब जाकर
भीड़ तितर-बितर हुई।
दिनेश
को पुलिस हिरासत में मिठनापुर थाने से काजी मुहम्मदपुर थाने लाया गया। यहां भी
पुलिस ने उससे व्यापक पूछताछ की। पुलिस ने मधू के परिजनों से भी पूछताछ किया तो
पता चला कि दिनेश मधू को धमकी भरा एसएमएस भी भेजा था। पूछताछ के बाद पुलिस मधू की
हत्या के आरोप दिनेश को नामजद करते हुए प्राथमिकी दर्ज कर दिनेश को लाकप में बंदकर
दिया।
अंततः
सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद 30 अक्टूबर 2007
को पुलिस ने दिनेश को अदालत में प्रस्तुत कर दिया। जहां से चौदह दिनों की न्यायिक
अभिरक्षा उसे जेल दिया गया। कथा संकलित किए जाने तक पता चला है कि विवेचना के
दौरान पुलिस ने मधू के परिजनों के अलावा स्कूल के उपप्राचार्य सहित कुछ अन्य लोगों
से पूछताछ करने के अलावा दिनेश के मोबाइल नंबर की जांच पड़ताल में जुटी थी।
(कथा पुलिस एवं मीडिया सूत्रों पर आधरित है।)
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