06 February, 2013

‘‘बलात्कारी हत्यारे को म्रृत्युदंड’’

दिव्या बलात्कार हत्याकाण्ड कथा फैसले के बाद
आम तौर पर ठण्ड के दिनों में लोग थोड़ा देर से ही सोकर उठते है, कुछ लोग तो सूर्योदय हो जाने के काफी देर बाद तक रजाई में ही दुबके रहते है। लेकिन पांच दिसम्बर को वाराणसी के शिवपुर थाना क्षेत्र अन्तर्गत तुलसी बिहार कालोनी निवासी पेशे से चिकित्सक डा0 श्याम जी शर्मा और उनकी पत्नी रजनी उस दिन सूर्योदय से काफी पहले ही उठकर अपने नित्यकर्मो में लग गये थे। आँखों  के आगे रह-रह कर वह हृदय विदारक घटना बरबस घूम जाती जब रजनी शर्मा के भाई की लाडली बेटी दिव्या उर्फ मोनी की बलात्कार के बाद नृशंस हत्या कर  दी गयी थी आज कानून वर्ष 2007 में घटी उस घटना को अंजाम देने वाले पेंटर संजय कुमार को उसके कुकर्मो की सजा पर फैसला सुनाने जा रहा था।
नहा-धोकर रजनी शर्मा ने भगवान की पूजा की और मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना किया कि जिस दरिन्दे ने उनकी भतीजी की आबरू लूटने के बाद बेरहमी से हत्या की है उसे कठोर से कठोर दंड मिले। फिर भतीजी दिव्या की फोटो निकाल कर उसके मासूम चेहरे को काफी देर तक एकटक निहारती रही। फोटो को देखते-देखते उनकी आँखों  से आँसू निकल आये। आंसुओं को पोछते हुए बुदबुदाई, “मोनी बेटा आज तुम भले ही हमारे बीच नहीं हो लेकिन शायद ही ऐसा कोई दिन बीता हो जब मैंने तुझे याद न किया हो। तुम्हारे फूफा ने हत्यारे को सजा दिलाने के लिए जो मेहनत की है आज उसका फैसला होने वाला है।” विचारों में खोयी रजनी शर्मा न जाने कितनी देर तक दिव्या की तस्वीर को निहारती रहती लेकिन तभी उनके पति डा0 श्याम जी शर्मा कमरे में प्रवेश करते हुए कहा, “देख लेना कानून उस नराधम को मृत्युदण्ड की सजा सुनायेगा।”
“सचमुच यदि ऐसा हुआ तो सच मानो दिव्या की आत्मा को जरूर शांति मिल जायेगी।” रजनी ने भर्राई आवाज में कहा। पति-पत्नी दोनों बोछिल मन से कमरे से बाहर निकले और थोड़ा-बहुत नाश्ता करने के बाद घड़ी पर नजर डाली तो दिन के साढ़े नौ बज चुके थे। श्याम जी शर्मा जिला कचहरी के लिये रवाना हो गये।
इस हालत में मि्ली थी दिब्या की लाश
आम दिनों की अपेक्षा उस दिन वाराणसी के अपर जिला जज (दशम) दिनेश कुमार सिंह की अदालत कक्ष के अन्दर-बाहर लोगों का जमावड़ा लगा हुआ था। जिस मुकदमें का फैसला होने वाला था उससे जुड़े वादी एवं प्रतिवादी वकीलों के अलावा मीडिया जगत से जुड़े संवाददाताओं की मौजूदगी एवं न्यायालय की सुरक्षा व्यवस्था में तैनात पुलिसकर्मी की उपस्थिति इस बात की ओर साफ ईशारा कर रहे थे कि आज किसी खास मुकदमें का फैसला सुनाया जाना है। श्याम जी शर्मा भी अदालत कक्ष में पड़ी एक बेंच पर जाकर बैठ गये। थोड़ी देर बाद ही दसवें अपर जिला जज दिनेश सिंह ने कक्ष में प्रवेश किया और अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गये। जज के बैठने के बाद पेशकार के इशारे पर एक युवक को आरोपियों वाले कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया गया। बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष के वकीलों के बीच सजा के बिन्दु पर अंतिम बहस शुरू हुई। दरअसल आज वाराणसी जनपद के एक बहुचर्चित बलात्कार और हत्याकाण्ड के मुकदमें का फैसला सुनाया जाना था। जिस लड़की के साथ यह हादसा हुआ था उसका नाम दिव्या उर्फ मोना था, वह मूलरूप से बिहार के दानापुर निवासी तपन कुमार की बेटी थी। घटना के समय इण्टर की प्राइवेट परीक्षा देने के लिए वाराणसी में रहने वाली अपनी बुआ रजनी के यहां आई हुई थी।
