06 February, 2013

“बेवफा तूने ये क्या किया”

“बेवफा प्रेमी के जाल में फंसी प्रेमिका को मिली मौत”
प्रतिक चित्र
उस दिन रात के दस बज रहे थे। उड़ीसा में कटक कोतवाली के थाना प्रभारी एस0के0 पाणी रात्रि गश्त के लिये निकल रहे थे। सब इंसपेक्टर माधव चौधरी उनके साथ जाने के लिए उठे ही थे कि टेलीफोन की घंटी बज उठी, “हैलो, थाना कोतवाली से सब इंसपेक्टर माधव चौधरी स्पीकिंग।”
“जल्दी आईये सर। एक कार नंन्दिनी को कुचलकर भाग गई है।” दूसरी ओर से हड़बड़ाया स्वर...., “अंधेरे में मैं उस कार का नम्बर नहीं देख सका, लेकिन....”
“कौन नन्दिनी और आप कहाँ से बोल रहे हैं ?” सब इंसपेक्टर माधव चौधरी ने सवाल किया तो दूसरी और से बताया गया, “हाइवे पांच के पास लिंक रोड पर मोहन्ती मिल्क फूड प्रोडक्ट्स की बगल वाली सड़क पर ही यह एक्सीडैंट हुआ है।”
“आप कौन बोल रहे हैं ?”
फोन करने वाले ने कुछ कहा अवश्य लेकिन माधव चौधरी को साफ सुनाई नहीं दिया। क्योंकि उसी समय रिसीवर में एक अजीब सी थरथराहट गूंज उठी, इसके बाद टेलीफोन कट गया।
सब इंसपेक्टर माधव चौधरी ने बाहर आकर यह खबर इंसपेक्टर एस0के0 पाणी को दी तो उन्होंने जीप में बैठते ही ड्राइवर को आदेश दिया, “ठीक है, पहले घटनास्थल चलो।”
कोतवाली प्रभारी श्री पाणी दलबल के साथ मोहन्ती फूड प्रोडक्ट्स के पास पहुँचे तो हाइवे नम्बर पाँच पर वाहनों का आवागमन बना हुआ था, लेकिन आसपास के इलाकों में रात का सन्नाटा छाया हुआ था। पुलिस दल फोन पर मिली सूचना के अनुसार मोहन्ती फूड प्रोडक्ट्स बिल्डिंग के बगल वाली सड़क पर घूमी ही थी कि इंसपेक्टर पाणी चौक पड़े। इस इमारत के चारों कोनों पर तेज प्रकाश वाली फ्लड लाइट लगी हुई थी, जिनकी जगमगाती रोशनी में थोड़ी दूर पर ही सड़क के बाएं किनारे पर एक लाश पड़ी हुई थी। नजदीक पहुँचकर देखा तो म्रृतका 22-23 साल की युवती थी। वेषभूषा से सहज ही यह भी अनुमान हो गया कि वह सुशिक्षित और किसी सम्भ्रान्त परिवार की सदस्या रही होगी।
इंसपेक्टर पाणी और उनके दल ने देखा कि म्रृतका का आधा शरीर सड़क पर था और आधा सड़क से नीचे धूल भरी कच्ची पटरी पर। दुर्घटना करने वाली कार उसके सीने और टांगों के ऊपर से निकलकर गई थी, जिससे साफ जाहिर था कि कार का बायां पहिया सड़क के नीचे पटरी पर था। उन्होंने दिमाग लगाया। इसके दो कारण हो सकते है, या तो किसी गाड़ी को पास देने के लिए कार जरूरत से ज्यादा बाएं आ गई या फिर कार चालक ने इस लड़की को कुचलने के उद्देश्य से ही सड़क से नीचे उतरी थी।
अब सवाल यह था कि कार अगर किसी गाड़ी को पास देने के लिए किनारे आई होती तो यह दुर्घटना उस गाड़ी के चालक ने भी देखी होती और संभवतः वह इसकी खबर पुलिस को देता। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो दूसरा मतलब है युवती की सुनियोजित हत्या है।
“सर...” एकाएक सब इसंपेक्टर माधव चौधरी ने कहा, “फोन करने वाले ने तो बताया था कि वह अंधेरे के कारण दुर्घटना करने वाली कार का नम्बर नहीं पढ़ पाया, जबकि यहाँ तेज रोशनी है। कहीं इसमें कोई चाल तो नहीं है?”
