06 February, 2013

"जब अपने हुए पराये"


डिम्पल बेहद खूबसूरत युवती थी, इतनी खूबसूरत कि उसे देखने वाला हर शख्स पहली ही नजर में उस पर फिदा हो उठता था। गली मोहल्ले का हर युवक उसके आगे प्रेम प्रदर्शन करने को बेकरार रहते थे। डिम्पल मूलरूप से उ0प्र0 के वाराणसी जनपद के चौबेपुर थाना क्षेत्र के पुरनपट्टी गाँव निवासी बलवन्त मिश्र की बेटी है। अपने परिवार की सबसे लाडली डिम्पल उन दिनों इंटर की कर रही थी, पूरा कालेज उसके चेहरे से छिटकती आभा का दीवाना था। वहां शायद ही कोई ऐसा युवक हो, जिस पर उसकी खूबसूरती का जादू न चला हो, शायद ही कोई ऐसा हो जो उससे दोस्ती करने को लालायित न हो। मगर डिम्पल को तो जैसे उन युवकों के बारे में सोचने तक की फुर्सत नहीं थी, वह तो बस अपने आप में ही मग्न रहने वाली युवती थी, अलबत्ता अपनी खूबसूरती पर उसे नाज जरूर था, वह जानती थी कि वह बेहद खूबसूरत है इतनी खूबसूरत कि जिस युवक की तरफ नजर भरकर देख ले, वही उसका दीवाना हो जाये। मगर अभी तक उसे कोई युवक पसंद नहीं आया था, वह अपने सपनों के राजकुमार के इंतजार में पलकें बिछाए बैठी थी।
डिम्पल के पिता बलवन्त मिश्र लगभग 30 साल पहले काम धन्धे की तलाश में मुम्बई का रूख किया। मुम्बई के उपनगर शायन में पहले किराये का एक कमरा लेकर काम की तलाश की जल्द ही उन्हें कपड़ा बनाने वाली एक मिल में काम मिल गया। उनके परिवार में पत्नी के अलावा तीन बच्चे थे। सबसे बड़ा बेटा हरिश्चन्द मिश्र उसके बाद डिम्पल और उससे छोटा बेटा धनन्जय मिश्र है। सन् 1992 में जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया था, तब पूरे देश में लूट-पाट और आगजनी की घटनायें हुई थी। उस दौरान शायन का इलाका भी दंगायियों का भेंट चढ़ गया था। दंगायियों ने बलवन्त मिश्र के मकान को जला दिया था। उस समय डिम्पल की उम्र 5-6 साल के लगभग थी। दंगे के बाद 1998 में डिम्पल के माँ की मौत हो गयी। मौत के बाद डिम्पल का बड़ा भाई हरिश्चन्द मिश्र अपने पैतृक गाँव लौट आया और वहीं अपने लिए काम तलाश लिया फिर तो यही का होकर रह गया।
माँ की मौत और बड़े भाई के गाँव चले जाने के बाद बलवन्त मिश्र ने भी शायन का इलाका छोड़कर ठाणे जिले के उल्लासनगर में कमरा लेकर रहने लगे। इस समय बलवन्त के साथ बेटी डिम्पल मिश्रा और छोटा भाई धनन्जय मिश्र साथ रह रहे थे। कुछ साल बाद बलवन्त मिश्र जिस फैक्ट्री में काम करते थे वहाँ से रिटायर हो गये, तब आय के साधन भी सीमित हो गये। पढ़ाई पूरी करने के बाद डिम्पल अपने लिए नौकरी की तलाश करने लगी। संयोग से एक साल बाद डिम्पल को रिलायंस कम्पनी के टेलीकालिंग विभाग में काम मिल गया। डिम्पल का काम था रिलायंस के पोस्ट पेड मोबाईल फोन धारक ग्राहक जिनका बिल जमा नहीं हुआ होता उन्हें फोनकर बकाया बिल जमा करने के लिए उन्हें याद कराना तथा उनसे बकाया जमा करवाना। यही उसकी
मुलाकात विपिन कुमार मिश्र से हुई।