अदालत की कार्यवाही शुरू हो चुकी थी अभियोजन पक्ष प्रस्तुत कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता डा0 नीलकंठ शास्त्री ने अपनी बात कहनी शुरू की, “हुजूर कटघरे में खड़े इस शख्त का गुनाह साबित हो चुका है। जिस घर से अभियुक्त का रोजी-रोटी जुड़ा था उस घर में ही रह रही छात्रा की न सिर्फ आबरू लूटी बल्कि उसका बेरहमी के
साथ खून भी कर दिया। इसलिए इस पर जरा भी रहम न किया जाय, ताकि समाज में फिर से कोई कामगार किसी छात्रा के साथ ऐसा कुकृत्य न करें।”
श्री शास्त्री ने जैसे ही अपनी बात समाप्त की बचाव पक्ष के अधिवक्ता सामने आकर अपना पक्ष रखते हुए कहा, “यह गुनाह जिन हालात और वातावरण में हुआ है अदालत उससे अन्जान नहीं है। दिव्या को अकेली देख संजय की आँखों में वासना का ज्वर चढ़ गया जिसके परिणाम स्वरूप उसने यह अनर्थ कर डाला। अभी उसकी उम्र ज्यादा नहीं है, फिर वह कोई शातिर अपराधी भी नहीं है, इसलिए माननीय न्यायाधीश महोदय से प्रार्थना है कि सजा के मामले में मेरे मुवक्किल पर रहम करें....”
दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अपर जिला जज दिनेश कुमार सिंह ने फैसला सुनाना शुरू किया, “तमाम गवाहों के बयान और अदालत में पेश किये गये सबूतों के आधार पर यह बात साफ हो चुकी है कि दिव्या का बलात्कार और हत्या आरोपी संजय कुमार ने ही की है। जिन हालात और परिस्थितियों में दिव्या के साथ घटना को अंजाम दिया गया वह अपराध बेहद क्रूरता की श्रेणी में आता है। अभियुक्त द्वारा किये गये अपराध से मानवता तार-तार हुई है। इसलिए यह अदालत आरोपी संजय कुमार को दिव्या के साथ बलात्कार करने (धारा-376) का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास के साथ 10 हजार रूपये अर्थदण्ड की सजा सुनाती है। साथ ही बलात्कार के बाद जिस बेरहमी के साथ दिव्या का कत्ल कर लाश ठिकाने लगाने का प्रयास किया गया (धारा-302) उसके लिए यह अदालत आरोपी संजय को मृत्युदण्ड की सजा सुनाती है। मृत्युदण्ड की सजा का क्रियान्वयन इलाहाबाद उच्च न्यायालय से पुष्टिकरण के बाद किया जायेगा। फैसला सुनते ही आरोपी संजय कुमार का चेहरा जहाँ पीला पड़ गया वहीं अदालत कक्ष में मौजूद डा0 श्यामजी शर्मा के चेहरे पर एक अजीब ही किस्म की चमक दिखाई दी। अभियोजन पक्ष के वकील डा0 नीलकंठ शास्त्री के चेहरे पर विजयी मुस्कान देखने को मिली। सजा सुनाये जाने के बाद पुलिस ने संजय कुमार को अपनी कस्टडी में ले लिया।
न्यायालय ने बलात्कार और हत्या के जुर्म में मृत्युदण्ड की जो सजा संजय कुमार को सुनाई वह घटना कब और किन हालातों में घटी थी? मृत्युदण्ड की सजा पाया संजय कुमार तथा हादसे की शिकार मृतका दिव्या कौन थी? इस पूरे घटना क्रम को जानने के लिए हम पाठकों को घटना के अतीत में ले चल रहे है।
18 वर्षीया दिव्या बिहार के दानापुर के मैदाटीला निवासी तपन कुमार सिंह की बेटी है। तपन कुमार की एक बहन उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद के शिवपुर थाना क्षेत्र के तुलसी बिहार कालोनी मीरापुर बसही में रहने वाले पेशे से सरकारी डाक्टर आंशिक रूप से शारीरिक विकलांग डा0 श्याम जी शर्मा के साथ ब्याही है। डा0 श्याम जी चोलापुर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य विकास केन्द्र में कार्यरत है। कुछ कारणों से दिव्या चंदौली स्थित सैयदराजा के भुजन इण्टर