“ऐसा ही लग रहा है।” इंसपेक्टर पाणी ने सिर हिलाते हुए कहा, “आस-पास के लोगों से पूछो कि थोड़ी देर पहले बिजली गोल तो नहीं हुई थी।”
मृतका नन्दिनी
पूछताछ करने पर मालूम चला कि शाम से एक क्षण को भी बिजली नहीं गई थी। सब इंसपेक्टर माधव चौधरी ने खुश होकर कहा, “देख लिया न सर... जरूर फोन करने के पीछे किसी की चाल है।”
“हूँ... फोन करने वाले ने क्या कहा था चौधरी ? जरा एक-एक शब्द याद करने की कोशिश करो?”
“मुझे अच्छी तरह याद है सर। मेरे फोन उठाते ही उसने कहा था, जल्दी आईये, एक कार नन्दिनी को कुचलकर भाग गई है।”
“इसका मतलब फोनकर्ता म्रृतका को पहचानता है?”
“राइट सर।” चौधरी ने सहमति जाहिर की।
कुछ सोचते हुए इंसपेक्टर पाणी बोले, “तुम एक काम करो चौधरी, कन्ट्रोल रूम से यह पूछो किसी थाने में नन्दिनी नाम से या किसी अन्य नाम की युवती की गुमषुदगी की रिपोर्ट तो दर्ज नहीं है।”
सब इंसपेक्टर माधव चौधरी ने तुरन्त अपने मोबाइल से कन्ट्रोल रूम से सम्पर्क किया, लेकिन कोई काम की जानकारी नहीं मिल सकी। इस बीच आस-पड़ोस के काफी लोग जमा हो गये थे। इंसपेक्टर पाणी ने पंचनामा भरकर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजकर मृतका के पर्स की तलाशी ली तो अंग्रेजी दवा की दुकान का एक कैशमेमो मिल गई, जिस पर नन्दिनी का नाम और पता लिखा हुआ था... 17, आचार्य विहार।
इंसपेक्टर एस0के0 पाणी दल-बल के साथ 17, आचार्य बिहार पहुँचे तो उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि पूरी कालोनी में सोता पड़ जाने के बावजूद उस घर के लोग अभी तक जाग रहे थे। पुलिस वालों को देखते ही घर के मालिक केशवदास के चेहरे पर हवाइंया उड़ने लगी। उन्होंने घबराई आवाज में कहा, “मैं थाने ही आने की सोच रहा था सर... मेरी बेटी का दोपहर तीन बजे से कोई पता नहीं है। मैं चारों ओर खोज-खोजकर हार गया।”
“आपकी बेटी का क्या नाम है? इंसपेक्टर पाणी ने पूछा, “उसका कोई फोटो तो होगा?”
“हां-हां, क्यों नहीं। केशवदास लपककर अन्दर से एलबम उठा लाए और एक फोटो निकालकर दिखाते हुए कहा, “यह मेरी बेटी नन्दिनी है साहब.... मैं रिपोर्ट दर्ज कराने थाने आ रहा था कि आप लोग इतनी रात में कुशल तो है साहब?”