विपिन मूलरूप से वाराणसी से सटे भदोही (संत रविदास नगर) जिले के गोपीगंज थाना क्षेत्र के मूलापुर गाँव निवासी है। नागेन्द्र नाथ मिश्र व कुसुम मिश्र का मझले बेटे विपिन को शुरू से ही फोटोग्राफी का शौक था और वह एक कुशल फोटोग्राफर बनने के साथ इस क्षेत्र में अपनी एक अलग ही पहचान बनाना चाहता था। लेकिन भदोही जैसे छोटे शहर में यह नामुमकिन था। लिहाजा उसने मुम्बई में रहकर अपनी काबिलियत को निखारने का फैसला किया, इसलिए लगभग चार वर्ष पुर्व अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद काम की तलाश में अपने एक परिचित रिश्तेदार के पास मुम्बई चला गया था।
मुम्बई में रिश्तेदार की मदद से ही विपिन को एक प्राइवेट पफर्म में काम मिल गया, तब वह अपने लिए अलग किराये पर एक खोली लेकर वहीं रहने लगा। घर वालों से बात करने के लिए विपिन को मुम्बई (महाराष्ट्र) का एक लोकल मोबाइल की आवश्यकता पड़ी, तब उसने जहाँ काम कर रहा था उनकी मदद से रिलायंस कम्पनी का एक पोस्टपेड सेट ले लिया। अब विपिन को अपने घर मूलापुर या भदोही में या किसी परिचित सम्बन्धी, रिश्तेदार से बात करना होता तो वह उसी रिलायंस के फोन से बात करता। मार्च 2009 में होली के मौके पर विपिन छुट्टी लेकर अपने घर मूलापुर आ गया, घर आने की जल्दी में विपिन अपने मोबाइल का बिल भरना भूल गया। एक दिन विपिन के फोन पर रिलायंस कम्पनी में कार्यरत एक महिला ने फोनकर बकाया जमा करने का अनुरोध किया। विपिन को मुम्बई वापस लौटने में 15 दिन लग गये, इस बीच उस महिला ने दो-तीन बार फोन द्वारा बकाया जमा करने का अनुरोध किया था। मुम्बई पहुचने के बाद विपिन ने सबसे पहले फोन का बकाया बिल जमा किया। यह लगभग छः-सात साल पहले की बात है।

फोन का बकाया बिल जमा करने के साथ ही विपिन को पता चला कि जिस महिला ने बिल जमा करने के लिए बार-बार उससे अनुराध् किया था, उसका नाम डिम्पल मिश्र है और वह मूलरूप से उसके पडोसी जनपद वाराणसी के चौबेपुर क्षेत्र की रहने वाली है। एक प्रान्त और पड़ोसी जिलों के अलावा एक ही जाति के होने के नाते दोनों के बीच बातचीत के दौरान ही दोस्ती हो गई, दोस्ती के बाद दोनों अक्सर अपने कामों से खाली होने के बाद देर-देर तक फोन पर बाते किया करते। फोन से शुरू हुई बातचीत का सिलसिला पहले दोस्ती और फिर प्यार में बदल गयी, जल्द ही दोनों को लगने लगा कि वे दोनों एक दूसरे को पसन्द करने लगे है। अब विपिन और डिम्पल जब अपने काम से छुट्टी पाते तब दोनों किसी न किसी होटल, रेस्तरा या पार्क में बैठकर घण्टों गपशप के साथ ही एक दूसरे से दिल की बातें किया करते। आगे चलकर एक समय वह भी आ गया जब विपिन डिम्पल से मिलने सीधे उसके घर पहुचने लगा।
विपिन के घर आने-जाने से बलवन्त मिश्र की अनुभवी नजरों ने ताड़ लिया कि उनकी बेटी डिम्पल और विपिन दोनों एक दूसरे को पसन्द करने लगे है। एक दिन बातों ही बातों में बलवन्त ने बेटी डिम्पल से इस बारे में चर्चा की तो उसने पिता से कुछ भी नहीं छिपाये बिना साफ-साफ बता दिया कि वह विपिन से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है, विपिन भी उसे चाहता है। डिम्पल से ही उसके पिता बलवन्त को पता चला कि विपिन जल्द ही अपने घर जाकर माँ-बाप से शादी की बात करेगा, फिर उनकी अनुमति मिलने के बाद हम दोनों शादी कर लेंगे।
