10 August, 2013

नौकर ने बुझाया घर का चिराग

शुभांग जीवीत अवस्था में
- ताराचंद विश्वकर्मा
उस दिन विशाल संदीप से काफी दिनों बाद मिला तो संदीप व्यंग्य करते हुए कहने लगा, “क्यों विशाल आज इस नाचीज की याद कैसे आ गई…
इधर पैसे की काफी कड़की है यार! नौकरी के सिलसिले में गया था पर..” विशाल बोलते-बोलते रूक गया।
पर क्या…? खुलकर बताओ यार…” संदीप ने पूछा था।
विशाल कुछ पल शांत रहा फिर बोला, “जेब भी खाली और जिंदगी भी खाली है। कोर्इ नौकरी भी नही मिल रही है। कर्इ वांट भरे भी पर पैसे के चलते कोर्इ भी काम नही बन रहा है। आखिर जिंदगी हमारी कठिन परीक्षा क्यों ले रही है, यह समझ में नही आ रहा है। अच्छा तू बता तेरे पास कुछ पैसे है? मुझे कुछ जरूरी काम है।
संदीप सर हिलाते हुए बोला, “नही यार महीने का आखिरी समय चल रहा है। इस समय तो मेरा हाथ भी काफी तंग रहता है।
ऐसे कैसे चलेगा यार ..? क्या हम लोगों के नसीब में यूही घुट-घुटकर जीना लिखा है?”
संदीप कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, “अगर तू मेरा साथ दे तो हम लोग भी रातों-रातों लखपति बन सकते है।
वह कैसे?” विशाल को आश्चर्य था कि भला संदीप के दिमाग में ऐसी कौन सी योजना है, जो उन्हें रातों-रातों लखपति बना देगी। उसने आंखें फाडे़ आश्चर्य से पूछा था।
संदीप ने कहना शुरू किया, “मेरे सेठजी काफी मालदार असामी हैं ही ऊपर से अभी हाल ही में उन्होनें 17 लाख रुपये में अपना एक जमीन भी बेंचा है। पैसे की कोर्इ कमी नही है। उनके दो बच्चे साक्षी व शुभांग है। अगर हम उनके बेटे शुभांग का अपहरण कर ले तो हम लोग आराम से सेठ से 20-25 लाख रुपयों की फिरौती वसूल सकते है।
विशाल ने संदीप की योजना सुनी तो वह घबरा कर बोला, “अगर तुम्हारा सेठ पुलिस के पास चला गया तो?”
मृत शुभांग- इस दशा में बरामद हुआ था शव
यह सुनकर संदीप ठहाका मार कर हसतें हुए बोला, “अरे यार शुभांग उनका इकलौता वारिस है। सेठ और सेठानी दोनो उस पर जान छिड़कते है। इसलिए वह कोर्इ रिस्क नही उठाएगें। हम जितना रूपया मागेंगे सेठ शुभांग की वापसी के लिए आराम से हम तक पहुंचा देंगे। फिर भी हम सावधन होकर पूरी प्लानिंग के साथ यह काम करेंगे। पैसा मिलते ही बच्चे को यूंही कही लावारिस छोड़ हम फरार हो जायेगे।
शुभांग तो तुम्हें अच्छी तरह से जानता-पहचानता है?”
वह हमें ही जानता है न! जब तक वह घरवालों को हमारे बारे में बतायेगा, हम यह शहर छोड़कर कही और चले जाएगें....बोल, लखपति बनने के लिए तू मेरे साथ यह रिस्क लेगा?”