“साँरी मिस्टर केशवदास।“ पाणी ने फोटो देखते हुए भारी स्वर में कहा, “मुझे बड़े अफसोस के साथ बताना पड़ रहा है कि आपकी बेटी अब इस दुनिया में नहीं है।“
“क्या.....?“ केशवदास हक्के-बक्के रह गये।
“धैर्य रखिए मिस्टर दास, हाइवे नम्बर पाँच के लिंक रोड पर मोहन्ती मिल्क फूड प्रोडक्ट्स के बगल वाली सड़क पर किसी कार ने उसे कुचल दिया। हमने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी है। आप चलकर शिनाख्त कर लें तो हम जांच आगे बढ़ाएं।”
पोस्टमार्टम हाउस में बेटी की लाश देखते ही केशवदास हाहाकार कर उठे। इंसपेक्टर एस0के0 पाणी बड़ी मुश्किल से उन्हें धैर्य बंधाकर पूछताछ करने लगे
केशवदास ने बताया, “नन्दिनी की शादी तय हो चुकी थी। मेरा होने वाला दामाद सुरेश बरूआ आज दोपहर घर आया था। खाने पीने के बाद मेरी पत्नी ने बताया कि नन्दिनी सुरेश के साथ मिलकर फिल्म देखने जा रही है। घर से निकलने के लगभग घण्टा भर बाद नन्दिनी अकेले लौट आई थी। वे दोनों फिल्म देखने का विचार छोड़कर शापिंग करने लगे थे। नन्दिनी ने दो साडि़यां खरीदी थी। उन्हें घर रखकर तुरन्त ही वह फिर बाहर चली गयी थी। हम समझ रहे थे कि वह सुरेश के ही साथ होगी, लेकिन फोन करने पर सुरेश ने बताया कि नन्दिनी तो शापिंग करके घण्टा भर बाद ही लौट गई थी। इसके बाद मैंने उसकी सहेलियों इत्यादि के यहां पता लगाया पर कुछ पता नहीं चला। आखिर चारों ओर से निराश होकर रिपोर्ट के लिए थाने आने की सोच ही रहा था कि आप लोग पहुँच गए। हमारे ऊपर तो वज्रपात हो गया इंसपेक्टर साहब। नन्दिनी हमारी इकलौती बेटी थी। उसकी मौत ने मुझे और मेरी पत्नी को बुरी तरह तोड़ दिया है। हमारे जीने का सहारा ही खत्म हो गया। एक डेड़ महीने बाद ही उसकी शादी होने वाली थी।”
इंसपेक्टर पाणी ने कुछ सोचते हुए पूछा, “सुरेश बरूआ कहां रहता है?”
“लक्ष्मी नगर में।”
अभियुक्त सुरेश बरूआ
सुरेश का पूरा पता नोट करके इंसपेक्टर पाणी ने केशवदास का कंधा थपथपाते हुए कहा, “जो होना था, हो चुका, लेकिन आप विश्वास रखिए हम असलियत का पता लगाकर रहेंगे। हमें शक है कि नन्दिनी की मौत दुर्घटना नहीं, बल्कि जान बूझकर की गई हत्या है। अगर यह सच हुआ तो अपराधी को सजा दिलाए बगैर मैं चैन से नहीं बैठूंगा।”
पोस्टमार्टम के बाद नन्दिनी का शव केशवदास को सौंप दिया गया, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखते ही इंसपेक्टर एस0 के0 पाणी चैंक पड़े। पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा था कि नन्दिनी की मृत्यु दम घुटने से हुई है। मौत का समय अनुमानतः 6 घण्टे पूर्व 3 से 4 बजे के बीच रहा होगा। मृतका की गर्दन पर रस्सी ऐंठने के निशान मिले थे, जिससे सिद्ध होता था कि नन्दिनी का गला घोटकर हत्या की गई है, परिणाम स्वरूप उसकी जुबान बाहर लटक गई थी। डाक्टर ने बातचीत के दौरान यह भी बताया कि मृतका के गालों पर आंसू के निशान थे, जैसे मरने से पूर्व वह रोई हो, लेकिन सबसे चैंकाने वाला तथ्य यह उजागर हुआ कि नन्दिनी मृत्यु के समय लगभग 4 माह से गर्भवती थी।
इंसपेक्टर एस0के0 पाणी ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार अज्ञात अभियुक्त के विरूद्ध नन्दिनी के साथ यौनाचार, हत्या और सबूत नष्ट करने के आरोप में भारतीय दण्ड विधान की धारा 376, 302, 120 बी व 34 के अन्तर्गत मामला दर्ज करके, जांच कार्य अपने हाथ में ले लिया।

नन्दिनी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट सुनकर केशवदास को एकाएक विश्वास नहीं हुआ। वह जोर से सिर हिलाते हुए बोले, “ऐसा नहीं हो सकता इंसपेक्टर साहब? मेरी बेटी ऐसी नहीं थी?”