बेटी की बातों से उसके पिता बलवन्त मिश्र की समझ में आ गया कि उनकी बेटी प्रेम की राह में काफी आगे तक बढ़ चुकी है। विपिन देखने सुनने में हैण्डसम और उनके मूलगृह जनपद वाराणसी के पड़ोसी जिले का ही निवासी था। उससे भी बड़ी बात यह थी कि विपिन उन्हीं की बिरादरी का था, जबकि आज की तमाम लड़कियां गैर विरादरी और मजहब के लड़के से प्यार कर बैठती है। बलवन्त को बेटी डिम्पल के प्यार में कोई बुराई नजर नहीं आयी, हाँ उन्होंने अपनी बेटी को इस बात के लिए सचेत जरूर कर दिया कि वह प्यार में हमेशा अपनी मर्यादा का ध्यान रखें, मर्यादा से बाहर ऐसा कोई काम न करें जिससे बाद में उन्हें शर्मिदा होने के साथ पछताना भी न पड़े।
कहते है प्यार पर किसी का जोर नहीं चलता। ऐसा ही कुछ डिम्पल और विपिन के साथ भी हुआ। संयोग से एक दिन डिम्पल घर में अकेली थी तभी विपिन वहां पहुंच गया। डिम्पल को घर में अकेली देख उसने कमरा बंदकर डिम्पल को अपनी बांहों में भर लिया और उसके खिले हुए यौवन को सहलाने लगा। डिम्पल हड़बड़ा उठी, उसने विपिन का हाथ हटाते हुए धीरे से कहा, “ये क्या कर रहे हो?”
“नहीं.... नहीं.....।” डिम्पल विपिन की आगोश में से निकलने का प्रयास करते हुए बोली, “शादी से पहले यह सब पाप है।”
“आज मुझे मत रोको डिम्पल...” विपिन समझाते हुए बोला, “शादी तो हम करने ही वाले है, तो फिर यह पाप कहा हुआ।”
विपिन के समझाने का कुछ असर डिम्पल पर पड़ा फिर भी डिम्पल ने खुद को छुड़ाने की दिखावटी कोशिश की, मगर कामयाब नहीं हुई। विपिन ने बातों ही बातों में उसका कुर्ता उतार फेंका और उसके मांसल शरीर को जहां-तहां चूमने लगा। डिम्पल के लिए यह पहला पुरुष स्पर्श था वह बौरा सी गई, उसके होंठों से आनंदतिरेक सिसकारियां निकलने लगीं, फिर तो वह विपिन के बदन से लता की भांति लिपट गई। विपिन उसके शरीर की गोलाइयां नापने लगा।
जल्दी ही उनके तन के तमाम कपड़े इधर-उधर कमरे में बिखर चुके थे और वे दोनों जन्मजात नग्नावस्था में एक दूसरे से गुंथे पड़े थे। फिर कमरे में एक तूफान आया और गुजर गया। इसके बाद कमरे में पहले की सी शांति छा गई तथा दोनों के चेहरों पर असीम तृप्ति के भाव दृष्टिगोचर हो रहे थे। एक बार दोनों प्रेमियों को नैसर्गिक शारीरिक सुख का स्वाद मिला तो विपिन दोबारा एकान्त मिलने पर उसी सुख को भोगने को लालायित हो उठता था।
इधरप्रेम में वसीभूत होकर एक बार जो गलती डिम्पल ने को थी उसे पिता की चेतावनी याद आ गयी। इसलिए उसने विपिन को साफ मना कर दिया। हालांकि विपिन ने कई बार प्रयास किया लेकिन हर बार डिम्पल प्यार से समझाकर उसे टाल देती। इस बीच एक हफ्ते के लिए विपिन अपने घर मूलापुर गया वहाँ उसने अपने पिता नागेन्द्र नाथ मिश्र से अपने और डिम्पल के प्रेम की बात बताकर शादी की अनुमति माँगी लेकिन उसके पिता इस शादी के लिए राजी नहीं हुए। दरअसल पिता नागेन्द्र नाथ मिश्र बेटे के लिए किसी पैसे वाले घर की बहू लाने का ख्वाब देखे थे और विपिन बिना दहेज की दुल्हन लाकर पिता के अरमानों पर पानी पफेरना चाहता था। एक हफ्ता घर पर बिताने के बाद विपिन मुम्बई वापस पहुँचा और डिम्पल से बहाना बना दिया कि उसकी माँ उन दोनों की शादी के लिए राजी हो गई है लेकिन उसके पिता और बड़े भाई अभी नहीं मान रहे है, माँ ने भरोसा दिलाया है कि जल्द ही वह पिताजी को मना लेगी। डिम्पल शादी से पूर्व शारीरिक सम्बन्ध बनाने की गलती दोहराना नहीं चाहती थी लेकिन विपिन था कि वह डिम्पल से बार-बार उस सुख की कामना करता, लेकिन डिम्पल हर बार उसे ना कर देती। उसने तो यहाँ तक साफ-साफ कह दिया कि शादी से पहले जिस्मानी सम्बन्ध नहीं बनायेगी।
डिम्पल की जिद को देखकर विपिन ने एक दिन डिम्पल को साथ लेकर उल्लहास नगर के प्रसिद्घ दुर्गा मन्दिर जा पहुँचा और वहीं माँ दुर्गा को साक्षी मानकर डिम्पल से शादी कर ली। डिम्पल और विपिन दोनों ने एक दूसरे के गले में माला पहनाया, विपिन ने डिम्पल की मांग भरी और गले में मंगलसूत्र भी पहनाया।
मन्दिर में हुई शादी की बात डिम्पल के पिता बलवन्त मिश्र को पता चली तो वह विपिन को समझाते हुए बोले, “देखो बेटा तुमने मेरी बेटी से मन्दिर में शादी तो कर ली। अब तुम्हे इस शादी की लाज रखनी होगी। जल्द से जल्द अपने माँ-बाप को राजी कर तुम्हें डिम्पल को अपने घर ले जाना होगा, वह भी अपने सास-श्वसुर और बड़ो से मिलकर उनका आशीर्वाद ले लें। इसके लिए तुम पिता से बात कर लो तो मैं तुम दोनों के लिए ट्रेन का टिकट बुक करा दॅू....।”
वक्त गुजरता रहा लेकिन डिम्पल का मूलापुर स्थित अपनी ससुराल जाने का कोई संयोग नहीं बन पाया, जब कभी वह ज्यादा जोर डालती तब विपिन समझाते हुए बोल उठता, “तुम क्यों चिन्ता करती हो, मैंने मन्दिर में तुमसे शादी कर ली है! घर वालों को यह बात पता है। मैं चाहता हूँ जब मेरे बाबूजी बोले कि बहू को घर लिवा लाओं तब ले चलूंगा तो बात कुछ और होगी। यदि ऐसे ही तुम्हे लेकर घर पहुँचा गया तो हो सकता है गुस्से में बापू तुम्हें या मुझे कुछ अनाप-सनाप बोल दिया तो मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा और अनायास ही बाप-बेटे में झगड़ा शुरू हो जायेगा। मैं अभी इसी झगड़े को टाल रहा हूँ....
धीरे-धीरे एक साल का समय बीत गया। डिम्पल के पिता बलवन्त जब भी इस बारे में विपिन से बात करते वह यही कहता मैंने अपने घर वालों से बता दिया है कि मैंने डिम्पल से मन्दिर में शादी कर ली है इसलिए अब चिन्ता की कोई बात नहीं है। जब तक मेरे पिता और बड़े भाई डिम्पल को बहू रूप में स्वीकार नहीं करेंगे मैं उसे अपमानित कराने के लिए अपने घर नहीं ले जाऊंगा। मेरी माँ ने मुझे भरोसा दिलाया है कि वह देर सबेर पिता को मना लेगी और मुझे फोन करेगी तब मैं डिम्पल को साथ ले जाऊंगा। इस बीच यह परिवर्तन जरूर हुआ कि विपिन मुम्बई के जिस किराये वाली खोली में रह रहा था उसे छोड़कर अपने श्वसुर बलवन्त मिश्र के ही मकान में आकर रहने लगा।
इसी बीच एक दिन डिम्पल ने विपिन से कहा, “तुम्हें पता है मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ। मेरा यह दूसरा महीना चल रहा है ... अब तो अपने घर वालों से बात कर लों”
डिम्पल द्वारा गर्भवती होने की बात सुन विपिन खुशी से झूमते हुए बोल उठा, “जब शादी की है तो बच्चा भी होगा ही इसमें इतना घबराने वाली क्या बात है...”