अब तक घ्यान से संदीप की बात सुनता विशाल संदीप से हाथ मिलाते हुए फिल्मी स्टाइल से बोला, “चल यार, यह गेम कर ही डालते हैं। इस पार या उस पार। लखपति बनने के लिए थोड़ा रिस्क तो उठाना ही पड़ेगा। वरना सारी जिंदगी यूंही घुट-घुटकर बीत जाएगी.... पर यार इतना बड़ा काम हम दो लोगो के बस का नही है।
फिर कुछ विचार-विमर्श के बाद उन्होंने अजीत उर्फ विजय शर्मा व प्रमोद कुमार यादव को भी अपने साथ मिला लिए फिर फूलप्रूफ प्लानिंग के साथ घटना को अंजाम देने का दिन निर्धारित कर लिया।
संदीप सिंह उत्तर प्रदेश के पुर्वांचल में स्थित आजमगढ़ जनपद के व्यापार मंडल के पूर्व अघ्यक्ष छेदी लाल रूंगटा के पुत्र अजीत रूंगटा का विश्वास पात्र नौकर है। छेदी लाल के परिवार में पत्नी दमयंती देवी के अलावा दो पुत्र- आलोक रूंगटा व अजीत रूंगटा तथा दो पुत्रियां- अनुपमा व श्वेता हैं।
खाते-पीते सम्पन्न परिवार से ताल्लुकात रखने वाले अरसठ वर्षीय छेदी लाल रूंगटा कपड़े का थोक व्यवसाय करतें थे। समय के साथ पढ़-लिखकर बच्चे योग्य हुए तो उन्होंने अपनी बड़ी लड़की अनुपमा की शादी कोलकाता के पवन बजाज से कर दिया। फिर आलोक की शादी कोलकाता में ही की। बाद में श्वेता की कटक (उड़ीसा) निवासी सूरज के साथ तथा अजीत की कोलकाता निवासिनी लता के साथ शादी कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गये। आज उनकी बेटिया जहा अपने बाल-बच्चों के साथ हसी खुशी जीवन यापन कर रही हैं वहीं बेटे भी अपने-अपने व्यवसाय में लग गये हैं और कोतवाली क्षेत्र के ही सदावार्ती मोहल्ले में रहते है।
दो लड़कियों व एक लड़के के पिता आलोक रूंगटा का मन पिता के व्यवसाय में नही लगा तब वह शेयर मार्केट से जुड़ गए और अपने बाल बच्चों की परवरिश करने लगे। आलोक से छोटे अजीत रूंगटा पिता के नक्से कदम पर चलते हुए कपड़े के व्यवसाय से ही जुड़े रहे और लगभग डेढ़ वर्ष पहले थोक कपड़े का व्यवसाय बन्द कर चौक अहमद कटरा आसिफ गंज में ही 'रत्न प्रिया साड़ी नाम से साडि़यों के रिटेल सेल की दुकान खोल ली। साथ ही इसी दुकान से ही वह शेयर मार्केट का भी कुछ काम धाम करते थे। इसी दुकान पर काम में हाथ बटाने के लिए अजीत ने संदीप को नौकर रखा था।
अभियुक्त विशाल श्रीवास्तव
अजीत रूंगटा के परिवार में पत्नी लता के अलावा दो संताने- चौदह वर्षीय लड़की साक्षी व ग्यारह वर्षीय पुत्र शुभांग था। साक्षी सातवीं कक्षा तथा शुभांग छठी में शहर के जाने माने स्कूल ज्योति निकेतन में पढ़ते थे।
31 अगस्त 2006 की सुबह शुभांग रोज की तरह स्कूल गया। जब दोपहर 2 बजे तक घर वापस नहीं पहुचा तो मा लता रूंगटा बेचैन हो गर्इ और वह बेटी साक्षी से शुभांग के बारे में पूछने लगी, “बेटीशुभांग अभी तक क्यों नही आया? उसने तुमसे कुछ कहा तो नही है?”
