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प्रतीक चित्र |
गुड्डे-गुडि़या का
खेल खेलते-खेलते जब श्वेता समझदार हुई तो वह अपने जीवन के भावी राजकुमार के सपने
संजोने लगी। एक दिन संयोगवश वह अपने घर के पास खड़ी थी। अचानक उसकी निगाह रिक्शे
से उतर रहे अफजल से टकरा गई। वह भी श्वेता को घूरकर देख रहा था। अफजल की नजरों में
एक अजीब सा आर्कषण था। कुछ क्षण रूककर देखने के बाद वह मुस्कुरा कर उसके घर के
सामने की दुकान में चला गया।
अफजल तो चला गया पर
पहली बार में ही उसने श्वेता के दिल में हलचल मचा दी थी। उसका चेहरा रह-रहकर चलचित्र
की तरह सामने आ जाता और उसके होठों की मोहक मुस्कान बेचैन करने लगती थी। इस बारे
में श्वेता कई दिन तक सोचती रही कि पहली बार नजर मिलते ही अफजल ने ऐसा क्या कर
दिया जिससे उसे लगने लगा कि जैसे वह उसे बरसों से जानती है। अफजल कौन था? कहां रहता था? तरह-तरह के प्रश्न श्वेता के दिल व दिमाग में टकराकर उसे बेचैन कर देते
थे। उसकी स्थिति बहुत अजीब होती जा रही थी। जितना ही वह अफजल के विषय में सोचती थी, उसके आर्कषण का जादू उतनी ही तेजी से श्वेता के
रोम-रोम में समाता जा रहा था।
श्वेता सिंह मूलरूप
से बलिया जिले के बैरिया थानान्तर्गत जमालपुर गांव के निवासी जगनारायण सिंह के
बेटे लल्लन सिंह की पुत्री थी। लल्लन सिंह के परिवार में उनकी पत्नी मनोरमा के
अलावा तीन बेटियां और एक बेटा है,
बेटियों
में सबसे बड़ी बेटी विम्मी की शादी पंकज से हुई है जो वर्तमान में केरल में भारतीय
सेना में तैनात है। उनसे छोटी रिंकी की शादी बलिया जनपद के ही हल्दी थानाक्षेत्र
के ग्राम मसौवां निवासी नंदबिहारी के बेटे हरिशंकर सिंह के साथ हुई है। रिंकी के
बाद 24 वर्षीय बेटा राकेश सिंह है, फिर सबसे छोटी बेटी श्वेता थी। श्वेता बचपन से ही
महत्वाकांक्षी थी, लिहाजा वह
पढ़ाई-लिखाई में विशेष ध्यान देती थी। लल्लन सिंह सोनभद्र जनपद स्थित एन0टी0पी0सी0 में ठेकेदारी किया
करते है, ठेकेदारी के चलते पिछले कुछ
सालों पुर्व वह अपने मूल जनपद बलिया को छोड़कर सोनभद्र जिले के बीजपुर थाना क्षेत्र
के पांवर प्लान्ट कालोनी अपना स्थायी निवास बना लिया और यहीं के होकर रह गए।
श्वेता की लाश |
वक्त तेजी से
गुजरता रहा। देखते ही देखते श्वेता उम्र के 17वें पड़ाव पर पहुंच गई थी। उसका निखरता हुआ शरीर इस बात की सूचना दे रहा
था कि वह जवानी की दहलीज में कदम रख चुकी थी। श्वेता का जितना प्यारा नाम था, उतना ही खूबसूरत चेहरा भी था। गोरा रंग होने के
साथ-साथ उसके चेहरे पर एक अजीब सी कशिश थी, जो किसी को भी उसका दिवाना बना देती थी। चुलबुली होने के कारण भी वह सहज
ही लोगों के आर्कषण का केन्द्र बन जाया करती थी।
सत्रह बसन्त पार कर
लेने के बाद अब श्वेता उम्र के उस नाजुक दौर में पहुंच चुकी थी, जहां युवतियों के दिल की जवान होती उमंगे, मोहब्बत के आसमान पर बिना नतीजा सोचे उड़ जाना जाना
चाहती है। ऐसी ही हसरतें श्वेता के दिल में भी कुचांले भरने लगी थी। उम्र के इस
पायदान पर खड़ी श्वेता ने उस दिन अफजल को देखा तो उसके दिल में कुछ-कुछ होने लगा।
अफजल सोनभद्र जिले
के बीजपुर के ही रहने वाले मजीद अहमद का पुत्र है। मजीद अहमद बीजपुर स्थित एन0टी0पी0सी0 में रीगर के पद
कार्यरत है। अफजल दो भाई है, अफजल निहायत सीधा-साधा, नेक और अपने काम से काम रखने वाला युवक है। परिवार की
आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह अधिक पढ़-लिख नही पाया तो कहीं नौकरी करने की
बजाय उसने खुद का व्यवसाय करने का निर्णय लिया और श्वेता के घर के सामने चिकन शाप (मुर्गा बेचने की दुकान) खोल लिया।
दुकान पर आने-जाने
के दौरान ही श्वेता की नजरे अफजल से मिली थी। यह अफजल के आकर्षक व्यक्त्वि का ही
प्रभाव था कि पहली ही नजर में श्वेता उस पर मर मिटी। यही हाल अफजल का भी था, वह भी श्वेता की खूबसूरती व गदराएं हुए जिस्म का
दिवाना हो गया। फिर तो वह श्वेता की एक झलक पाने के लिए हमेंशा लालायित रहता था।
आग क्योंकि दोनों तरफ बराबर लगी थी,
लिहाजा
श्वेता को शीशे में उतारने के लिये अफजल ने पहल की तो जल्द ही कामयाबी भी मिल गई। फिर
क्या था समय के साथ दोनो का प्रेम परवान चढ़ता चला गया।
अब इसे आधुनिक टी0वी0 ग्लैमर का प्रभाव
कहे या किशोर उम्र की फिसलन, श्वेता को पढ़ाई के
दौरान ही प्रेम का रोग लग गया, आगे चलकर दोनों
मोबाइल द्वारा एक दूसरे से अपने प्रेम का इजहार करने लगे। घर के सामने होने के
कारण श्वेता जब चाहती अफजल के दीदार हो जाते और जरुरी होने पर मौका निकालकर दोनों
प्रेमी घर के बाहर एकान्त में भी मिल लेते।
कहते है इश्क और
मुश्क छिपाये नहीं छिपता। यह वह सुगन्ध है जिसका आभास सबसे पहले घर परिवार और बगल
के पड़ोसियों को मिलती है। यहां भी यही हुआ, कुछ ही महीनों में श्वेता के मां-बाप को इस बात की भनक लग गयी कि उनकी
बेटी पड़ोस के मुर्गा बेचने वाले अफजल से प्रेम करती है। पिता लल्लन सिंह को यह
कत्तई बर्दाश्त नहीं था कि उनकी बेटी गैर मजहब व जाति के युवक से प्यार की पेंगे
बढ़ाये। श्वेता पर पिता की बंदिशें बढ़ गई, उसकी एक-एक हरकत पर नजर रखी जाने लगी। लेकिन मोबाइल युग में उन्हे ज्यादा
सफलता नहीं मिली, श्वेता और अफजल
मौका निकाल कर एक दूसरे से मिल कर अपनी पीड़ा बयां कर लेते। दोनों प्रेमियों को जब
यह लगा कि बेरहम जमाना हमें एक नहीं होने देगा तब एक दिन मौका देखकर अफजल श्वेता
को लेकर घर से फरार हो गया।
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लल्लन सिंह: श्वेता के पिता पुलिस हिरासत में |
अचानक श्वेता के
लापता हो जाने से पिता लल्लन सिंह को समझते देर नहीं लगा कि उनकी बेटी अपने प्रेमी
के संग ही कहीं भागी है, क्योंकि अफजल भी
अपनी दुकान से गायब मिला। ठेकेदारी के पेशे में होने के कारण लल्लन सिंह की पहचान
कई सरकारी-गैर सरकारी अफसरों व दबंग किस्म के लोगों से थी। अपने उन्हीं परचितों के
माध्यम से अफजल के पिता मजीद अहमद पर दबाव बनाया, पुलिस ने भी इसमें मदद की परिणाम स्वरूप भागने के 48 घण्टे बाद श्वेता को खोज निकाला गया और अफजल को
चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। लल्लन सिंह को लगा यदि अफजल के खिलाफ किसी प्रकार की
कानूनी कार्यवाही किया तो पूरा मामला खुल जायेगा और समाज तथा विरादरी में नाहक
बदनामी होगी, जिससे आगे चलकर
श्वेता के ब्याह में अड़चन आ सकती है।
अफजल के साथ घर
बसाने का सपना देख रही श्वेता को घर से भागने के बाद पता चल गया था कि शैक्षिक
प्रमाण पत्र के अनुसार अभी वह 18 साल की नहीं हुई
है। जनवरी 2013 में 18 साल पूरा हो जाने के बाद वह कानूनन बालिग हो जायेगी
तब वह जिससे चाहे उससे कोर्ट मैरेज कर सकती है। इसलिए दोनो प्रेमी-प्रेमिका ने
निर्णय ले लिया कि अब वे बाजार में नहीं मिलेगे और सावधान रहेगे, बहुत ज्यादा जरुरी होने पर मोबाइल से अपने दिल की