“क्या आपका होने वाला दामाद अक्सर यहां आता था?” इंसपेक्टर एस0के0 पाणी ने पूछा।
“जी हां, पुराने ख्यालात का होते हुए भी मैंने बच्चों की खुशी के लिए उन्हें मिलने-जुलने की छूट दे रखी थी।”
“क्या ऐसा नहीं हो सकता कि नन्दिनी के गर्भ में सुरेश का ही बच्चा हो?”
“सुरेश इतना गिरा हुआ नहीं हो सकता इंसपेक्टर साहब। आप उससे मिलोगे तो खुद महसूस करोगे कि वह सुसंस्कृत और जिम्मेदार लड़का है। एक-डेढ़ महीने बाद उन दोनों की शादी होने वाली थी, फिर वह ऐसी गलती क्यों करेगा, जो बदनामी का कारण बने।”
“कहीं न कहीं तो गड़बड़ी है ही।” इंसपेक्टर पाणी ने उठते हुए कहा, “फिलहाल मैं चलता हूँ।”
जिस समय इंसपेक्टर एस0के0 पाणी और सब इंसपेक्टर माधव चौधरी सुरेश बरूआ के आवास लक्ष्मी नगर पहुँचे तो वह कहीं जाने के लिए तैयार हो रहा था। इंसपेक्टर को देखते ही पूछा, “क्या हुआ इंसपेक्टर साहब? नन्दिनी के पिता जी बता रहे थे कि शायद उसकी हत्या की गई है... कुछ पता चला किसने हत्या की है?”
“अभी तो मामला उलझता ही जा रहा है।” इंसपेक्टर पाणी इधर-उधर ताकते हुए कहा, “मैं आपसे कुछ जानकारियां चाहता हूँ। आप कहीं जाने की तैयारी में हैं क्या?”
“कोई बात नहीं, मैं बाद में चला जाऊंगा... आप बैठिए... आइए न...” सुरेश बरूआ ने सबको अन्दर ले जाकर ड्राइंग रूम में बैठाते हुए बोला, “पूछिए, क्या जानकारी चाहते हैं?”
“नन्दिनी को आप कब से जानते है?”
“करीब साल भर से... हम दोनों पहली मुलाकात से ही एक दूसरे से प्रेम करने लगे थे। कुछ दिन हम चोरी छुपे मिलते रहे, लेकिन एक दिन नन्दिनी के पिता को हमारे बारे में मालूम चला तो उन्होंने उदारता पूर्वक हमारी शादी को स्वीकृति दे दी। जल्द ही हम दोनों एक हो जाते, परन्तु ईश्वर को शायद यह मंजूर नहीं था।”
“क्या आप दोनों में शारीरिक संबंध भी थे?”