कालेज से यू0पी0 बोर्ड द्वारा संचालित इण्टरमीडिएट की प्राइवेट परीक्षा का फार्म भर दिया था। परीक्षा की तिथि घोषित होने के बाद दिव्या के पिता तपन कुमार 6 फरवरी 2007 को अपनी बेटी को बहन रजनी के घर पहुँचा दिये थे, ताकि वह यहीं रह कर पढ़ाई करें और परीक्षा वाले दिन अपने परीक्षा सेंटर पर जाकर परीक्षा दें। बहन-बहनोई का घर होने से तपन कुमार को कोई चिन्ता परेशानी नहीं थी। दिव्या को छोड़ तपन दानापुर लौट गये, दिव्या अपनी बुआ के घर पर परीक्षा की तैयारी में जुट गई।
डाक्टर श्याम जी शर्मा होली से पूर्व घर में रंग-रोगन करवाना चाहते थे। इसके लिए वे मेहनती और विश्वासी पेंटर चाहते थे, क्योंकि काम के दौरान पूरे समय उसे देखना उनके बस की बात नहीं थी। आखिरकार एक ठेकेदार राजनाथ से बात की तो डा0 श्याम जी की समस्या सुनकर राजनाथ सबकुछ अपनी देख-रेख में कराने का ठेका ले लिया। श्याम जी को अपनी पसंद का रंग (पेंट) लाकर देना था, बाकी पूरे दिन कितना काम होता है या नहीं होता इसकी पूरी जिम्मेदारी ठेकेदार राजनाथ की थी।
ठेका लेने के बाद राजनाथ दो पेंटर रखकर श्यामजी शर्मा के आवास पर रंग-रोगन का काम शुरू करा दिया। काम शुरू होने के दसवें दिन 24 फरवरी 2007 शनिवार को काम पर एक ही पेंटर संजय कुमार आया हुआ था। संजय को अकेला आया देख रजनी ने पूछ लिया, “क्या बात है आज तुम अकेले काम पर आये हो, तुम्हारा दूसरा साथी कहाँ है?”
अभियुक्त संजय
“आना तो चाहिये था..... कुछ बोला भी नहीं था, लेकिन लगता है आज वह काम पर नहीं आयेगा।” इतना कहकर पेंटर संजय कुमार अपने रूटीन काम पर लग गया और रजनी भी अपनी घर-गृहस्थी के कामों में जुट गयी। दिव्या अपनी बुआ के साथ किचन में हाथ बंटा रहीं थी। दोपहर के बारह बज चुके थे श्याम जी शर्मा सुबह 8 बजे ही चोलापुर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य विकास केन्द्र के लिये चले जाते है। पति के जाने के बाद रजनी और दिव्या ही घर पर रहती। दोपहर लंच से पहले संजय कुमार रजनी से बोला, “मालकिन पेंट समाप्त हो चला है, मंगा देगी तो अच्छा होगा, वर्ना काम रूक जायेगा।” रजनी ने पति को कल ही सहेजा था कि पेंट लाना है, लेकिन व्यस्तता के कारण पेंट नहीं आ सका था। अब पेंट आना जरूरी हो गया था। रजनी ने मोबाइल से पति से बात की तो पता चला कि वो घर के लिए चल दिये है और रास्ते में है, पहुँचने पर पेंट ला देगे।
घर पहुँचने के बाद डा0 श्यामजी पत्नी रजनी को साथ लेकर रिक्शे से पेंट लेने बाजार चले गये उस समय घर पर दिव्या ही अकेली थी जो नीचे वाले कमरे में बैठ कर पढ़ाई कर रही थी। घर से बाहर निकलते समय रजनी दिव्या के पास जाकर उसे सहेजा भी था, “मैं और तुम्हारे फूफा रंग-पेंट लाने बाजार जा रहे है। मोनी बेटा, हमें वापस आने में समय लग सकता है, घर में बाहर का लड़का काम कर रहा है, इसलिए जरा ध्यान रखना और चौकन्ना रहना।”
तीन बजे के लगभग श्याम जी पत्नी रजनी के साथ बाजार से वापस लौटे तो घर का दरवाजा अधखुला था। श्याम जी जब तक रिक्शेवाले को पैसे देकर उससे रंग-पेंट का डिब्बा घर के अन्दर रखवाते तब तक रजनी घर में प्रवेश कर सीधे उस कमरे में पहुंच गयी जहाँ जाते समय दिव्या पढ़ाई कर रही थी, पर वह उस कमरे में नहीं दिखी इतना ही नहीं पेंट करने वाला संजय भी कहीं दिखाई नहीं दिया। रजनी शर्मा इधर-उधर के कमरों में भी झांककर सीधे ऊपर वाली मंजिल में जाने के बनी सीढि़यां चढ़ते हुए आवाज दी, “मोनी क्या कर रही हो बेटा......”