बातें कर लेगे। इसके बाद जब श्वेता कानूनी रुप से बालिग हो जायेगी तब वे दोनो अपनी
मन मर्जी का जीवन जीने के लिए स्वतंत्र होगे। जहां तक अफजल के दीदार की बात थी तो
घर के सामने दूकान होने के कारण दिन में दो-तीन बार अफजल दिख ही जाता। कुल मिलाकर
श्वेता और अफजल दोनों मन ही मन में निर्णय ले लिया कि श्वेता के बालिग होने के बाद
अपनी प्यार की दुनिया अलग बसायेंगे तब कानून भी रोड़ा नहीं बनेगा।
17 नवम्बर 2012 को लगभग 11 बजे सक्तेशगढ़ चौकी प्रभारी गोविन्द सिंह को सिद्धनाथ
के दरी के पास पार्किंग मैदान के उत्तर तरफ झाडि़यों में एक लड़की की लाश पड़ी
होने की सूचना मिली तो वह अपने वरिष्ठ अधिकारियों को खबर देकर घटना स्थल पर पहुंच
गए।
सिद्धनाथ की दरी
उत्तर प्रदेश के पुर्वांचल में स्थित मीरजापुर जनपद मुख्यालय से लगभग 52 किमी0 की दूरी पर चुनार
थाना क्षेत्र से 20 किमी0 दूर सक्तेशगढ़ चौकी अन्तर्गत प्राकृतिक पहाड़ी झरनों
और फालों वाला मनोहारी पर्यटक स्थल है। यहां सैर-सपाटा और पिकनिक मनाने के लिए
आस-पास और दूर दराज के जिलों से पर्यटकों की अच्छी-खासी भीड़ आती रहती है।
छुट्टियों के दिनों में तो इन स्थानों पर मेले जैसी भीड़ जमा हो जाती है।
सिद्धनाथ की दरी से
लगभग 2-3 किमी पहले देश के
जाने-माने लब्ध प्रतिष्ठित संत परमहंस स्वामी अड़गड़ानन्द जी महाराज का कई एकड़
में फैला विशाल आश्रम है। इस आश्रम में भी प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु
भक्तजन और स्वामी जी के शिष्यों का आना-जाना लगा रहता है।
पुलिस अधीक्षक सतीश चन्द पाण्डेय |
आने-जाने वाले
इन्ही तमाम सैलानियों और पर्यटकों में से ही किसी ने लड़की की हत्या को अन्जाम
दिया होगा, यह विचार चौकी प्रभारी के
मन में उठना स्वाभाविक था, पर पहली नजर में ही
साफ हो गया कि हत्या इसी स्थान पर की गयी है, लाश को कहीं बाहर से लाकर नहीं फेंका गया है। लड़की की उम्र 18-20 साल से ज्यादा नहीं थी। चेहरे और पहनावें से लड़की
किसी खाते-पीते सम्पन्न परिवार की लगी। उसके गले में हरे व लाल रंग का एक दुपट्टा
पड़ा था जैसे उसी दुपट्टे से उसका गला घोंटा गया हो। लड़की पूरी बांह की समीज और
उसके ऊपर स्लेटी कलर का अच्छा सा जैकेट पहना हुआ था। प्रथम दृष्टया लाश देखने से
ऐसा नहीं लग रहा था कि उसके साथ किसी प्रकार की जोर जबर्दस्ती या बलात्कार जैसी
कोई घटना घटी हो। लड़की के सर पर किसी वजनदार चीज से दो-तीन वार किया गया था जिसके
कारण उसका सर फट गया था और उससे बहा खून कुछ दूर तक बहकर सूख गया था, जो इस बात का प्रमाण था कि हत्या इसी स्थान पर की गयी
है।
सिद्धनाथ की दरी पर
गाडि़यों की पार्किंग का कामकाज देखने वाला पप्पू पाल से पूछताछ करने पर उसने
बताया कि रात 8 बजे के बाद अपनी
ड्यूटी समाप्त कर डेरे पर सोने जा रहा था तब वह टार्च की रोशनी में आस-पास नजर डाला
था उस समय यहां लाश नहीं थी, इसका मतलब साफ था
उसके जाने के बाद देर रात इस घटना को अंजाम दिया गया होगा, पर वह कौन हो सकता है। चौकी प्रभारी कुछ सोच ही रहे थे
तभी चुनार थाने के प्रभारी इंस्पेक्टर अखिलेश कुमार सिंह भी अपने सहयोगी सब
इंस्पेक्टर जयन्त यादव, सिपाही दिनेश पटेल, रविन्द्र यादव, हरिहर सिंह, शैलेन्द्र यादव, बृजेश किशोर और चन्द्रधर तिवारी के साथ घटनास्थल पर पहुंच
गये।
पुलिस ने मौके पर