नहीं मां छुटटी के बाद मैनें उसे देखा ही नही, पर उसकी साइकिल स्टैड पर खड़ी थी। मैंने सोचा कहीं इधर-उधर होगा आ जाएगा।
साक्षी की बात सुन लता रूंगटा आश्वस्त हो सोचने लगी शायद वह अपने किसी मित्र के साथ खेलने-कूदने में लग गया होगा। कुछ देर बाद आ जायेगा। इस तरह मन को तसल्ली देकर वह घर के काम में जुट गर्इ पर उनका मन काम में नही लग रहा था। जरा सी हल्की आहट पर रह-रहकर उनकी नजर दरवाजे की तरफ उठ जाती कि शायद शुभांग आ गया, पर शुभांग की झलक न दिखने पर वह व्याकुल हो उठती थी।
जैसे तैसे एक घंटा बीत गया पर शुभांग नही लौटा न ही उसकी कोर्इ खबर ही आर्इ तो बदहवास लता रूंगटा ने अपने पति की दुकान पर फोन कर सारी बात बताते हुए तत्काल शुभांग के बारे में पता लगाने को कहकर रोने बिलखने लगी। शुभांग के घर न लौटने से अजीत रूंगटा भी परेशान हो उठे थे। फिर भी पत्नी को सांत्वना देकर अपने स्तर से शुभांग के बारे में पता लगाने में जुट गए। लेकिन वह जहा भी जाते वहा उन्हें निराशा ही हाथ लगती थी।
अब तक शुभांग के रहस्यमय ढंग से लापता होने से पूरा परिवार ही परेशान हो उठा था। इसी बीच शाम लगभग 5 बजे अजीत रूंगटा के मोबाइल पर फोन आया। फोन सुनकर अजीत रूंगटा को चक्कर सा आ गया और घर में कोहराम मच गया। अभी कुछ देर ही बीता था कि दूसरी बार भी मोबाइल की घंटी बजी। इसे रिसीव करते ही पूरी रूंगटा फैमली बदहवास हो गयी थी कि शुभांग का अपहरण हो गया है। अपहर्ता रिहार्इ के एवज में 20 लाख मागे थे। लता का हाल काफी बुरा था। वह पति के कदमों से लिपट कर रोते हुए कहे जा रही थी, जैसे भी अभी मेरे बेट को वापस लेकर आइए। यही हाल अजीत का भी था। वह किसी तरह अपने मन को काबू में रखे हुए लता को सांत्वना दिए जा रहे थे। परिवार के कुछ लोग फोनकर्ता की बात मान लेने को कह रहे थे, तो कुछ पुलिस को सूचना देने की बात करते थे।
अभियुक्त संदीप प्रमोद पुलिस हिरासत में
आखिरकार आनन-फानन में विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि पुलिस को सूचना दी जाय पर अपहरण एवं फिरौती की बात छुपा कर। तय होने के बाद कुछ व्यापारियों के साथ अजीत रूंगटा एस0पी0 नवीन अरोरा से सम्पर्क कर स्कूल से रहस्यमय तरीके से शुभांग के गायब होने की जानकारी दी गर्इ। फिर उनके निर्देशन पर अजीत रूंगटा ने शाम छ: बजे कोतवाली पुलिस को घटना की जानकारी दे दी।
अब तक जंगल में लगी आग की तरह शुभांग की रहस्यमय गुमसूदगी की जानकारी चारो तरफ फैल चुकी थी। शहर का व्यापारी वर्ग घटना से सहम गया था। विधालयों में पढ़ने वाले छोटे बच्चों के अभिभावक काफी भयभीत थे। शुभांग की मां तो अन्न-जल तक छोड़ दिया था। रहस्यमय गुमसूदगी की सूचना मिलते ही कोतवाली पुलिस संदिग्ध लोगों पर नजर रखने के साथ ही ज्योति निकेतन स्कूल के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को पूछताछ कर सुराग लगाने के लिए उठा लिया। रात भर की व्यापक पूछताछ के बाद भी कुछ जानकारी नही मिल पार्इ।
जैसे-जैसे समय बीतता गया शहर में आक्रोश फैलता गया। इसी बीच किसी माघ्यम से एस0टी0एफ0 के एस0पी0 भगत को घटना की जानकारी हो गर्इ। उन्होने तत्काल आजमगढ़ के एस0पी0 नपवीन अरोरा से घटना की जानकारी ली। फिर एस0टी0एफ0 का एक दल तुरन्त आजमगढ़ के लिए रवाना कर दिया।