अब तक डा0 श्याम जी रिक्शे वाले को छुट्टी देकर घर के अन्दर प्रवेश कर चुके थे, पत्नी को आवाज देते हुए बोले, “क्या बात है मोनी कहा है?” रजनी कुछ उत्तर दे पाती इससे पहले अचानक उपर के मंजिल पर बने एक कमरे में पैर रखते ही वह जोर से चींख उठी, “अजी सुनते हो जल्दी से उपर आईये, देखिये क्या हो गया?”
दरअसल रजनी ज्यों ही उस कमरे में प्रवेश किया तो वहाँ का दृश्य देखकर चैंक उठीं। पेंटर संजय उस समय कमरे में रखे रजाई-गद्दा रखने वाले एक बड़े से सन्दूक को खोला हुआ था। संदूक में रखे कुछ गद्दे, कम्बल, रजाई जमीन पर पड़े हुए थे और संजय मोनी उर्फ दिव्या को दोनों हाथ से उठाये उस सन्दूक में रख रहा था........। पहली नजर में रजनी को कुछ समझ ही नहीं आया और वह जोर से पति को आवाज दे चींख पड़ी थी। रजनी पर नजर पड़ते ही संजय सकपका उठा और दिव्या को संदूक में छोड़कर बिना देर किये दरवाजे की ओर लपका लेकिन रजनी मजबूती के साथ उसका रास्ता रोके दरवाजे पर खड़ी थी। संजय उन्हें एक तरफ धक्का देकर धड़-धड़ाता हुआ सीढ़ी से नीचे उतर गया, नीचे उतरने पर डा0 श्याम जी ने भी उसे रोकने का प्रयास किया लेकिन वह उन्हें भी झटककर मेन गेट से बाहर निकल गया, पहली नजर में डा0 श्यामजी को कुछ समझ में नहीं आया। किसी अनहोनी की शंका में जैसे-तैसे जल्दी से ऊपर पहुँचे तो पत्नी रजनी को हतप्रभ खड़े बड़े वाले सन्दूक के पास देख पूछ लिया, “क्या हुआ? इतनी जोर से क्यों चींखी? और वह पेंटर संजय बेतहाशा क्यों भागा.........”
“इधर आइये, इस सन्दूक में देखिये उस दरिन्दे ने मेरी मोनी का क्या हाल कर दिया है।” श्याम जी सन्दूक के पास आकर देखा तो वहाँ मोनी उर्फ दिव्या निश्चेष्ट पड़ी थी, उसके चेहरे पर खून के दाग थे। जैसे-तैसे उसे बक्से से बाहर निकालकर जमींन पर लिटाया तब पता चला कि वह मर चुकी है। पलक झपकते अड़ोस-पड़ोस को भी खबर लग गयी, जो भी सुना दौड़ पड़े। रजनी शर्मा हा-हाकार करती हुई भतीजी दिव्या के शव पर सर पटकने लगी। डा0 श्याम जी भी इस घटना से स्तब्ध थे। वहाँ उपस्थित सभी को समझते देर नहीं लगी कि यह सारी कारस्तानी पेंटर संजय की है, लेकिन वह तो कब का फरार हो चुका था। डा0 श्याम जी शर्मा ने तुरन्त इस हादसे की सूचना शिवपुर थाने में दी तो तत्कालीन थाना प्रभारी एस0पी0 सिंह तुरन्त दल-बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गये।
घटनास्थल एवं शव का निरीक्षण करने के दौरान ही थाना प्रभारी एस0पी0 सिंह को आभास हो गया कि यह वासनाजन्य हत्या का मामला है, लेकिन सारी सच्चाई का पता पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही चलेगा। पूछताछ के दौरान पेंटर संजय का नाम सामने आते ही थाना प्रभारी श्री सिंह ने डा0 श्याम जी से पूछा, “आप संजय के बारे में बतायेंगे वह कहाँ रहता है, उसका पता क्या है?” लेकिन श्याम जी शर्मा ने विवशता से हाथ मलते हुए सिर हिला दिया, “यह तो मुझे नहीं मालूम है......”