जुटे लोगों से लाश की शिनाख्त करवाने का प्रयास किया, तो कोई भी उस लाश को नहीं पहचान सका। इसका अर्थ साफ था
लड़की आस-पास के गांव की नहीं है। नियमानुसार लाश की फोटो कराकर पंचनामें से पूर्व
तलाशी ली गयी तो लड़की के पहने जैकेट के भीतरी जेब से नोकिया मोबाइल का एक पुराना
सेट मिला जो बन्द था। मोबाइल के अलावा तलाशी में पुलिस के हाथ ऐसा कोई सूत्र नहीं
लगा जिससे लाश की पहचान कराने में आसानी होती। तलाशी के बाद घटनास्थल की समस्त
औपचारिकताएं पूरी कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम हेतु चुनार भिजवा दिया।
लड़की की लावारिश
लाश पाये जाने की सूचना चुनार थाना प्रभारी श्री सिंह पुलिस क्षेत्राधिकारी हरिनाथ
शर्मा को देने के साथ पुलिस अधीक्षक सतीश चन्द पाण्डेय को भी दे दी। वरिष्ठ अधिकारियों
से मिले दिशा निर्देश के अनुसार जांच को आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहला और जरूरी काम
था लावारिश लाश की पहचान कराना। इसके लिए पुलिस के पास लाश से मिले एक मात्र
पुराने मोबाइल सेट के अलावा कोई दूसरा सूत्र नहीं था। थाना प्रभारी ने उस मोबाइल
सिम को सर्विलांस पर लगाया तब पता चला कि वह सिम पिछले 10 दिन से इस्तेमाल में नहीं है, लेकिन उससे पहले तमाम बाते की गयी थी। काल डिटेल के
अनुसार एक नम्बर ऐसा था जिस पर रोजाना लगभग 4-5 बार बातें की गयी थी।
पुलिस को यह नम्बर सबसे
ज्यादा महत्वपूर्ण लगा और उक्त नम्बर के बारे में पता किया तब मालूम हुआ कि वह
नम्बर पड़ोसी जनपद सोनभद्र जिले के बीजपुर क्षेत्र में रहने वाले मोहम्मद अफजल का
है। चुनार थाना प्रभारी श्री सिंह ने सक्तेशगढ़ चौकी प्रभारी गोविन्द सिंह को आदेश
दिया कि बीजपुर जाकर अफजल को पूछताछ और लाश की पहचान के लिए यहां ले आये। थाना
प्रभारी के आदेश पर चौकी प्रभारी श्री सिंह बीजपुर पहुंचकर न सिर्फ अफजल के
चाल-चलन, काम-धाम के बारे में
जानकारी हासिल की बल्कि उसे अपनी मदद के लिए अपने साथ चुनार लिवा लायें।
अफजल ने
पोस्टमार्टम हाउस में जाकर लाश को देखकर पहचान लिया और बताया कि वह लाश उसके दुकान
के सामने रहने वाले ठेकेदार लल्लन सिंह की छोटी बेटी श्वेता सिंह की है। चुनार
थाना प्रभारी अखिलेश कुमार सिंह अन्जान बनते हुए पूछा, “यह बताओ तुम्हारे और श्वेता के बीच क्या सम्बन्ध है? हमारे पास इस बात के सबूत है तुम दोनों के बीच मोबाइल
पर देर-देर तक बातें हुआ करती थी। तुम जो कुछ भी जानते हो हमें सब सच-सच बता दो, श्वेता की लाश मिली है, यदि कुछ भी छुपाया या झूठ बोला तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।”
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पुलिस क्षेत्राधिकारी चुनार हरिनाथ शर्मा |
चुनार थाना प्रभारी
श्री सिंह का सवाल सुनकर अफजल सोचने लगा यदि उसने कुछ गलत या झूठ बोला तो हो सकता
है पुलिस वाले हत्या के इस मामले में उसे ही न फंसा दे इसलिए गिड़गिड़ाते हुए बोला, “आप से कुछ भी नहीं छुपाउंगा
साहब! श्वेता के घर के सामने ही मेरी दुकान है, मैं और श्वेता दोनो एक दूसरे से प्यार करते थे और तीन महीने बाद शादी करने
का निर्णय लिया था। लेकिन श्वेता ने मुझे बताया था कि उसके पिता उसे प्रताडि़त
करते है, दरअसल उन्हें हमारे प्यार
की पूरी जानकारी थी और वह इसके सख्त विरोधी थे। इसलिए उस पर तमाम तरह की बंदिशे
लगा रखी थी, इससे ज्यादा मुझे
और कुछ नहीं मालूम है....”