लेकिन डिम्पल को विपिन की बातों से तसल्ली नहीं हुई वह पुनः बोल उठी, “कुछ भी हो विपिन! एक बार तुम फिर से अपने पिता से बात करो और उन्हें बता दो कि तुम पिता बनने वाले हो...”

“ठीक है... ठीक है... जैसा तुम कह रही हो वह भी कर लूंगा, लेकिन इस बात को लेकर तुम्हें ज्यादा परेशान होने की आवश्यकता नहीं है।” बात टालने की गरज से विपिन ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
विपिन की बातों से डिम्पल तो आश्वस्त हो गयी। पर विपिन को तो पता था कि उसके माँ-बाप कभी भी इस शादी को स्वीकार नहीं करेंगे और यही हुआ भी। डिम्पल के सास-श्वसुर की ओर से अभी तक बलवन्त को ऐसा कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला था जिसे लेकर वह बेटी के सुरक्षित भविष्य की ओर से निश्चित हो सकें। फिर उन्होंने इस बारे में स्वयं विपिन के पिता से बात करने का निर्णय लिया और सन् 2011 में होली के मौके पर जब अपने पैतृक गाँव वाराणसी स्थित चौबेपुर पहुंच गये. गाँव पहुचने के बाद अपने एक परिचित रिश्तेदार के माध्यम से विपिन के घर वालों से बात भी की लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी। विपिन के पिता नागेन्द्र नाथ मिश्र डिम्पल को बहू रूप में स्वीकार करने के एवज में भारी-भरकम दहेज की माँग कर दी, जिसे पूरा करना बलवन्त मिश्र के बूते के बाहर की बात थी। बेटी के भविष्य को लेकर चिन्तित बलवन्त मिश्र तनाव में रहने लगे। इसी तनाव भरी दिनचर्या में बलवन्त मिश्र को एक दिन दिल का दौरा पड़ गया, इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन 8 अप्रैल 2011 को उनकी मृत्यु हो गई। अब डिम्पल का एक मात्रा सहारा उसका पति विपिन था।
एक तरफ विपिन अपनी झूठी कसमों और वादों से डिम्पल को भरोसा दिलाता रहा और दूसरी तरफ अपने गांव मूलापुर में सेहरा बांधने की तैयारी में जुटा रहा। दरअसल गांव में उसके मां-बाप ने उसकी अन्यत्र शादी तय कर दी थी। डिम्पल की डिलवरी करीब थी इसके बावजूद विपिन घर आने के फिराक में था।
डिम्पल के पिता बलवन्त की मौत हुए अभी कुछ ही दिन हुए थे कि अचानक एक दिन विपिन नें कहा, “मेरे दादा जी की तबियत बहुत खराब है, वह मुझे देखना चाहते है। तुम्हारी डिलवरी भी नजदीक है इसलिए गांव जाना तो मुश्किल है?”