सजा के बाद पुलिस और वकीलों से घिरा अभियुक्त संजय
थाना प्रभारी सब इंसपेक्टर एस0पी0 सिंह को ताज्जुब हुआ कि डाक्टर साहब को उस पेंटर के बारे में कोई जानकारी नहीं जिससे वह अपने घर का रंग-पेंट करा रहें है। लेकिन जल्द ही यह बात साफ हो गयी कि रंग पेंट कराने के लिए डाक्टर श्याम जी शर्मा ने एक ठेकेदार को ठेका दे दिया था और उस ठेकेदार ने ही अपने आदमी से यह रंग पेंट करा रहा था। पूछताछ में ठेकेदार का नाम भी पता चल गया उसका नाम राजनाथ था और वह इसी इलाके का रहने वाला था। पता लेकर सबइंसपेक्टर श्री सिंह राजनाथ के घर पहुंचकर उससे पूछताछ शुरू की तो वह गिड़गिड़ाने लगा, “संजय के बारे में मुझे भी कुछ खास नहीं मालूम है, साहब! पर इतना जानता हूँ कि संजय हौलागढ़ में अपनी मौसी के यहाँ रहता है।”
यह जानकारी मिलते ही थाना प्रभारी श्री सिंह ठेकेदार राजनाथ को लेकर उसकी निशानदेही पर हौलागढ़ संजय के मौसी के यहाँ पहुँचे लेकिन संजय वहाँ भी नहीं मिला तब थाना प्रभारी संजय के मौसी को पूछताछ के लिए थाने लिवा ले गये और एक सिपाही को इस निगरानी पर लगा दिया कि संजय आये तो उसे तुरन्त पकड़कर थाने लाये। थाना प्रभारी ने संजय की मौसी से की गई पूछताछ के आधार पर कई स्थानों पर दबिश दी लेकिन संजय पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा। लेकिन पुलिस निराश होकर नहीं बैठी आखिर घटना के चौथे दिन 28 फरवरी को एक मुखबिर की सूचना पर भोजूबीर इलाके से संजय को गिरफ्तार कर लिया।
शिवपुर थाने लाकर पूछताछ शुरू की गई तो संजय पहले सारे आरोपों से इनकार करता रहा लेकिन जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तो संजय की हिम्मत जवाब दे गयी और वह हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा, “मुझे मारिये मत हुजूर, मैं सब कुछ बता दूँगा।” इसके बाद डर और पछतावें से कांपती आवाज ने संजय ने सब कुछ स्वीकार कर लिया।
25 वर्षीय संजय रोजाना की तरह घटना वाले दिन भी घर में पेंट कर रहा था लेकिन उसकी नियत शुरू से ही दिव्या उर्फ मोनी के प्रति खराब थी। 18 वर्षीया दिव्या उर्फ मोनी को पहली नजर में देखते ही आशिक मिजाज संजय मन ही मन उसे पसंद करने लगा। दरअसल उसकी नीयत मोनी को लेकर खराब थी और वह हेल-मेल बढ़ाने के लिए दिव्या को दीदी-दीदी कहकर पुकारता। चार-छः दिनों के बाद ही संजय ने येन-केन प्रकारेण दिव्या का उपभोग करने का पक्का निश्चय कर लिया। किसी ने सच ही कहा है जब किसी के आँखों में वासना का ज्वर चढ़ जाता है तो उसे कुछ भी भला-बुरा नहीं सूझता, वह विवेक शून्य हो जाता है, ठीक यही स्थिति 24 फरवरी 2007 को संजय की भी हो गयी।
डा0 श्याम जी शर्मा का 12 वर्षीय बेटा सुबह 10 बजे स्कूल चला जाता तो फिर चार बजे शाम ही घर वापस लौटता। दोपहर बाद पत्नी को साथ लेकर डा0 शर्मा पेंट लेने बाजार गये तो घर में दिव्या उर्फ मोनी अकेली रह गयी। डा0 शर्मा के जाते ही संजय को लगा कि मौका अच्छा है वह अपनी मनचाही आराम से पूरा कर सकता है। दिव्या एक कमरे में अपनी पढ़ाई कर रही थी तभी संजय ने उत्तेजना से कांपते हुए आवाज दी, “दीदी, बड़ी प्यास लगी है, थोड़ा पानी पिला दो।”