“तीन महीने बाद तुम
दोनो शादी करने वाले थे? अफजल के चुप होते
ही चुनार थाना प्रभारी श्री सिंह ने पूछा, “इससे पहले या बाद में क्यों नहीं?”
“यही तो सब से बड़ी
अड़चन थी साहब! इससे पहले हम शादी नहीं कर सकते थे? क्योकि श्वेता अभी 18 साल की नही हुई थी, नाबालिंग होने के कारण हम कानूनन पति-पत्नी नही बन
सकते थे। दो महीने बाद वह बालिंग हो जाती तब उसे अपनी मर्जी से शादी करने का
कानूनी हक मिल जाता इसलिए हम दोनों ने तीन महीने बाद शादी करने का निर्णय लिया
था....” अफजल जिस तरह से अपने
और श्वेता के प्रेम सम्बन्धों को स्वीकार कर रहा था उसे देखकर तो यही लगा कि अफजल
श्वेता की हत्या नही कर सकता, लेकिन पुलिस छानबीन
और पूरी जांच पड़ताल के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचती है। इसलिए अफजल के बयान की
सच्चाई पता लगाने के लिए थाना प्रभारी श्री सिंह ने पूछा, “तुम दोनों शादी करने वाले थे? क्या तुम्हारे परिवार वाले इसके लिए तैयार थे।”
“मेरे अब्बा तो न
चाहते हुए भी शादी के लिए तैयार थे,
पर
श्वेता के पिता इसके खिलाफ थे। इसलिए गुपचुप तरीके से हम शादी करने वाले थे।” अफजल से थाना
प्रभारी को यह भी पता चला कि कुछ महीने पहले शादी के निमित्त ही दो दिनों के लिए
वह श्वेता से लेकर घर से भाग गया था। भागने के बाद श्वेता के पिता बेटी की वापसी
के लिए मेरे पिता पर कई तरह के दबाव बनाये। थक हारकर दो दिन बाद हम दोनों अपने घर
वापस लौट आये थे। उसी दौरान मुझे इस बात का पता चला कि जब तक श्वेता कानूनी रूप से
बालिंग नही हो जाती तब तक वह शादी नहीं कर सकती। यदि उससे पहले शादी होती है तो वह
कानूनन अवैध कहलायेगी। कुल मिलाकर अफजल ने पुलिस को यह विश्वास दिलाने का पूरा
प्रयास किया कि वह श्वेता को दिलोजान से प्यार करता था, उसके साथ घर बसाने वाला था इसलिए वह भला अपनी माशूका
की हत्या क्यों करेगा?