“दादा जी की तबियत खराब है?” डिम्पल चैक उठी। फिर कुछ सोचते हुई बोली, “दादा की तबियत खराब है तो आप निश्चिंत होकर घर जाए, यहां उसका ख्याल रखने वाले हैं।” डिलवरी करीब होने के बावजूद उसने विपिन को जबरदस्त भेज दिया।
भाग्य की विडम्बना देखिये कि जिस पति ने उसके साथ जीने मरने कसमें खायी थी, आज वही पति उसे जीवन का सबसे बड़ा धोखा देने जा रहा था। जाते समय वह डिम्पल से यह कहकर गया था की 10-15 दिन में लौट आयेगा, लेकिन लौटा नहीं। 5 मई 2011 को विपिन की शादी भी सम्पन्न हो गई। पिता की मौत के 24 दिन बाद 2 मई 2011 को डिम्पल ने उल्हासनगर के एक नर्सिंगहोम में फूल सी कोमल एक बेटी को जन्म दिया और उसका नाम रखा आंचल।
वक्त गुजरता रहा डिम्पल इस भरोसे एक-एक दिन बिता रही थी कि किसी विपिन के माता-पिता उसे अपनी बहू स्वीकार कर लेंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। विपिन अपनी दूसरी शादी के बाद भी डिम्पल के पास आता-जाता रहा। लेकिन कहते है झूठ ज्यादा दिन नहीं छिपता। कुछ महीने बाद ही डिम्पल को पता चल गया कि उसके पति ने धोखा देकर गाँव में दूसरी शादी कर ली है। डिम्पल इस बारे में विपिन से बात करती तो वह अपनी दूसरी शादी की बात को नकार जाता। इस तरह जैसे-तैसे दिन बीते इस बीच अचानक विपिन बिना कुछ कहे अपने घर मूलापुर लौटा तो फिर पलटकर मुम्बई का रुख नहीं किया। यदि गया भी तो डिम्पल से सम्पर्क नहीं किया।
डिम्पल मोबाइल पर विपिन से सम्पर्क करती तो भी बड़ी मुश्किल से तीन-चार बार के प्रयास से उससे बात होती। विपिन के इस व्यवहार से डिम्पल की जिन्दगी में अंधेरा छा गया, उसे उम्मीद थी कि विपिन देर-सबेर उसे अपने साथ घर पर रखेगा लेकिन जब उसे सच्चाई का पता चल गया कि विपिन के घर पर उसकी ब्याहता पत्नी उसके साथ रह रही है तो उसकी यह उम्मीद भी टूट गई। तब उसने विपिन के विरुद्ध मुम्बई के उल्हास नगर के महिला शिकायत विभाग में 11 सितम्बर 2011 को शिकायत दर्ज कराने के साथ ही अपनी बेटी आंचल को पिता का नाम दिलाने के लिये पुलिस से भी न्याय की गुहार की, लेकिन पुलिस से उसे कोई मदद नहीं मिली।
पुलिस से निराश होने के बाद ही डिम्पल हताश नहीं हुई और उसने अपनी लड़ाई लड़ने के नए रास्ते के रूप में आधुनिक सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक को चुना। फेसबुक वही सोशल नेटवर्क है जिस पर संसद में यह बहस छिड़ी कि यह नेटवर्क सिर्फ मनोरंजन और अफवाह फैलाने का साधन बन चुका है। लेकिन डिम्पल ने इसे गलत साबित कर दिया।
इस नये रास्ते का अमल करके डिम्पल ने अपने पक्ष में जनमत इकट्ठा करने के लिये अपना फेसबुक अकाउंट बनाया। फिर फेसबुक के माध्यम से पूर्वांचल के तमाम फेसबुक युजर्स तक अपनी पीड़ा पहुंचा दी। देखते ही देखते पूर्वांचल के वाराणसी, जौनपुर, भदोही, इलाहाबाद, मीरजापुर, सोनभद्र आदि के तमाम फेसबुक युजर्स सीधे डिम्पल से जुड़ गये और डिम्पल का हौसला बढ़ाते हुये अपने-अपने फेसबुक पर लिखा कि वह संघर्ष करे, इस संघर्ष में हम सब उसके साथ हैं। अपने पूर्वांचल के सभी फेसबुक युजर्स मित्रों से उनकी राय ली और फिर अपनी बेटी को पिता का नाम दिलाने फेसबुक पर अपनी ससुराल आने की घोषणा कर अपने मित्रों की राय ली और सहयोग का आश्वासन मिलते ही निकल पड़ी अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए।