अब तक की पुलिस छानबीन से साफ हो गया था कि शुभांग का फिरौती के लिए अपहरण किया गया है। तब पुलिस ने शुभांग के पिता अजीत रूंगटा द्वारा दर्ज करवाये गये गुमसूदगी रिपोर्ट को मुकदमा अपराध संख्या 1448/2006 पर भारतीय दण्ड विधान की धारा 364 ए आर्इ0पी0सी0 के अन्तर्गत प्राथमिकी दर्ज कर शुभांग के बारे में पता लगाने के लिए तेजी से जुट गर्इ थी। इसी दौरान लखनऊ से आर्इ एस0टी0एफ0 की टीम भी आजमगढ़ पहुच कर काम में जुट गर्इ। पुलिस अधीक्षक नवीन अरोरा ने शुभांग का पता लगाने के काम में तेजी लाने के लिए कोतवाली प्रभारी को हटाकर उनके स्थान पर इंस्पेक्टर राम मोहन यादव को कोतवाली का प्रभारी बनाकर विवचना की जिम्मेदारी  उन्हे सौंप दी।
विवेचना हाथ में आते ही इंस्पेक्टर श्री यादव ने चारों तरफ मुखबिरों का जाल फैला दिया था। इसी बीच ज्योति निकेतन स्कूल के फादर ने एस0पी0 नवीनअरोरा से सम्पर्क कर शुभांग की सकुशल वापसी कराये जाने का अनुरोध करते हुए जानकारी दी कि स्कूल के कुछ बच्चों ने शुभांग को उस दिन किसी के साथ जाते देखा था।
जानकारी महत्वपूर्ण थी। पुलिस के साथ एस0टी0एफ0 का दल तुरन्त ही बच्चों से सम्पर्क कर शुभांग को स्कूल से ले जाने वालों का हुलिया पता लगा लिया। हुलिया अजीत रूंगटा के नौकर संदीप सिंह से काफी मिलता-जुलता था। संदीप रूंगटा परिवार का एक विश्वासपात्र नौकर था। सीधे उस पर हाथ डालना खतरे से खाली नही था। लिहाजा पुलिस गुपचुप ढंग से छानबीन करने लगी।
अभियुक्त को देखने के लिए जमा लोग
संदीप मूलरूप से अम्बेडकर नगर जिले के जहागीरगंज थाना अन्तर्गत मकसूदपुर गाव के निवासी स्वर्गीय राजेन्द्र सिंह के दो पुत्र व दो पुत्रियों में तीसरे नम्बर पर है। आजमगढ़ के हीरापटटी मोहल्ले में उसका ननिहाल है। नवासे में उसके पिता को यहा की जमीन मिली थी। जिस पर वह दूध का कारोबार किया करते थे। 15 मार्च 2006 को हार्ट अटैक होने के कारण राजेन्द्र सिंह की मौत हो गर्इ।
राजेन्द्र सिंह की मौत के बाद दूध का कारोबार बंद हो गया था। राजेन्द्र के दो पुत्र प्रदीप व संदीप का रहनसहन बदल गया। बड़ा पुत्र प्रदीप तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत करता है। जबकि संदीप पहले से ही जीविकोपार्जन के लिए अजीत रूंगटा के यहा कपड़े की दुकान पर नौकरी करने लगा था।
रूंगटा परिवार संदीप को काफी मानता था। उस पर काफी विश्वास भी करता था। संदीप ही दुकान खोलता था। इस दौरान दुकान की चाभी भी उसके पास ही रहती थी। वह कपड़ो की थोक खरीद और बिक्री भी करता था। इसके लिए वह गोरखपुर, वाराणसी भी आता-जाता था। इस दौरान उसके पास काफी पैसे होते थे।
छानबीन के दौरान ही पुलिस को पता चला कि रूंगटा परिवार की दुकान में पहले भी दो बार चोरी हुर्इ थी। तब भी संदीप पुलिस के संदेह में आया था। लेकिन उस पर अटूट विश्वास होने के कारण रूंगटा परिवार ने कोर्इ भी कार्यवाही नहीं होने दी थी। इस बीच एस0टी0एफ0 ने ज्योति निकेतन स्कूल के बच्चें द्वारा बताए गए हुलिए का स्कैच भी बनवा लिया। स्कैच हूबहू संदीप से मैच करता था। लिहाजा पुलिस ने पूछताछ के लिए उसे उठा लिया।
पूछताछ शुरू हुर्इ तो पहले संदीप अपने आप को बेगुनाह बताता रहा। लेकिन जब पुलिस अपने पर उतर आयी तो, संदीप टूट गया फिर उसने रहस्य उजागर करते हुए बताया कि डर बस हम सब ने उसकी हत्या कर दी है। संदीप के रहस्य उजागर करने पर सहसा पुलिस को विश्वास ही नही हुआ।
संदीप ने रहस्य उजागर करते हुए बताया था कि वह डेढ़ वर्षो से अजीत रूंगटा के कपडे़ की दुकान पर काम कर रहा था पर, उसका इस काम में मन नहीं लगता था। लिहाजा वह जगह-जगह  नौकरी के लिए आवेदन करता था। नौकरी के सिलसिले मे घटना से कुछ दिन पुर्व बिहार के गया जिले में सेना में भर्ती होन के लिए गया था। वहां उसे बताया गया, सेना में भर्ती होने के लिए डेढ़ लाख रुपये घूस लगती है। तभी से वह पैसे के जुगाड़ में लगा था।