अब सबसे अहम सवाल
पुलिस के समक्ष मुंह बाये यह खड़ा था यदि अफजल श्वेता का हत्यारा नही है तब दूसरा
कौन हत्या कर सकता है। चुनार के क्षेत्राधिकारी हरिनाथ शर्मा ने भी अफजल से पूछताछ
कर इस नतीजे पर पहुंचे कि एक बार फिर से श्वेता के पास से मिले सिम के काल डिटेल
को खंगाल कर दूसरे नम्बर पर बात की जाय। काल डिटेल के अनुसार अफजल के अलावा एक
नम्बर ऐसा था जिस पर श्वेता की अक्सर बाते हुई थी, उस नम्बर को मिलाया गया तब पता चला वह नम्बर श्वेता की मां मनोरमा सिंह का
है। क्षेत्राधिकारी हरिनाथ शर्मा के दिशा-निर्देशन में चुनार थाना प्रभारी श्री
सिंह ने मनोरमा सिंह से बात की तो पता चला वह अपने मायके में है, लेकिन जब उनसे बेटी श्वेता के बारे में पूछा गया तब
उन्होंने बताया कि वह भइयादूज वाले दिन अपने मायके आ गयी थी, बेटी श्वेता घर पर ही थी लेकिन 16 नवम्बर की शाम को उन्हें बताया गया कि उसके दामाद
हरिशंकर घर आये थे जो श्वेता को अपने साथ बलिया लिवा ले गये।
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थाना प्रभारी अखिलेश कुमार सिंह |
श्वेता के पिता
लल्लन सिंह इस बारे में क्या कुछ कहते है, जानने के लिए थाना प्रभारी अखिलेश कुमार सिंह उनका फोन लगाया तब उन्होंने
भी यही बताया कि उनकी बेटी श्वेता अपने जीजा के साथ बलिया गयी है। थाना प्रभारी ने
लल्लन सिंह को यह जानकारी नहीं दी कि उन्हें उनकी बेटी की लाश मिली है। लल्लन सिंह
से उनके दामाद हरिशंकर का मोबाइल नम्बर लेकर बात करना चाहा तो हरिशंकर का वह नम्बर
स्विच आफ मिला। थाना प्रभारी श्री सिंह ने सर्विलांस के माध्यम से हरिशंकर के
नम्बर का काल डिटेल निकलवाया तब पता चला कि हरिशंकर और उसके श्वसुर लल्लन सिंह के
बीच 16 नवम्बर को दोपहर बाद से
लेकर 17 नवम्बर के भोर के बीच 5-7 बार बाते हुई थी, 2-3 बार तो काफी देर तक बातें की गयी थी। दूसरी जो सबसे महत्वपूर्ण और चौकाने
वाली बात सामने आयी वह यह था कि हरिशंकर के मोबाइल का लोकेशन 16 नवम्बर के आधी रात के वक्त सक्तेगढ़-चुनार के बीच बता
रहा था। उस समय दो बार श्वसुर और दामाद के बीच बातें भी हुई थी इसका मतलब साफ था
कि हरिशंकर की मौजूदगी आधी रात के वक्त सक्तेशगढ़ इलाके में थी। यह भी स्पष्ट हो
गया कि श्वेता के पिता लल्लन सिंह को घटना के बारे में काफी कुछ सच्चाई पता है पर
वह अपना मुंह बन्द रखे हुए है।
थाना प्रभारी श्री
सिंह अब तक की हुई जांच रिपोर्ट से क्षेत्राधिकारी हरिनाथ शर्मा के साथ पुलिस अधीक्षक
सतीशचन्द पाण्डेय को अवगत कराया फिर पुलिस अधीक्षक श्री पाण्डेय के निर्देश पर
हत्याकाण्ड के खुलासे के लिए लल्लन सिंह को पूछताछ के लिए पुलिस हिरासत में ले
लिया। थाने में पुलिस क्षेत्राधिकारी हरिनाथ शर्मा की मौजूदगी में थाना प्रभारी
श्री सिंह ने लल्लन सिंह से पूछताछ करने लगे तब लल्लन सिंह पहले अपने आपको इस घटना
से पूरी तरह निर्दोष बताते हुए यही कहा कि वह अपनी बेटी श्वेता को 16 नवम्बर की रात 8 बजे के लगभग अपने दामाद हरिशंकर के साथ उसकी बड़ी बहन के पास बलिया भेजा
था। जहां उसकी सगाई की बात चल रही थी और लड़के वाले श्वेता को देखने आने वाले थे।
लेकिन रास्ते में क्या कुछ हुआ इसके बारे में उन्हें कोई भी जानकारी नहीं है।
लेकिन जब थाना
प्रभारी श्री सिंह ने लल्लन सिंह को 16-17 नवम्बर देर रात
उनके और दामाद के बीच मोबाइल पर हुई बातचीत का रिकार्ड दिखाया तो लल्लन सिंह का
चेहरा फक् पड़ गया और जुबान पर जैसे ताला लग गया। लेकिन पुलिस कहां चुप बैठने वाली
थी जरा सी सख्ती दिखाते ही लल्लन सिंह को टूटते देर नहीं लगी फिर तो उन्होंने