30 नवम्बर को मुम्बई से फ्लाईट पकड़कर वाराणसी के बाबतपुर हवाई अड्डे पर उतरी। जहां पहले से उसके तमाम फेसबुक युजर्स मित्रा और भदोही के सामाजिक संगठनो से जुड़े लोग मौजूद थे। इन सभी ने डिम्पल का हवाई अड्डे से बाहर आने के बाद फूल मालाओं से स्वागत किया। स्वागत के बाद कई गाडि़यों के काफिले के रूप में डिम्पल शाम 4 बजे के लगभग वाराणसी पहुंची, वहां उसके तमाम प्रशंसक उसे साथ लेकर सीधे मूलापुर गांव के ग्राम प्रधान शिवश्याम यादव के आवास पर पहुंचे और उन्हें सारी बात बताकर उनसे सहयोग करने को कहा तो वह तुरन्त तैयार हो गये। शिवश्याम ने डिम्पल को जनपद की बहू का दर्जा दिया, महिलाओं ने उसकी आरती उतारकर स्वागत किया।
प्रधान शिवश्याम के घर से पूरे गाजे-बाजे के साथ गोद में बेटी आंचल को लिये दुल्हन बनी डिम्पल के कदम अपनी ससुराल की ओर बढ़े तो हजारों कदम भी उसी ओर उठकर एक अनोखी बारात का रूप ले लिया। यह एक ऐसी बारात थी जो पति के अन्याय की शिकार हुई अबला अपना हक मांगने के लिए मुम्बई से मूलापुर गांव आई थी।
आगे-आगे ढोल-तासे पर झूमते बारातियों से घिरी डिम्पल जब अपने पति विपिन के दरवाजे पर पहुंची। लेकिन पहले से भनक लग जाने के कारण घर के सभी सदस्य बाहर से ताला लगाकर फरार हो गये। ससुराल में किसी को न पाकर डिम्पल वहीं ध्रने पर बैठ गई तो जिला प्रशासन के भी हाथ-पांव फूल गये और आनन-फानन में डिम्पल को मनाकर वहां से हटाया और भरोसा दिलाया कि अगले दिन उसके मामले में प्रशासन अपने स्तर से यथोचित कार्यवाई करेगा।
डिम्पल के इस कदम से पूरे मूलापुर गांव में इस बात की चर्चा घर-घर होने लगी कि मुम्बई प्रवास के दौरान विपिन ने डिम्पल नाम की लड़की से शादी की है और उससे एक बच्चा भी है। लेकिन विपिन ने उसे धोखा देकर यहाँ अपनी दूसरी शादी कर ली। देखते ही देखते इस बात को लेकर पूरे भदोही जनपद ग्राम सभायें डिम्पल के पक्ष में खड़ी हो गई।
5 दिसम्बर को डिम्पल भदोही के न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वितीय के न्यायालय में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अपने पति विपिन कुमार मिश्र, ससुर नागेन्द्र नाथ मिश्र, सास कुसुम मिश्र और जेठ सुशील मिश्र के खिलापफ एक वाद दर्ज कराया है। न्यायाधीश महोदय ने इस सम्बन्ध में चारों को कानूनी नोटिस भी जारी कर दी है।
11 दिनों तक भदोही में रुकने के बाद मुम्बई के लिये रवाना हो गई। लेकिन इन 11 दिनों में न तो विपिन और ना ही उसके परिवार का कोई सदस्य डिम्पल के सामने आकर उसके दावे को झुठलाया, हाँ विपिन इस सच को मीडिया के समक्ष जरुर स्वीकार किया कि डिम्पल से उसकी दोस्ती थी। इसके अलावा डिम्पल जो कुछ भी बोल रही है वह सब गलत है। डिम्पल को न्यायालय पर भरोसा करना चाहिए था। जब एक मामला मुम्बई कोर्ट में चल रहा है तब यहाँ आकर उसे बिना मतलब हंगामा करने की जरूरत नहीं थी।
भदोही छोड़ते समय डिम्पल ने कहा कि फेसबुक के जरिये न्याय की उसकी यह जंग आगे भी जारी रहेगी, वह अपने सभी फेसबुक युजर मित्रों को धन्यवाद भी दिया, जिन्होंने उसकी इस लड़ाई में उसका साथ दिया। अब देखना है कि अदालत डिम्पल के साथ क्या न्याय करता है।
(प्रस्तुत कथा घटनास्थल से ली गयी जानकारी तथा मीडिया सूत्रों पर आधरित है।)

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