निश्चल दिव्या ने अपनी किताब एक ओर सरका कर ग्लस में पानी उड़ेला और सहज भाव से किचन में पेंट कर रहे संजय के पास जाकर पानी का ग्लास आगे बढ़ाती हुई बोली, “भईया यह लो।” संजय दिव्या के हाथ से पानी का ग्लास लेकर बोला, “मेरी प्यास इस पानी से नहीं बूझेगी, दिव्या रानी मैं तो तुम्हारे हुस्न का प्यासा हूँ।”
“क्या बक रहे हो।” उसकी नीयत समझते ही दिव्या ने हाथ झटकते हुए कहा, “पागल तो नहीं हो गये हो।”
“तुम सच कह रही हो, दिव्या रानी! जिस दिन से तुम्हें देखा है, उसी दिन से तुम्हारे लिये पागल हूँ। मेरी किस्मत से आज मौका भी मिल गया है।” इतना कहकर संजय ने दिव्या को अपनी बाहों में जकड़ लिया तो दिव्या ने उसे कई चाटे जड़ दिये, इस पर संजय गुस्से से लाल-पीला हो उठा और उसे जमीन पर पटक दिया, इसके बावजूद दिव्या अपने बचाव के लिए संघर्ष करती रही तो उसका प्रबल विरोध देखकर संजय तिलमिला उठा और उसने भी दिव्या को कई चाटे जड़ दिये तो वह बेहोश हो गयी। दिव्या को बेहोश देख संजय अपनी मनमानी पर उतर आया और उसके साथ बलात्कार करने लगा। वासना का आवेग शान्त होने के बाद संजय यह सोचकर पसीने-पसीने हो गया कि होश में आने पर दिव्या उसके कुकर्मो की चर्चा अपने मौसी-मौसा से जरूर करेगी और हो सकता है उसे जेल भी जाना पड़े। यह सोचकर उसके चेहरे का भाव सख्त हो गया और उसने बड़ी क्रूरता से दोनों हाथों से बेहोश दिव्या का गला कसकर तब तक दबाता रहा जब तक वह पूरी तरह से मर नहीं गयी। दिव्या के मरने के बाद वह उसकी लाश को बड़े से सन्दूक में इसलिए छिपाकर रख देना चाहता था ताकि डा0 श्याम जी और उनकी पत्नी के घर आने पर वह बहाना बना सके कि दिव्या कहीं बाहर गयी है और आराम से वह अपना बाकी काम निपटाकर छुट्टी के समय घर वापस चला जायेगा, लेकिन संजय की सारी सोच पर उस समय पानी फिर गया जब वह दिव्या की लाश को बड़े वाले सन्दूक में रख रहा था और उसी समय डाक्टर दम्पत्ति घर वापस लौट आये थे। फिर तो सारा कुछ साफ हो गया।
शिवपुर थाना प्रभारी एस0पी0 सिंह संजय से आवश्यक पूछताछ के बाद अगले दिन पहली मार्च को उसे अदालत में प्रस्तुत किया जहाँ से संजय को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। जाँच अधिकारी शिवपुर थाना प्रभारी एस0पी0 सिंह ने दिव्या उर्फ मोनी बलात्कार-हत्याकाण्ड की विवेचना पूरी कर समय से अदालत में चार्जशीट प्रस्तुत कर दी। शेसन ट्रायल के बाद मुकदमें की सुनवाई शुरू हुई तो अभियोजन पक्ष ने कुल 9 गवाहों को अदालत में परीक्षित कराया। गवाहों के बयानात और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर बीते 05 दिसम्बर को वाराणसी के दशवें अपर जिला जज दिनेश कुमार सिंह ने संजय को धारा 302 में मृत्युदण्ड और धारा 376 में आजीवन कारावास की सजा सुना दी। संजय की फांसी की सुनवाई का मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में लम्बित है। अब भविष्य में ही यह तय होगा कि संजय को फांसी दी जाती है या फिर अदालत उसकी सजा को कम कर उसे आजीवन कारावास में बदल देती है।

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