स्वीकार कर लिया कि अपने सम्मान और इज्जत की खातिर अपनी ही फूल जैसी किशोर बेटी को
अपने दामाद के साथ मिलकर मौत की नींद सुला दी।
अंततः पुलिस की
जांच पड़ताल, अफजल द्वारा पुलिस
को दी गयी जानकारी व लल्लन सिंह के बयान के आधार पर श्वेता की हत्या की जो कहानी
सामने आई वह कुछ इस प्रकार बतायी जाती हैं-
प्रेम न देखे
जात-कुजात की तर्ज पर अफजल श्वेता का प्यार परवान चढ़ता ही जा रहा था। लल्लन सिंह
ने बेटी को काफी समझाया लेकिन श्वेता पर समझाने-बुझाने का कोई भी असर नहीं पड़ रहा
है और अब भी वह अफजल से चोरी-चोरी मोबाइल से बातें किया करती है। एक दिन वह खुद
मोबाइल पर श्वेता को अफजल से बातें करते सुन लिया तो उनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच
गया। गुस्से में विफरते हुए बोले,
“तुझे प्यार करने के लिए वह मुसलमान कसाई का बेटा ही मिला
था, गैर विरादरी के लड़के के
साथ भागकर पहले ही हमारी बदनामी करा चुकी है, अब अगर कोई नया गुल खिलाया तो याद रखना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। इज्जत
की खातिर मैं किसी भी हद तक जा सकता हूं।” उस दिन श्वेता को पिता की
खूब जली-कटी तो सुननी ही पड़ी, ऊपर से मार भी अलग
से खानी पड़ी।
लल्लन सिंह बेटी
श्वेता के दिल-दिमाग से उसके प्रेमी अफजल का भूत लाख जतन करने के बाद भी नहीं उतार
पाये। श्वेता ने सोच लिया था 18 साल पूरा होने के
बाद प्रेमी अफजल के साथ शादी कर लेगी। पिता को बेटी श्वेता की जिद का भान था, उन्हें मालूम था कि श्वेता जिस चीज पर एक बार अड़ जाती
है उसे पूरा करके ही दम लेती है। आखिरकार श्वेता को रास्ते पर लाने के लिए लल्लन
सिंह बलिया निवासी अपने दामाद हरिशंकर से इस बारे में बात की। दामाद हरिशंकर अपने
ससुर लल्लन सिंह से काफी प्रभावित और उनके अहसानों तले दबे थे, दरअसल श्वसुर लल्लन सिंह ने अपनी पहचान के बलबूते
हरिशंकर को भी ठेकेदारी के लाइन में सेट करा दिया था। ससुर की कृपा से हरिशंकर को
भी सोनभद्र के अनपरा स्थित कुछ कम्पनियों के ठेके मिलने लगे, इसलिए ससुर की समस्या के निवारण में अपना सहयोग देने
का वादा कर दिया। ससुर और दामाद के बीच कई सिटिंग की बातचीत से सब कुछ तय हो गया
कि श्वेता के संग क्या करना है, अब अपने प्लान को
अमलीजामा पहनाना शेष रह गया था। संयोग से 16 नवम्बर का दिन सबसे उपयुक्त लगा क्योंकि शनिवार 15 नवम्बर को दोपहर बाद श्वेता का बड़ा भाई राकेश रविवार
को होने वाली एक कम्पटीशन परीक्षा देने जबलपुर चला गया। श्वेता की मां मायके में
थी। घर पर काम करने वाली नौकरानी को 14 नवम्बर को ही दो
दिन के लिए छुट्टी दे दी गई थी।
इस बीच दीपावली
वाले दिन श्वेता कई घण्टे घर से गायब रही, श्वेता घर लौटी तो उसके पिता ने उस दिन उससे ज्यादा सवाल जवाब नहीं किया
बल्कि इस बारे में अपने दामाद हरिशंकर से फोन पर बात कर सारी बातें बता दी। इसके
बाद भाईदूज वाले दिन श्वेता की मां अपनी भाईयों को मिठाई खिलाने मायके चली गयी।
प्लान के अनुसार हरिशंकर अपने एक साथी के साथ जीप से 16 नवम्बर को शाम चार बजे के लगभग बलिया से अपनी ससुराल
बीजपुर पहुंचा। हरिशंकर के मंसूबों से अंजान श्वेता खुले दिल से अपने जीजा का
स्वागत सत्कार किया।
तीन-चार घण्टे
ससुराल में बिताने के बाद हरिशंकर बलिया वापस जाने के लिए निकलने लगा तब लल्लन
सिंह ने बेटी श्वेता से कहा, “ऐसा करो तुम अपने
जीजा जी के साथ बलिया चली जाओं वहीं पर बड़ी दीदी के पास दो-चार दिन रहना, तुम्हारी दीदी ने एक जगह शादी की बात चलाई है इसलिए
लड़के वाले तुम्हें देख लेंगे तब तुम यहां आ जाना...”