“जी नहीं, नन्दिनी बहुत ही सचरित्र लड़की थी।”
“लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार वह चार माह की गर्भवती थी।”
यह सुनकर सुरेश का चेहरा एकदम तमतमा उठा। उसने क्षुब्ध स्वर में तीव्र विरोध किया, “मैं इस पर किसी कीमत से विश्वास नहीं कर सकता। इतनी सीधी लड़की को मरने के बाद बदनाम मत कीजिए इंसपेक्टर साहब। पोस्टमार्टम वाले डाक्टर को जरूर कोई गलतफहमी हुई है।”
“यह कोई छोटी मोटी बात नहीं है मिस्टर बरूआ।” इंसपेक्टर पाणी उसकी आंखों में झांकते हुए बोले।
“मैं जानता हूँ इंसपेक्टर साहब।” सुरेश तैश में बोला, “लेकिन मैं यह भी जानता हूँ कि ज्यादातर पोस्टमार्टम किस तरह हुआ करते है। बदबू मारती लाशों की ओर डाक्टर आंख उठाकर भी नहीं देखते। जमादार चीड़-फाड़ करके जो कुछ बताता है, उसी के आधार पर रिपोर्ट तैयार कर दी जाती है।”
इंसपेक्टर एस0के0 पाणी ने भारी स्वर में कहा, “पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नन्दिनी की गर्दन पर रस्सी का निशान मिला है, जिससे तय है कि उसकी हत्या गला दबाकर की गई है। फिर इस मामले को दुर्घटना का रूप देने के लिए नन्दिनी को कार से कुचल दिया गया।”
“तब तो यह क्रूर कर्म पुलिस के लिए चुनौती है, इंसपेक्टर साहब। आप किसी तरह नन्दिनी के.....” सुरेश की बाकी बात तेज गड़गड़ाहट में डूब गई।
पुलिस वालों ने चैक कर देखा सुरेश बरूआ के घर के पास ही रेलवे लाइन थी, जिस पर इस समय कोई मेल ट्रेन घड़घड़ाती हुई जा रही थी। सब इंसपेक्टर माधव चौधरी की आंखें चमक उठी, उन्होंने उठकर बाहर जाते हुए इंसपेक्टर एस0के0 पाणी से कहा, “सर, एक मिनट बाहर आएंगे? एक जरूरी बात याद आ गई।”
इंसपेक्टर पाणी अचकचाए हुए ड्राइंग रूम से बाहर निकले तो सब इंसपेक्टर माधव चौधरी ने फुसफसा कर कहा, “सर, उस रोज रात को जब नन्दिनी के मौत की खबर मिली थी तब फोन पर एकाएक ऐसी ही गड़गड़ाहट गूंज उठी थी मानों एकदम पास से कोई ट्रेने गुजर रही हो। इसके बाद फोन कट गया था।”
“ओह....” इंसपेक्टर पाणी ने तुरन्त ड्राइंग रूम में लौटकर सुरेश से पूछा, “आसपास कहीं टेलीफोन बूथ होगा? मुझे एक जरूरी बात करनी है, मेरा मोबाइल सुबह से खराब है।”
“शौक से कीजिए।” सुरेश बरूआ ने एक कोने की ओर इशारा करते हुए कहा, “मेरे घर में ही टेलीफोन लगा हुआ है।”
“अच्छा रहने दीजिए। मैं खुद ही वहाँ चला जाता हूं, फोन पर कितना बात करूंगा....” इतना कहकर इंसपेक्टर पाणी दल-बल के साथ जीप में आ बैठे। ड्राइवर को चलने का आदेश देते हुए बोले, “अच्छा मिस्टर, बरूआ। मैं आपसे फिर मिलूंगा....”
पुलिस जीप बंगले से बाहर निकली ही थी कि सब इंसपेक्टर माधव चौधरी ने कहा, “क्या हुआ सर? आपने टेलीफोन के बारे में पूछा, फिर बातचीत बीच ही में छोड़कर एकदम चले आए, मैं कुछ समझा नहीं?”
“तुमने बड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी है, चौधरी, लेकिन उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए ठोस सबूत की जरूरत है। मुझे पूरी उम्मीद है कि वह भी मिल जाएगा।” फिर ड्राइवर की ओर देखते हुए बोले, “पहले आचार्य विहार में केशवदास के यहाँ चलो।”
एक ही दिन में दोबारा पुलिस वालों को आया देख केशवदास को आश्चर्य हुआ, पर इंसपेक्टर पाणी नीचे नहीं उतरे। जीप में बैठे-बैठे ही उन्होंने पूछा, “दास साहब, क्या सुरेश बरूआ ड्राइविंग जानता है?”