समय का चक्र चलता रहा इसी बीच संदीप को पता चला कि अजीत रुंगटा ने अच्छे कीमत पर अपनी एक जमींन बेच दी है। जानकारी मिलते ही उसके मन में नौकरी की ललक जाग उठी। फिर उसने अपने मित्र विशाल श्रीवास्तव से सम्पर्क किया।
विशाल श्रीवास्तव विष्णु श्रीवास्तव के चार संतानों में इकलौता पुत्र है। विष्णु श्रीवास्तव मूलरुप से बिलरियागंज थानाक्षेत्र के रग्घूपुर गांव के रहने वाले हैं। इनकी पत्नी शशि श्रीवास्तव देवरिया जनपद में प्राथमिक विधालय मे शिक्षिका है तथा अपनी बड़ी लड़की के साथ देवरिया के सलेमपुर में रहती है। जबकि विष्णु श्रीवास्तव अपनी दो बेटियों व विशाल के साथ अपने एक रिश्तेदार के नाम से एलाट बिलरिया की चुंगी स्थित सदर अस्पताल के शासकीय आवास टाइप-2 में रहते है।
विरोध में सड़क पर उतरीय महिलायें
विशाल काम-धंधे को लेकर काफी परेशान रहता था। संदीप ने जब अपनी योजना बतार्इ तो पहले उसने इन्कार कर दिया। लेकिन जब जरा सी रिक्स पर अच्छा खासा पैसा मिलने की बात कही तो वह तैयार हो गया। दोनों ने अजीत शर्मा को भी सहयोग के लिए अपने साथ मिला लिया।
अजीत ऊर्फ विजय शर्मा महिला चिकित्सालय में चालक के पद पर कार्यरत अभय शर्मा के चार पुत्रों ने तीसरे नम्बर का है। मूलरुप से सिधारी थानाक्षेत्र के मतौलीपुर निवासी अभय शर्मा वर्तमान में आजमगढ़ जिला चिकित्सालय के सरकारी आवास में अपने परिजनों के साथ रहते है। अजीत शर्मा के बड़े भार्इ अमित की हरिऔध नगर कालोनी के बगल में सैलून की दुकान है। संदीप, अजीत व विशाल अक्सर ही यहीं बैठा करते थे। संदीप व विशाल ने जब अजीत को अपनी योजना बतार्इ तो वह भी उनका साथ देने को तैयार हो गया।
अब समस्या थी तो बस शुभांग को छिपाकर रखने की। लिहाजा तीनों ने सिधारी थानाक्षेत्र के जमालपुर गांव निवासी हरिबंश यादव के पुत्र प्रमोद को भी साथ मिला लिया। प्रमोद का एक अर्द्धनिर्मित मकान जमालपुर में था। जबकि उसका पूरा परिवार पास में ही दूसरे मकान में रहता था।
योजना पर काम 30 अगस्त को शुरु हो गया। उस दिन योजनानुसार अजीत व विशाल शुभांग का अपहरण करने के लिए ज्योति निकेतन स्कूल पहुंचे, पर पुलिस को स्कूल के आस-पास देख उनका हौसला जवाब दे गया और वह खाली हाथ लौट गए। अगले दिन 31अगस्त 2006 की सुबह संदीप ने अजीत रुंगटा से बहाना कर छुटटी ले ली कि वह अतरौलिया डाकघर से किसान विकास पत्र लेने जाएगा।
अजीत रुंगटा से छुटटी लेने के बाद संदीप व विकास अजीत की मोटर साइकिल से ज्योति निकेतन की तरफ चल पडे़। स्कूल से कुछ दूर पहले ही संदीप ने विकास को उतारकर पास ही स्थित बंधे पर इतंजार करने को कह स्कूल पहुंच गया। अभी स्कूल की छुटटी होने में कुछ समय बाकी था। संदीप-अजीत के साथ स्कूल के सामने एक चाय पान की दुकान पर खडे़ हो कर शुभांग के स्कूल की छुटटी की प्रतिक्षा करने लगे। कुछ देर बाद स्कूल की छुटटी हुर्इ। शायद शुभांग का दुर्भाग्य ही था कि छुटटी के समय स्कूल के गेट के पास एक हाथी को देख कौतूहल बस वह साइकिल स्टैन्ड पर न जाकर गेट पर आ गया।
गेट पर आते ही उसकी नजर संदीप से टकरा गर्इ तब संदीप इशारे से उसे अपने पास बुलाकर कहने लगा, “शुभांग जल्दी चलो मैं तुम्हें ही लेने आया हूं।
शुभांग संदीप को अच्छी तरह से जानता था, फिर भी वह पूछने लगा, “क्या हुआ संदीप अंकल ?”
घर में तुम्हारी मां की तबियत अचानक खराब हो गयी है।
मां की बिमारी का समाचार सुनते ही मासूम शुभांग घबरा गया और वह तेजी से साइकिल स्टैन्ड की तरफ जाने के लिए मुड़ा ही था कि संदीप बोल पड़ा, “साइकिल छोड़ मेरे साथ चलो। साइकिल बाद में चली जायेगी।
आखिरकार संदीप की बातों में आकर शुभांग संदीप के साथ अजीत की मोटर साइिकल पर बैठ गया। कुछ दूर जाने के बाद जब अजीत बंधे की तरफ मुड़े तब शुभांग बोल पड़ा, “इधर कहा चल रहे हैं, संदीप अंकल?”
विरोध प्रदर्शन करते लोग
मां अस्पताल में हैं बेटा! इसलिए हम सब भीड़ वाले रास्ते से हटकर चल रहे हैं जिससे जल्दी पहुंच सके।
यह सुन मासूम शुभांग चुप हो गया। कुछ देर में शुभांग को लेकर दोनो बंधे के पास पहुच गये। जहां विशाल उन दोनों का इंतजार कर रहा था। इससे पहले ही संदीप ने शुभांग को बेहोश कर दिया था।
बंधे से विशाल को भी साथ लेकर संदीप सिधारी थाना क्षेत्र के जमालपुर के सड़क के किनारे सूनसान में प्रमोद यादव के अर्द्धनिर्मित मकान पर पहुचे। प्रमोद यादव वहां पूरी तैयारी से पहले से ही मौजूद था। वहा शुभांग को छिपाने के बाद शाम लगभग चार बजे पहले से ही फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर दूसरे जिले से लिए गए सिमकार्ड से अजीत को फोन कर 20लाख रुपए की फिरैती मांगी गर्इ।
कुछ देर रुकने के बाद संदीप शुभांग का वहीं छोड़कर सामान्य ढंग से अपने घर चला गया। अगले दिन रोज की भांति नियत समय पर अजीत रूंगटा की दुकान खोली। वहीं से वह साथियों से संपर्क करता रहा। साथ ही रूंगटा फैमली में क्या हो रहा है। उसकी पल-पल की जानकारी साथियों को देता रहा।
इधर होश में आने के बाद शुभांग घर जाने के लिए जोर-जोर से रोने लगा था। काफी समझाने-बुझाने के बाद भी वह चुप होने का नाम नही ले रहा था। इस पर गुस्से में आकर विशाल व अजीत ने शुभांग की जम कर पिटार्इ भी कर दी, पर वह चुप नहीं हो रहा था। इसी दौरान 1सितम्बर 06 का संदीप ने रूंगटा परिवार द्वारा किए जा रहे प्रयास के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि शुभांग की सकुशल वापसी के लिए घर पर यज्ञ करवाया जा रहा है। इस यज्ञ के पूरा हो जाने के बाद घटना को अंजाम देने वाले पागल हो जाएगें। वह खुद--खुद शुभांग को घर पहुचा देंगें।
इस जानकारी के बाद सब घबरा गए। विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि शुभांग की तत्काल हत्या कर उसके शव को ठिकाने लगा दिया जाय। तय कार्यक्रम के अनुसार 1 सितम्बर की रात 8 बजे के करीब अजीत शर्मा और विशाल शुभांग को बेहोश करके बार्इक पर बैठाकर निकले और शारदा तिराहे से बंधे वाले रोड होते हुए तमसा नदी के किनारे पहुचें। तब तक दुकान बंद करके संदीप भी वहां पहुच गया। फिर छह-छह फुट लम्बी झाडि़यों के बीच मासूम बेहोश शुभांग को ले जाकर उसका गला घोट कर हत्या कर वहीं छोड़ कर चले गए।
शुभांग के पिता को सांत्वना देते एस0पी0