श्वेता को पता था
यदि उसने जीजा के साथ जाने से इन्कार किया तो अभी पिता लाल-पीले हो जायेंगे, बेहतर यही होगा कि चुपचाप जीजा के साथ चली जाय। आखिर
में तो उसने जो निर्णय लिया है वही करेगी। श्वेता बिना किसी विरोध के अपने जीजा
हरिशंकर के साथ उनकी गाड़ी से बलिया के लिए रवाना हो गयी। उसने स्वपन में भी
कल्पना नहीं की थी कि जिस जीजा के साथ वह अपनी बड़ी बहन के घर जाने के लिए निकल
रही है वही जीजा उसका काल बन जायेगा।
श्वेता को साथ लेकर
हरिशंकर रात साढ़े आठ बजे के आस-पास बीजपुर से बलिया के लिए रवाना हुआ तो सीधे और
कम दूरी वाले मुख्य मार्ग से जाने के बजाय लम्बी दूरी और पहाड़ी सूनसान रास्ते को
चुना। आधी रात के लगभग सक्तेशगढ़ इलाके में स्थित पर्यटन स्थल सिद्धनाथ की दरी के
पास जब हरिशंकर की जीप पहुंची तब एक बहाने से गाड़ी वहीं रोक दी, फिर श्वेता को सिद्धनाथ की दरी के मनोहारी दृश्य
दिखाने के बहाने गाड़ी से उतारकर थोड़ी दूर ले गया। जबकि श्वेता ने बोला भी कि रात
में क्या दिखाई देगा पर उसने कहा कि दो मिनट देख लेते है कुछ नहीं समझ में आयेगा
तो वापस आ जायेंगे। जीप से उतरी श्वेता फिर दोबारा जीप में नही लौटी। हरिशंकर अपने
साथी की मदद से श्वेता को दबोचकर गला दबाना शुरु कर दिया, श्वेता कुछ देर छटपटाती रही फिर शांत हो गयी। श्वेता
के शांत होते ही उसका शव जंगली झाडि़यों के बीच फेंक दिया। चलने से पूर्व हरिशंकर
ने पत्थर से उसके सर और माथे पर कई वार कर चेहरा बिगाड़ने का प्रयास किया पर रात
के अंधेरे में वह पूरी तरह से चेहरे को बिगाड़ नहीं पाया। इतना ही नहीं हरिशंकर ने
जान-बूझकर श्वेता का वह सिम जिससे श्वेता चोरी छिपे अफजल से बात किया करती थी जिसे
उसके पिता ने एक सप्ताह पहले ही अपने कब्जे में ले लिया था और चलते समय उसे दामाद
को थमा दिया था। हरिशंकर ने उस सिम को एक पुराने नोकिया सेट के साथ प्लांट कर उसके
जैकेट में छिपाकर रख दिया था ताकि पुलिस जब जांच करें तो सीधे शक अफजल पर जाय।
श्वेता का शव ठिकाने लगाने के बाद हरिशंकर चुनार होते हुए वाराणसी के रास्ते बलिया
रवाना हो गया।
गुनाह स्वीकार कर
लेने के बाद पुलिस ने श्वेता की हत्या के आरोप में लल्लन सिंह के अलावा दामाद
हरिशंकर और उसके दो अज्ञात साथियों के विरूद्ध भादवि की धारा 302, 201 के अन्तर्गत मुकदमा अपराध
संख्या 829/2012 पंजीकृत कर 22 नवम्बर 2012 को लल्लन सिंह को
अदालत में प्रस्तुत किया जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।
लेकिन पुलिस हरिशंकर सिंह को पकड़ने के लिए उसके मिलने के सभी संभावित ठिकानो पर
दबिश दी तो वह फरार मिला।
पुलिस के बढ़ते
दबाव के कारण लल्लन सिंह के जेल भेजे जाने के एक हफ्ते बाद हरिशंकर ने भी मीरजापुर
न्यायालय में आत्म समपर्ण कर दिया जहां से उसे भी जेल भेज दिया गया। बाद में 14 दिसम्बर को पुलिस ने दो दिन के लिए हरिशंकर को
रिमाण्ड पर लेकर उससे हत्या के दौरान प्रयोग में लायी गयी गाड़ी और उसके दूसरे
साथी का नाम-पता जानने का प्रयास किया लेकिन कोई विशेष सफलता नहीं मिली। हरिशंकर
ने अपने वकील के माध्यम से 9 जनवरी 2013 को जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में अपनी जमानत
का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया लेकिन सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष के वकील के
विरोध के कारण न्यायाधीश महोदय ने जमानत अर्जी खारिज कर दी। श्वेता के पिता लल्लन
सिंह की जमानत पहले ही खरिज हो चुकी है।
(कथा पुलिस सूत्रों
एवं मीडिया श्रोतों पर आधारित है)
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