“जी, हां.... उसके पास अपनी कार है, जिसे वह खुद ही चलाता है।”
“धन्यवाद, मुझे इतना ही पूछना था। चलो, ड्राइवर।”
ड्राइवर ने इंजन स्टार्ट करके जीप को सड़क पर दौड़ाते हुए पूछा, “कहाँ चले साहब?”
“सुरेश बरूआ के यहां... लक्ष्मी नगर।”
थोड़ी देर बाद ही पुलिस जीप सुरेश बरूआ के यहां पहुँचकर खड़ी हो गई, सुरेश ने अचकचा कर पूछा, “क्या हुआ इंसपेक्टर साहब?”
“आपको थोड़ी तकलीफ देना चाहता हूँ, बरूआ साहब। अफसरों ने कुछ जरूरी काम सौंप दिए है। थोड़ी देर के लिए अपनी कार दे सकेंगे? बड़ी मेहरबानी होगी।”
“लेकिन मेरे पास ड्राइवर नहीं है।”
“कोई बात नहीं, मैं बहुत अच्छी ड्राइविंग जानता हूं। विश्वास कीजिए, रात 10 बजे तक आपकी गाड़ी सही-सलामत पहुँचा दूंगा।”
सुरेश बरूआ ने तुरन्त ही गैरेज से कार निकाल कर बाहर खड़ी कर दी और चाबी थमाता हुआ बोला, “परेशान होने की जरूरत नहीं है। सुविधापूर्वक सवेरे भिजवा दीजिएगा।”
इंसपेक्टर पाणी ने हंसकर कहा, “हमारे पास गैरेज थोड़े ही है। रात को गाड़ी रखने में परेशानी होगी, इसलिए मैं 10 बजे तक पहुँचा दूंगा। अच्छा चौधरी तुम सारा काम निपटाकर एक बार कोतवाली आ जाना, मैं वहीं तुम्हें फोन करूंगा।”
बात पूरी करते-करते उन्होंने धीरे से बाई आंख दबाकर इशारा किया और कार में बैठकर चलते बने। सब इंसपेक्टर माधव चौधरी उनका मतलब समझ गए। उन्होंने जीप पर बैठकर फुसफुसाते हुए कहा, “दिखावे के लिए गाड़ी को उल्टी ओर घुमा लो, फिर कोतवाली चलना है।”
ड्राइवर ने जीप स्टार्ट करके विपरीत दिशा में दौड़ा दी, लेकिन थोड़ी दूर जाते ही वह कोतवाली के रास्ते पर मुड़ गया। सब इंसपेक्टर चौधरी कोतवाली पहुँचे तो इंसपेक्टर पाणी बेचैन से उनका इंतजार कर रहे थे कार की चाबी थमाते हुए उन्होंने कहा, “सुरेश की गाड़ी तो मैंने हथिया ली, अब सबूत खोजना तुम्हारा काम है। भाग-दौड़ कर किसी भी तरह गाड़ी के पहियों की जांच करवाओ। मुझे पूरा विश्वास है कि उन पर खून का दाग जरूर मिल जाएगा।”
इंसपेक्टर पाणी का संदेह सच निकला। शाम को सब इंसपेक्टर माधव चौधरी लौटे तो दिन भर की थकान के बावजूद उनकी आंखे चमक रही थी। खुशी से चहकते हुए उन्होंने बताया, “कार के पहिए धो दिए गये है, इसके बावजूद पहियों पर खून के दाग मिल गए है। इसके अलावा कार के पेंदे में भी खून के तमाम छींटे पड़े हैं, जिन पर शायद हत्यारे का ध्यान ही नहीं गया।”
“ठीक है। रात 10 बजे मैं सुरेश की कार पहुंचाने जाऊंगा और उससे तुम्हें फोन करने को कहूँगा, उस समय एक और सबूत तुम्हें मिल जाएगा।”