शुभांग के अपहरण के बाद हत्या कर दिए जाने की जानकारी मिलते ही इंस्पेक्टर राममोहन यादव ने वरिष्ठ अधिकारी पुलिस अधीक्षक नवीन अरोरा, सीटी एस0 पी0 नन्द किशोर, क्षेत्राधिकारी हरिनाथ यादव को घटना की जानकारी दे अन्य अभियुक्तों कि गिरफ्तारी एवं शुभांग की लाश बरामद करने के लिए आवश्यक दल तैयार करने के लिए हेडकांस्टेबल शमशेर सिंह को निर्देश दे दिया।
वरिष्ठ अधिकारी का निर्देश मिलते ही कांस्टेबल शमशेर सिंह आनन-फानन में आवश्यक पुलिस बल एकत्रित कर कुछ अभियुक्तों को गिरफ्तारी के लिए रवाना कर दिया। इसी बीच एस0टी0एफ0 के साथ इंस्पेक्टर राममोहन यादव संदीप की निशान देही पर तमशा नदी के किनारे झाडि़यों से मासूम शुभांग का शव बरामद कर लिया।
शुभांग का शव बरामद होने की जानकारी मिलते ही वरिष्ठ अधिकारी भी घटना स्थल पर पहुंच गए फिर आवश्यक औपचारिकताए पूरी करने के बाद तत्काल शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया।
इसी बीच अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए निकले पुलिस दल के हत्थे प्रमोद कुमार यादव भी लग गया। पुलिस उसे लेकर थाने लौट आर्इ। अब तक शुभांग के अपहरण एंव हत्या किए जाने की जानकारी नगर मे फैल गर्इ तो लोगो को आक्रोश फूट पड़ा। जगह-जगह धरना प्रदर्शन का दौर चल पड़ा। आनन-फानन में उसी रात लगभग डेढ़ बजे तक शव का पोस्टमार्टम करवाकर शव परिजनों को सौंप दिया गया।
शुभांग का पार्थिव शव मिलने के बाद उसे जीप पर रखा गया। रात होने के बावजूद उस समय भीड़ इतनी अधिक थी कि जिला अस्पताल से अजीत रूंगटा के घर के बीच दो किलोमीटर की दूरी तय करने में एक घंटे से अधिक समय लग गया। परिस्थिति को देखते हुए पुलिस प्रशासन चौकन्ना था। सुरक्षा का व्यापक प्रबन्ध भी कर रखा था।
रात ढार्इ बजे के करीब जब शव अजीत रूंगटा के मकान के सामने पहुंचा तो कोहराम मच गया। घर की स्त्रियों के रुदन से वहां उपस्थित सभी लोग रो पड़े थे। शुभांग की मां तो बुत बनी बैठी थी। रोते-रोते उसकी आखों के आंसू सूख चुके थे। पिता अजीत रूंगटा की स्थिति बदहवासों जैसी थी। दादा छेदीलाल का भी यही हाल था।
जैसे-तैसे रात बीती अगले दिन सुबह पांच बजे के करीब शव का अंतिम संस्कार करने के लिए शव लेकर घर से चले तो चीख पुकार से एक पुन: पूरा माहौल गमगीन हो गया। आगे-आगे शुभांग का शव था, पीछे हजारों की संख्या में व्यापारी एवं नगरवासी थे। अंतत: गोदाम घाट पहुचकर शव को नदी में प्रवाहित कर दिया गया।
थाना प्रभारी राममोहन यादव
इधर घटना से बौखलार्इ पुलिस व पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी आनन-फानन में फरार विशाल श्रीवास्तव व अजीत शर्मा की गिरफ्तारी के लिए ढार्इ-ढार्इ हजार रुपये के इनाम की घोषणा कर दी।