इंसपेक्टर पाणी ने टाइम टेबुल देखकर पता लगा लिया था कि रात लगभग दस बजे सुरेश बरूआ के घर के पास स्थित रेलवे लाइन से चेन्नई से हावड़ा जाने वाली एक डाउन एक्सप्रेस ट्रेन गुजरती है। इसके 10 मिनट पहले ही वह कार लौटाने के बहाने सुरेश बरूआ के यहां पहुँच गए, हांफते हुए कहने लगे, “अभी एक मामला निपटा भी नहीं था कि एक और कांड हो गया। पुलिस की नौकरी में एक मिनट भी चैन नहीं है, मिस्टर बरूआ। जरा कोतवाली फोन करके सब इंसपेक्टर चौधरी से कह दीजिए कि मैं यहां उनका इंतजार कर रहा हूं, जल्दी आएं हाइवे नं0 5 पर बड़ा भयानक एक्सीडेण्ट हो गया है।”
मृतका के पिता केशवदास
बात पूरी करने के साथ ही इंसपेक्टर पाणी सेण्टर टेबल पर कुछ कागज फैलाकर जैसे बड़ी एकाग्रता से उनका अध्ययन करने लगे, पर उनका सारा ध्यान फोन कर रहे सुरेश बरूआ की ओर लगा था। उसी समय रेल लाइन पर घड़घड़ाती हुई चेन्नई हावड़ा एक्सप्रेस गुजर गई, सुरेश बरूआ फोन करके खाली हुआ तो एस0के0 पाणी नन्दिनी के बारे में बातें करने लगे।
थोड़ी देर में तीन चार सिपाहियों के साथ सब इंसपेक्टर चौधरी आ गए। ड्राइंग रूम में घुसते हुए उन्होंने चहक कर कहा, “नन्दिनी के हत्यारे का पता चल गया, सर।”
“क्या?” सुरेश बरूआ चौंक पड़ा, “कौन है उसका हत्यारा?”
“तुम! सुरेश बरूआ, यू आर अण्डर अरेस्ट। अब भलाई इसी में है कि तुम खुद सब कुछ सच-सच बता दो, वरना तुम्हारे खिलाफ सारे सबूत तो हमें मिल ही गए है। अपराधियों से बात उगलवाने के और भी तरीके पुलिस वाले अच्छी तरह जानते हैं।”
पलक झपकते ही सुरेश बरूआ का चेहरा राख हो गया। शायद उसने इंसपेक्टर एस0के0 पाणी द्वारा बिछाए गए ताने-बाने को अच्छी तरह समझ लिया था, इसलिए एक बार भी ना-नुकुर करने की कोशिश नहीं की और निमिश मात्र में सारा आरोप स्वीकार कर लिया। दरअसल वह मनचले स्वभाव का युवक था। कुसंगति में पड़कर बहुत कम उम्र में ही शराब और लड़कियाँ उसकी कमजोरी बन गई थी। इन शौकों को पूरा करने के लिए घर वालों से पर्याप्त पैसे न मिल पाने के कारण सुरेश बरूआ छोटे-मोटे अपराध भी करने लगा था, लेकिन उससे उसका मन न भरता। वह बड़े ऐशो-आराम की जिन्दगी जीना चाहता था। अपनी अय्याशी को पूरा करने के चक्कर में उसने पहले नन्दिनी को फांसकर उसका शरीर हासिल किया। जब मन भर गया तो पीछा छुड़ाने के लिए उसकी हत्या कर दुर्घटना का रूप देने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सका और पुलिस ने उसका राजफास कर उसे जेल की सलाखों के पिछे भेज दिया।




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