शुभांग की अपहरण एवं हत्या के विरोध में आजमगढ़ जनपद में अभूतपूर्व बन्दी रही। बाजार से लेकर स्कूल कालेज सब बन्द रहे। घटना से दुखी नगर वासी स्वत: अपना कारोबार बन्द कर दिया था। शहर में करीब आधा दर्जन से अधिक संगठनों ने अपना अलग-अलग जुलूस निकाल कर विरोध प्रदर्शन किया, सब जिलाधिकारी कार्यालय पहुंच कर हत्यारों को सीधे फांसी पर चढ़ाए जाने की मांग कर रहे थे। इसी बीच पुलिस की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच इंस्पेक्टर राममोहन यादव ने संदीप व प्रमोद को आवश्यक कार्यवाही पूरी करने के बाद जुडीशियल मजिस्टेट प्रथम श्रेणी शाहनवाज हसन के न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया। विवेचक राममोहन यादव ने दोनों को भा00विधान की धारा-363,364,302 201 आर्इ0पी0सी0 में वांछित कर मजिस्टट श्री हसन के समक्ष प्रस्तुत किया था। जहा से उन्हे न्यायिक अभिरक्षा में लेते हुए जेल भेज दिया गया।
दो अभियुक्तों के गिरफ्तारी के बाद भी लोगों का आक्रोश थम नही रहा था। लोग एक स्वर से घटना की निन्दा करते हुए हत्यारों को तत्काल फांसी पर चढ़ाए जाने की माग करते रहे। इसी बीच 8 सितम्बर की शाम मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने रेलवे स्टेशन से विशाल को भी गिरफ्तार कर लिया।
पूछताछ के दौरान पुलिस को विशाल ने बताया कि संदीप के कहने पर ही शुभांग की हत्या कर शव को झाडि़यों के बीच फेंका गया था। शव को ठिकानें लगाने के बाद अजीत के साथ वह मऊ चला गया। वहां एक स्थान पर बार्इक को लावारिस हालत में छोड़कर लखनऊ जाने के लिए बस पकड़ ली। बस से वह सुल्तानपुर तक गए। वहां पुलिस की चेकिंग देखकर सहम गए, बस छोड़कर वापस आजमगढ़ लौट आए। यहां आकर अजीत उससे अलग हो गया। फिर वह रात गुजारने की गरज से अपने मामा के घर गया। उसके मामा ने उसे रखने से इंकार कर दिया। तब से वह इधर-उधर भटकता रहा। आज दिल्ली जाने के लिए कैफियत ट्रेन पकड़ने स्टेशन गया था कि पुलिस के हत्थे चढ़ गया।
जुर्म स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उसे भी अदालत में प्रस्तुत कर दिया। जहा से उसे जेल भेज दिया गया। अब तो विवेचनाधिकारी को चौथे अभियुक्त अजीत शर्मा की तलाश थी। लिहाजा वह उसकी गिरफ्तारी के लिए ताबड़-तोड़ छापे मार रहे थे। इसी बीच पुलिस अधीक्षक ने अजीत पर घोषित ढार्इ हजार के इनाम को बढ़ा कर दस हजार कर दिया था।
इंस्पेक्टर राममोहन यादव तत्परता पूर्वक अजीत की खोज में जुटे ही थे कि 11 सितम्बर की शाम देवगांव (आजमगढ़) के प्रभारी को सूचना मिली कि शुभांग हत्या काण्ड में वांछित अजीत शर्मा कंजहित बाजार में देखा गया है। सूचना के आधार पर देवगांव पुलिस आनन-फानन में दविश देकर उसे भी गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उसकी जामा तलाशी ली तो घटना में प्रयुक्त नोकिया का मोबाइल बरामद हो गया। पूछताछ मे उसने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया। तब पुलिस ने आवश्यक कार्यवाही पूरी कर उसे भी अदालत में प्रस्तुत कर दिया। जहां से उसे भी न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया।
कथा लिखे जाने तक पता चला है कि विवेचनाधिकारी राममोहन यादव जल्द ही विवेचना पूरी कर अदालत में प्रस्तुत करने की तैयारी में जुटे है।
(सत्य घटना पर आधारित कथा पुलिस सूत्रों, अभियुक्तों व शुभांग के परिजनों के बयानों पर आधारित है)

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